सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) की संवैधानिक पीठ ने एक अहम फैसला लिया है. पीठ ने अपने फैसले में कहा है कि आर्टिकल 142 के तहत अपनी विशेष शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए सुप्रीम कोर्ट ऐसे रिश्तों में तलाक देने की इजाजत दे सकता है जहां सुधार की कोई गुंजाइश न बची हो. कोर्ट ने कहा कि इसके लिए कपल को जरूरी वेटिंग पीरियड का इंतजार करने की जरूरत नहीं है. दरअसल, मौजूदा विवाह कानूनों के मुताबिक पति-पत्नी की सहमति के बावजूद पहले फैमिली कोर्ट्स एक समय सीमा तक दोनों पक्षों को पुनर्विचार करने का समय देते हैं.

 

सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि वह जीवनसाथियों के बीच आई दरार के नहीं भरे जाने की स्थिति में या इसके आधार पर किसी भी शादी को खत्म करने का फैसला सुना सकता है. जस्टिस एस के कौल की अध्यक्षता वाली 5 न्यायाधीशों की संवैधानिक पीठ ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट को संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत ऐसा फैसला लेने का का अधिकार है.

 

संविधान का 'अनुच्छेद 142' सुप्रीम कोर्ट में पेंडिंग किसी भी मामले में ‘संपूर्ण न्याय’ करने के लिए फैसले लेने से जुड़ा हुआ है. इस संवैधानिक पीठ में न्यायमूर्ति संजीव खन्ना, न्यायमूर्ति ए एस ओका, न्यायमूर्ति विक्रमनाथ और न्यायमूर्ति जे के माहेश्वरी भी शामिल हैं.

 

पीठ ने कहा, ‘हमने व्यवस्था दी है कि इस अदालत के लिए किसी शादीशुदा रिश्ते में आई दरार के भर नहीं पाने के आधार पर उसे खत्म करना संभव है.’ कोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत अपने अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए कई याचिकाओं पर यह फैसला सुनाया. इस मामले को सात साल पहले एक ट्रांसफर याचिका में जस्टिस शिव कीर्ति सिंह और आर भानुमति (दोनों सेवानिवृत्त) की खंडपीठ द्वारा पांच न्यायाधीशों की पीठ को भेजा गया था. दलीलें सुनने के बाद संविधान पीठ ने 29 सितंबर, 2022 को फैसला सुरक्षित रख लिया था.