Sedition Law: राजद्रोह को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर जवाब देने के लिए केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से मांगा समय
Center Sought Time From SC: केंद्र ने राजद्रोह कानून से जुड़े मुद्दों को लेकर सुप्रीम कोर्ट से समय मांगा है. सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने पांच मई को मामले में अंतिम सुनवाई (Hearing) शुरू करने की बात कही थी.
Constitutional Validity Of Sedition Law: केंद्र ने राजद्रोह पर कॉलोनियल युग के दंड कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अपना जवाब दाखिल करने के लिए उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) से समय मांगा है. प्रधान न्यायाधीश एन वी रमण (Chief Justice NV Raman), न्यायमूर्ति सूर्यकांत (Justice Suryakant) और न्यायमूर्ति हिमा कोहली (Justice Hima Kohli) की पीठ ने 27 अप्रैल को केंद्र सरकार को जवाब दाखिल करने का निर्देश दिया था और कहा था कि वह 5 मई को मामले में अंतिम सुनवाई शुरू करेगी तथा स्थगन के लिए किसी भी अनुरोध पर विचार नहीं करेगी.
केंद्र ने क्या कहा?
अदालत के समक्ष दायर एक आवेदन में केंद्र ने कहा कि हलफनामे (Affidavit) का ड्राफ्ट तैयार है और वह सक्षम प्राधिकारी (Authority) से पुष्टि की प्रतीक्षा कर रहा है. शीर्ष अदालत ने अपने पिछले आदेश में कहा था कि वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल (Senior Advocate Kapil Sibal) मामले में भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए (राजद्रोह) की वैधता के खिलाफ याचिकाकर्ता की ओर से दलील संबंधी नेतृत्व करेंगे. राजद्रोह से संबंधित दंडात्मक कानून के दुरुपयोग से चिंतित शीर्ष अदालत ने पिछले साल जुलाई में केंद्र सरकार से पूछा था कि वह उस प्रावधान को निरस्त क्यों नहीं कर रही जिसे स्वतंत्रता आंदोलन को दबाने और महात्मा गांधी (Mahatma Gandhi) जैसे लोगों को चुप कराने के लिए अंग्रेजों द्वारा इस्तेमाल किया गया.
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मुख्य चिंता 'कानून का दुरुपयोग' है
आईपीसी (IPC) की धारा 124 ए (राजद्रोह) की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया और पूर्व मेजर-जनरल एस जी वोम्बटकेरे (S G Wombatkere) की याचिकाओं की पड़ताल के लिए सहमत होते हुए शीर्ष अदालत ने कहा था कि उसकी मुख्य चिंता 'कानून का दुरुपयोग' है जिसके कारण मामलों की संख्या में वृद्धि हो रही है. पिछले साल जुलाई में याचिकाओं पर नोटिस जारी करते हुए शीर्ष अदालत ने प्रावधान के कथित दुरुपयोग का उल्लेख किया था और पूछा था कि क्या 'आजादी (Independence) के 75 साल बाद भी कॉलोनियल युग के कानून की आवश्यकता है?'
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प्रधान न्यायाधीश का बयान
प्रधान न्यायाधीश ने कहा था, 'यह एक कॉलोनियल कानून है. यह स्वतंत्रता आंदोलन को दबाने के लिए था. इसी कानून का इस्तेमाल अंग्रेजों (Britishers) ने महात्मा गांधी, तिलक आदि को चुप कराने के लिए किया था. क्या आजादी के 75 साल बाद भी यह जरूरी है?' अन्य याचिकाकर्ताओं में पूर्व केंद्रीय मंत्री अरुण शौरी (Arun Shourie) और मणिपुर से पत्रकार किशोरचंद्र वांगखेमचा (Kishorechandra Wangkhemcha) और छत्तीसगढ़ से कन्हैया लाल शुक्ला (Kanhaiya Lal Shukla) शामिल हैं.
(इनपुट - भाषा)
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