BJP Politics: बीजेपी के अध्‍यक्ष जेपी नड्डा का कार्यकाल पहले ही समाप्‍त हो चुका है. लोकसभा चुनावों के मद्देनजर उनका कार्यकाल 30 जून तक बढ़ाया गया था. बीजेपी के तीसरी बार सत्‍ता में आने के बाद वह केंद्रीय स्‍वास्‍थ्‍य मंत्री बने. बीजेपी में एक व्‍यक्ति एक पद की परंपरा है. लिहाजा उसके बाद से ही नए राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष के नाम की गाहे-बगाहे चर्चा होती रही है. लोकसभा चुनावों में महाराष्‍ट्र में बीजेपी के कमजोर प्रदर्शन के बाद डिप्‍टी सीएम देवेंद्र फडणवीस की इस्‍तीफे की पेशकश और उसके बाद अचानक अपने परिवार के साथ पीएम नरेंद्र मोदी के साथ मुलाकात के बाद इस तरह की खबरें आईं कि संभवतया उनको पार्टी की कमान दी जा सकती है. उनके पक्ष में कई बातें थीं. पहला-उनका नागपुर और आरएसएस से कनेक्‍शन, दूसरा-ब्राह्मण चेहरा, तीसरा-संघ और बीजेपी आलाकमान उनको पसंद करता है. 


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उसके बाद हरियाणा और जम्‍मू-कश्‍मीर के चुनावों का ऐलान हो गया. जब तक वो खत्‍म होते तब तक महाराष्‍ट्र और झारखंड का बिगुल बज गया. इसलिए मामला टल गया. हिंदुस्‍तान अखबार में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक इन चुनावों के नतीजे नवंबर में आने के बाद दिसंबर के पहले पखवाड़े में बीजेपी को नया राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष मिल सकता है. दरअसल केंद्रीय स्‍तर से संगठन चुनाव समीक्षा में सभी राज्‍यों से अनुरोध किया है कि दिसंबर के पहले हफ्ते तक वो अपने स्‍तर पर चुनावी प्रक्रिया को पूरा कर लें. बीजेपी का संविधान ये कहता है कि आधे राज्‍यों के चुनाव होने के बाद राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष का चुनाव हो सकता है. ऐसे में पार्टी चाहती है कि दिसंबर के प्रथम सप्‍ताह तक कम से कम आधे राज्‍यों में बूथ से लेकर प्रदेश स्‍तर तक पार्टी में संगठन स्‍तर पर चुनाव हो जाए ताकि उसके बाद राष्‍ट्रीय स्‍तर पर अध्‍यक्ष के चुने जाने का मार्ग प्रशस्‍त हो जाए.


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दूसरी बात ये है कि मध्‍य दिसंबर से 14 जनवरी तक खरमास रहेगा. इसलिए कोई शुभ कार्य नहीं होगा. लिहाजा ये कहा जा रहा है कि दिसंबर के दूसरे सप्‍ताह में खरमास शुरू से पहले ही नए राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष के चयन की प्रक्रिया पूरी कर ली जाएगी. उसका एक कारण ये भी है कि फरवरी में दिल्‍ली में चुनाव होगा और मध्‍य जनवरी से ही चुनावी प्रक्रिया शुरू हो जाएगी. इसलिए बीजेपी का जोर मध्‍य दिसंबर तक नए राष्‍ट्रीय अध्‍यक्ष को चुनने का होगा.


इस रिपोर्ट में सूत्रों का हवाला देते हुए ये भी कहा गया है कि पार्टी का फोकस ब्राह्मण चेहरे के अलावा दक्षिण भारत की ओर भी है. उसका कारण ये है कि उत्‍तर भारत में पार्टी ने सीटों और संगठन के लिहाज से एक सेचुरेशन लेवल को छू लिया है लेकिन दक्षिण भारत में कांग्रेस की चुनौती का मुकाबला करने के लिए और वहां अपनी पहुंच एवं विस्‍तार के लिए पार्टी के लिए ये बेहतर विकल्‍प हो सकता है कि दक्षिण भारत से नए अध्‍यक्ष को चुना जाए. अतीत में बीजेपी ऐसा कर भी चुकी है. अटल बिहारी वाजपेयी के सत्‍ता में रहने के दौरान दक्षिण भारत से आने वाले नेताओं बंगारू लक्ष्‍मण, जना कृष्‍णमूर्ति और एन वेंकैया नायडू को पार्टी की कमान दी गई थी. बीजेपी इस बार भी इस तरह का प्रयोग कर सकती है.