Cash For Query Case 2005: कैश फॉर क्वेरी मामले में आखिरकार टीएमसी सांसद महुआ मोइत्रा पर गाज गिर गई है और इसके चलते उनकी लोकसभा सदस्यता खत्म कर दी गई. संसद के शीतकालीन सत्र के पांचवे दिन लोकसभा ने एथिक्स कमेटी की उस रिपोर्ट को मंजूरी दे दी है जिसमें मोइत्रा को निष्कासित करने की सिफारिश की गई थी. इस घटना के बाद राजनीति गरम हो गई है और प्रतिक्रियाओं का भी दौर शुरू हो गया है. इसी कड़ी में एक पुराने मामले की याद लोगों को आ गई जिसमें कुछ ऐसा ही घटनाक्रम देखने को मिला था. उस दौरान भी कैश फॉर क्वेरी से जुड़ा मामला था जब एक साथ 11 सांसदों की सदस्यता रद्द कर दी गई थी. आई 2005 के उस मामले को समझते हैं कि वह क्या था.


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लोकसभा के 10 और राज्यसभा के एक सांसद
असल में वह पूरा मामला 2005 का था जब लोकसभा के 10 और राज्यसभा के एक सांसद की सदस्यता रद्द हुई थी. 11 सांसदों पर संसद में सवाल पूछने के बदले पैसे लेने का आरोप लगा था. यह मामला 12 दिसंबर 2005 को उस समय सामने आया जब एक निजी समाचार चैनल ने एक स्टिंग ऑपरेशन किया था. इस स्टिंग ऑपरेशन में, एक फर्जी कंपनी के प्रतिनिधि ने सांसदों से संपर्क किया और उनसे संसद में सवाल पूछने के लिए पैसे ऑफर किए. सांसदों ने इस प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया और पैसे ले लिए.


11 सांसद किसी एक पार्टी के नहीं थे
स्टिंग ऑपरेशन की तस्वीरें और वीडियो 12 दिसंबर 2005 को कई चैनल्स पर प्रसारित किए गए. इस प्रसारण ने देश में एक सनसनी मचा दी. लोकसभा और राज्यसभा ने घोटाले की जांच के लिए अलग-अलग समितियां बनाईं. इन समितियों ने अपने-अपने निष्कर्षों में सांसदों को दोषी पाया. लोकसभा ने 10 सांसदों को निष्कासित कर दिया, जबकि राज्यसभा ने एक सांसद को निष्कासित कर दिया. निष्कासित 11 सांसद किसी एक पार्टी के नहीं थे. इनमें से छह बीजेपी से, तीन बसपा से और एक-एक राजद और कांग्रेस से थे. बीजेपी से सांसद सुरेश चंदेल, अन्ना साहेब पाटिल, चंद्र प्रताप सिंह, छत्रपाल सिंह लोध, वाई जी महाजन और प्रदीप गांधी. 


पारदर्शी बनाने के लिए कदम उठाए
जबकि बीएसपी से नरेंद्र कुमार कुशवाहा और राजा राम पाल और लालचंद्र. आरजेडी से मनोज कुमार और कांग्रेस से राम सेवक सिंह शामिल थे. इस घोटाले ने भारतीय राजनीति में एक बड़ा झटका दिया. घोटाले के बाद, संसद में सवाल पूछने के लिए एक नई प्रक्रिया लागू की गई. अब, सांसदों को संसद में सवाल पूछने से पहले, उन्हें लोकसभा सचिवालय से अनुमति लेनी होती है. इस मामले के बाद सरकार ने संसद में सवाल पूछने की प्रक्रिया को और अधिक पारदर्शी बनाने के लिए कुछ कदम उठाए. इन कदमों में सवाल पूछने के लिए ऑनलाइन आवेदन प्रक्रिया शामिल है. इसके अलावा, सांसदों को सवाल पूछने से पहले, उन्हें यह बताना होगा कि वे सवाल क्यों पूछ रहे हैं.


उस समय भी काफी बवाल मचा
उस समय लोकसभा के अध्यक्ष बंगाल से सीपीएम सांसद सोमनाथ चटर्जी थे. वीडियो सामने आते ही जांच कमेटी गठित कर दी गई. समिति की अध्यक्षता कांग्रेस सांसद पवनकुमार बंसल ने की. समिति द्वारा अपनी रिपोर्ट देने के बाद प्रणब मुखर्जी ने इस मुद्दे को लोकसभा में उठाया. वह उस समय संसद के निचले सदन में कांग्रेस पार्टी के नेता थे. घटना सामने आने के 10 दिन के भीतर लोकसभा और राज्यसभा में वोटिंग के जरिए 11 सांसदों को निष्कासित कर दिया गया था. उस समय भी काफी बवाल मचा था. हालांकि उस समय विपक्ष के नेता रहे एलके आडवाणी ने कहा था कि सांसदों ने जो कुछ किया वह मूर्खता है. इसके लिए निष्कासन बहुत ही कठोर सजा होगी. इस मामले में जनवरी 2007 में सुप्रीम कोर्ट ने भी सांसदों के निष्कासन के फैसले को सही ठहराया था.