Bihar Politics: बिहार (Bihar) में नीतीश कुमार (Nitish Kumar) खुद को सुशासन बाबू कहलवाना बहुत पसंद करते हैं. लेकिन जब महागठबंधन की सरकार के मुख्यमंत्री बनते हैं तो कुशासन कैबिनेट तैयार कर लेते हैं. कार्तिक कुमार अकेले नहीं हैं, जिनका अपराध जगत से पुराना नाता रहा है. RJD के विधायक सुरेंद्र प्रसाद यादव के खिलाफ हत्या के प्रयास, दंगा करने और आपराधिक साजिश रचने समेत कई संगीन आरोप लग चुके हैं और कई केस भी दर्ज हैं. वर्ष 2005 में चुनाव के दौरान बूथ लूटने का आरोप भी सुरेंद्र यादव पर लगा था. लेकिन अब वो नीतीश कैबिनेट में सहकारिता मंत्री हैं.


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महागठबंधन सरकार में आई दागियों की बहार


JDU कोटे से मंत्री बने जमा खान की छवि भी बिहार में दबंग नेता की है. जमा खान पर हत्या की कोशिश समेत 24 से ज्यादा आपराधिक मामले दर्ज हैं. लेकिन वो जमानत पर बाहर हैं और अब बिहार के अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री बन गए हैं. नीतीश कुमार ने जिन सुधाकर सिंह को कृषि मंत्री बनाया है, उनपर नीतीश सरकार ने कभी चावल घोटाले का केस किया था. ये घोटाला 2013-14 में हुआ था और ये मामला अभी भी अदालत में चल रहा है.  


अंदाजा लगाइये कि बिहार को अब कैसे लोग चलाएंगे. Association for Democratic Reforms यानी ADR ने नीतीश कुमार समेत 33 में से 32 कैबिनेट सदस्यों के चुनावी हलफनामों का विश्लेषण किया है. जिससे पता चला है - .


- बिहार की नई सरकार में 33 मंत्रियों में से 23 यानी 72 प्रतिशत के ऊपर आपराधिक मामले दर्ज हैं.
- RJD के 88 प्रतिशत मंत्रियों पर आपराधिक केस हैं जिसके 17 में से 15 मंत्री दागी हैं.
- इसके बाद जेडीयू के 11 में से 4 यानी 36 प्रतिशत मंत्रियों पर मुकदमे दर्ज हैं.
- कांग्रेस के दोनों मंत्रियों के अलावा HUM और निर्दलीय कोटे से मंत्री बने विधायकों पर भी मामले दर्ज हैं.
- इतना ही नहीं, नीतीश कुमार की आधी से ज्यादा कैबिनेट पर गंभीर धाराओं के तहत मुकदमे दर्ज हैं.
- 17 यानी 53 प्रतिशत पर गंभीर आपराधिक मामले दर्ज हैं. 
- RJD के 11, जेडीयू के 2, कांग्रेस के 1 मंत्री पर भी गंभीर आपराधिक मामला दर्ज है.


कई मंत्रियों के ऊपर गंभीर मामलों में केस दर्ज


गंभीर आपराधिक मामले उन्हें माना जाता है, जिनमें कम से कम 5 साल की सजा का प्रावधान होता है. ये गैर जमानती होते हैं. हत्या, मारपीट, रेप, किडनैपिंग के केस गंभीर आपराधिक मामलों में गिने जाते हैं. ये सिर्फ हैरान करने वाली बात नहीं है बल्कि परेशान करने वाली बात भी है. लेकिन इसे ना तो नीतीश कुमार (Nitish Kumar) कबूल करने को तैयार हैं और ना लालू प्रसाद यादव.


लालू यादव मानें या ना मानें, नीतीश कुमार मानें या ना मानें. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता. अब हकीकत यही है कि बिहार अब एक बार फिर आपराधिक छवि वाले मंत्रियों की मुट्ठी में हैं. इसके साइड इफेक्ट्स भी दिखने लगे हैं. नीतीश कुमार की कैबिनेट में लेसी सिंह को खाद्य और उपभोक्ता संरक्षण विभाग मिला है. जिन पर जेडीयू की ही विधायक बीमा भारती ने पूर्णिया में हत्याएं करवाने का आरोप लगाया है.  


