SC order on Anil Masih: चंडीगढ़ मेयर चुनाव में आज आखिरकार 'सुप्रीम' फैसला आ गया है. सुप्रीम कोर्ट ने 30 जनवरी को हुए चुनाव परिणाम को रद्द करते हुए आम आदमी पार्टी (AAP) के उम्मीदवार कुलदीप कुमार को विजेता घोषित कर दिया. अपने फैसले में कोर्ट ने चुनाव अधिकारी अनिल मसीह को जमकर लताड़ लगाई. अदालत ने कहा कि RO ने न केवल देश की चुनावी प्रक्रिया में जबरन हस्तक्षेप किया, बल्कि कोर्ट में आकर झूठ भी बोला. कोर्ट ने इस पूरी धांधली के लिए अनिल मसीह को दोषी मानते हुए नोटिस जारी किया है. मसीह को इस नोटिस का जवाब देने के लिए 3 सप्ताह का वक्त दिया गया है. 


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कानून के शिकंजे में फंसे 'सीसीटीवी वाले RO'


कानूनविदों के मुताबिक इस मामले में अनिल मसीह कानून के शिकंजे में घिर गए हैं. उनकी करतूत सीसीटीवी फुटेज के जरिए पूरी दुनिया देख चुकी है और आदेश देश की टॉप कोर्ट ने दिया है, इसलिए अब उनके बचने के चांस बेहद कम है. हालांकि नैसर्गिक न्याय के सिद्धांत का पालन करते हुए कोर्ट ने अपनी सफाई पेश करने का पूरा मौका दिया है. अगर वे अपने तर्कों और सबूतों को पेश कर कोर्ट को संतुष्ट कर पाते हैं तो उन्हें कुछ रियायत मिल सकती है वरना उन पर मार्च में गाज गिरनी तय है. आइए जानते हैं कि सुप्रीम कोर्ट की ओर से उन पर आगे क्या- क्या एक्शन हो सकता है. 


इन दो मामलों में हो सकती है सजा


कानूनी जानकारों के मुताबिक अनिल मसीह सीधे तौर पर 2 मामलों में दोषी पाए गए हैं. पहला है चुनावी प्रक्रिया में जानबूझकर हस्तक्षेप करना और दूसरा है कोर्ट की अवमानना. इन दोनों मामलों में कोर्ट उसे अलग- अलग या एक साथ सजा- जुर्माना सुना सकती है. सबसे पहले बात करते हैं चुनाव प्रक्रिया में हस्तक्षेप की. अनिल मसीह मतपत्रों में हेरफेर करते हुए सीसीटीवी कैमरे पर साफ तौर पर पकड़े गए हैं. ऐसे में उन पर  भारतीय दंड संहिता की धारा 171 सी के तहत मुकदमा चल सकता है. 


खानी पड़ सकती है जेल की हवा


IPC की इस धारा में प्रावधान है कि चुनाव के दौरान किसी मतदाता या उम्मीदवार पर प्रतिकूल प्रभाव डालने, किसी को धमकी देने, रिपोर्ट बनाने, अफवाह फैलाने या प्रकाशित करने पर एक साल के कारावास या जुर्माने या दोनों की सजा से दंडित किया जा सकता है. 


अनिल मसीह पर दूसरा मामला कोर्ट की अवमानना का बन रहा है. सुप्रीम कोर्ट में 19 फरवरी को हुई सुनवाई में अनिल मसीह वे व्यक्तिगत रूप से पेश होकर माना था कि मतपत्रों पर उसने लिखा था. लेकिन साथ ही यह दावा भी किया था कि वे मतपत्र खराब हो गए थे, इसलिए उन्हें गिनती से अलग करने के लिए उसने वह निशान बनाए थे. अपने फैसले में सर्वोच्च अदालत ने मसीह के इस दावे को नकार दिया.


पार्टी से वफादारी पड़ने जा रही है भारी


कोर्ट ने साफतौर पर कहा कि उसने जानबूझकर केवल आम आदमी पार्टी के पार्षदों के 8 वोट अमान्य किए, जिससे दूसरा पक्ष चुनाव जीत जाए. ऐसे में न्यायालय की अवमानना अधिनियम, 1971 की धारा 12 के तहत, उस पर केस चल सकता है और दोषी पाए जाने पर 6 महीने की सामान्य कैद और 2 हजार रुपये तक के जुर्माने की रकम से दंडित किया जा सकता है.


हालांकि सुप्रीम कोर्ट ने फिलहाल अनिल मसीह को अदालत को गुमराह करने के लिए सीआरपीसी की धारा 340 के तहत नोटिस दिया है.यह मामला CWP 2878 of 2024 में 26.02.2024 को पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय में सुनवाई के लिए आएगा. ऐसे में देखना होगा कि हाई कोर्ट अनिल मसीह के खिलाफ कौन से एक्शन लेता है. लेकिन इतना तय है कि निचले दर्जे तक जाकर पार्टी से वफादारी निभाना अनिल मसीह को बहुत भारी पड़ने जा रहा है.