नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) की नियुक्ति की लगभग 20 वर्षों से चली आ रही पुरानी मांग को पूरा करने की घोषणा की. कारगिल की लड़ाई के बाद इस बात को महसूस किया गया कि देश को तीनों सेनाध्यक्षों (आर्मी, नेवी और एयरफोर्स) के अलावा एक और फोर स्टार ऑफिसर की जरूरत है, जो सेना का एकीकरण करे. चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ के पद का निर्माण करना कारगिल समीक्षा समिति की एक प्रमुख सिफारिश रही है.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

इसकी शुरुआत पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल के दौरान शुरू हुई. इस दौरान सुब्रह्मण्यम समिति का गठन किया गया. इसके बाद पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के कार्यकाल में नरेश चंद्र की अध्यक्षता में समिति का गठन हुआ और अंत में मोदी सरकार ने सेवानिवृत्त लेफ्टिनेंट जनरल डी.बी. शेकटकर की अध्यक्षता में 11 सदस्यीय समिति का गठन किया था.



हालांकि, रक्षा मंत्रालय की तरफ से सरकार द्वारा स्वीकार किए गए चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ के सटीक मॉडल के बारे में विवरण साझा किया जाना अभी बाकी है. लेकिन इतना जरूर है कि यह पद एक एकल बिंदु प्राधिकरण पर केंद्रीत होगा, जो तीनों सेनाओं का एकीकरण करने में मदद करेगा.


ऐसा कहा जा सकता है कि चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ सशस्त्र बलों की संयुक्त खरीद, प्रशिक्षण, रसद और वित्तीय प्रबंधन जैसे मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करने वाले कार्यो को देखेगा, जबकि तीन सेना प्रमुखों के पास एक परिचालन कमान रहेगी. यह भी देखने वाली बात होगी की कौन पहला चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) बनता है.



पिछली सरकारें एक चौथा 'पावर सेंटर' नहीं बना सकीं, यहां तक कि प्रधानमंत्री मोदी भी अपने छह साल के कार्यकाल में यह घोषणा कर सके. इसकी मुख्य वजह यह है कि इस कदम को उठाने में कई जटिलताएं शामिल हैं, यह सशस्त्र बलों की संरचना को बदल सकती हैं.


हालांकि, मोदी सरकार ने राष्ट्रीय सुरक्षा रणनीति योजना के तहत रक्षा सुधारों को अपने उच्च प्राथमिकता के एजेंडे के रूप में निर्धारित किया था. तीनों सेवाओं के एकीकरण के अंतर्गत या तो चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) या फिर चीफ ऑफ स्टाफ कमेटी (सीओएससी) के स्थायी अध्यक्ष की नियुक्ति किए जाने को लेकर विचार किया जाना था. वर्तमान में सीओएससी के प्रमुख का पद रोटेशनल होता है, जो भी सबसे वरिष्ठ सेवा प्रमुख होता है वह स्टाफ कमेटी का चीफ होता है.