देश के सभी राज्यों में एक जैसा हाल


बात सिर्फ बिहार (Bihar) की नहीं है. हमारे देश में चाहे कोई भी राज्य हो, सरकार में अपराधियों का बोलबाला आम बात है. देश में गठबंधन की सरकारों का दौर भले ही करीब तीस साल ही पुराना हो लेकिन राजनीति और अपराध का गठबंधन 75 सालों से लगातार बना हुआ है. इसके कुछ आंकड़े भी आपको बताते हैं . ADR ने वर्ष 2019 से 21 के दौरान 542 लोकसभा सदस्यों और 1953 विधायकों के हलफनामों को स्टडी किया. जिसमें पता चला कि कुल 2495 सांसदों और विधायकों में से 363 यानी 15 फीसदी के खिलाफ अदालतों में चार्जशीट दाखिल की जा चुकी है. इनमें 296 विधायक और 67 सांसद हैं.


नेताओं और मंत्रियों के खिलाफ आपराधिक मामलों को प्राथमिकता से निपटाने की गुहार कई बार लगाई जा चुकी है. लेकिन ऊंची पहुंच और पावर के बलबूते पर आरोपी नेता कोर्ट से तारीख पर तारीख लेते रहते हैं और सजा से बचते रहते हैं. इस वर्ष की शुरुआत में सुप्रीम कोर्ट को बताया गया कि सांसदों या विधायकों के खिलाफ अलग-अलग अदालतों में 4984 केस पेंडिंग हैं.


कोर्ट में पैंडिंग मामलों में जल्दी नहीं होता फैसला


रिपोर्ट में बताया गया कि दिसंबर 2018 में इस तरह के 4110 मामले लंबित थे, अक्टूबर 2020 में ये संख्या बढ़ कर 4,859 हो गई और अब ये संख्या बढ़ कर 4984 हो गई है. इस वक्त कुल पेंडिंग मामलों में से 1899 मामले पांच साल से ज्यादा पुराने हैं . और 1,475 मामले दो साल से लेकर पांच साल तक पुराने हैं.


ये आंकड़े बताते हैं कि संसद और विधान सभाओं में आपराधिक पृष्ठभूमि वाले लोगों की संख्या बढ़ती जा रही है, इसलिए ये बेहद जरूरी है कि इस तरह के लंबित मामलों में जल्दी फैसले आएं. इसको लेकर इसी वर्ष वरिष्ठ अधिवक्ता विजय हंसारिया ने सुप्रीम कोर्ट को कुछ सुझाव दिये थे, वो सुझाव क्या थे आपको बताते हैं- 


- अगर अभियुक्त मुकदमे में देरी करवाए तो उसकी जमानत खारिज कर दी जाए.
- अगर सरकारी वकील सहयोग ना कर तो राज्य सरकार के मुख्य सचिव आवश्यक कदम उठाएं.
- इसके अलावा सभी ट्रायल कोर्ट पांच साल से ज्यादा समय से लंबित सभी मामलों पर हाईकोर्ट को विस्तृत रिपोर्ट दें, देर होने के कारण बताएं. 
- विधायकों और सांसदों पर चल रहे केस की सुनवाई के लिए वर्चुअल अदालतें बनाई जाएं. 
- विधायकों और सांसदों पर चल रहे केस की सुनवाई के लिए अलग से अदालतें लगाई जाएं जो केवल इन्हीं मामलों की सुनवाई करें.
- सुप्रीम कोर्ट को ये भी सुझाव दिया गया था कि माननीयों पर दर्ज मुकदमे में सुनवाई रोज हो और सुनवाई कभी स्थगित नहीं की जाए.


किसी भी सरकार ने नहीं दिखाई है दिलचस्पी


लेकिन किसी सरकार ने इसको लेकर कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई. इसका नतीजा ये है कि अदालतों में विधायकों और सांसदों के खिलाफ पेंडिंग केसों की संख्या बढ़ती जा रही है. ये हमारे सिस्टम और न्याय व्यवस्था का Failure है. जिसमें माननीयों को लगता है कि वो बड़े से बड़ा अपराध कर देंगे तो भी कानून उनका कुछ नहीं बिगाड़ पाएगा. ये बात कितनी सही है, इसका ताजा उदाहरण बिहार में नीतीश कैबिनेट है, जिसमें आपराधिक छवि के नेताओं की बहार है.


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