Supreme Court CJI DY Chandrachud: चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ ने गुरुवार को एक फैसला सुनाते हुए उस चिट्ठी पर भी नाराजगी जताई है जो मामलों की लिस्टिंग को लेकर सीनियर वकील दुष्यंत दवे की तरफ से लिखी गई थी. डीवाई चंद्रचूड़ ने बिना नाम लेते हुए इस पर प्रतिक्रिया दी है. असल में चीफ जस्टिस ने मनी लॉन्ड्रिंग मामले में जस्टिस बेला एम त्रिवेदी की अगुवाई वाली पीठ के सामने सूचीबद्ध दिल्ली के पूर्व मंत्री सत्येन्द्र जैन की जमानत याचिका पर सुनवाई स्थगित करने से इनकार किया. चीफ जस्टिस ने कहा कि संबंधित जज ही इस पर फैसला करेंगे. चीफ जस्टिस ने कहा कि खराब सेहत के चलते जस्टिस बोपन्ना दिवाली के अवकाश के बाद से ही सुनवाई करने में समर्थ नहीं हैं, इसलिए मामला पहले सुनवाई कर चुकी जस्टिस बेला त्रिवेदी के सामने लगाना पड़ा है. जस्टिस त्रिवेदी के सामने मामला लिस्ट कराना इसलिए भी जरूरी था क्योंकि सतेन्द्र जैन भी खराब सेहत के आधार पर मिली जमानत की मियाद बढ़ाने की मांग कर रहे थे.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

दुष्यंत दवे की चिट्ठी पर मिल गया जवाब!
अब इसी टिप्पणी के बीच डीवाई चंद्रचूड़ ने यह भी कह दिया कि यह स्पष्टीकरण इसलिए भी जरूरी है क्योंकि आजकल केस को दूसरी बेंच को शिफ्ट होने को लेकर कई लेटर सर्कुलेट हो रहे हैं. चीफ जस्टिस ने इस पर नाराजगी जाहिर की आखिर क्यों कुछ वकील चाहते हैं कि उनका मामला उनकी मर्जी के मुताबिक वाली बेंच ही सुने. एक तरह से दुष्यंत दवे की चिट्ठी पर डीवाई चंद्रचूड़ का जवाब माना जा रहा है. 


चिट्ठीबाजी का क्या था पूरा मामला?
सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता दुष्यंत दवे ने छह दिसंबर को सीजेआई डी. वाई. चंद्रचूड़ को पत्र लिखकर उच्चतम न्यायालय में मुकदमों को सूचीबद्ध करने और उन्हें अन्य पीठों को फिर से आवंटित करने के कुछ दृष्टांतों को लेकर नाराजगी जताई थी. उन्होंने तत्काल सुधारात्मक कदम उठाने की मांग की थी. अब इसी पत्र का जवाब बार काउंसिल ऑफ इंडिया यानि के अध्यक्ष मनन कुमार मिश्रा ने दिया है. दवे का नाम लिए बगैर बीसीआई अध्यक्ष ने कहा कि ऐसे पत्रों के जरिए किए गए प्रयास साफ तौर पर अवमाननापूर्ण आचरण के तहत आते हैं और गलत उद्देश्यों के लिए उठाया गया कदम था, इससे सख्ती से निपटा जाना चाहिए.


बार काउंसिल ऑफ इंडिया ने किया था पलटवार 
उन्होंने सीजेआई को लिखे अपने पत्र में कहा कि यह पत्र कोई इकलौती घटना नहीं है बल्कि यह हैंडबुक एक क्लासिक चाल है जिसे हाल-फिलहाल में भारत के लगभग हर प्रधान न्यायाधीश के सामने बार-बार आजमाया गया है. ऐसे पत्र स्वतंत्र न्यायिक प्रणाली के कामकाज पर अनुचित प्रभाव और दबाव पैदा करने का न्यायेत्तर तंत्र है. उन्होंने कहा कि पत्र में किए गए दावे सस्ती लोकप्रियता हासिल करने के लिए रत्ती भर भी सच नहीं हैं और किसी भी प्रामाणिक उद्देश्य से पूरी तरह रहित हैं. इतना ही नहींमिश्रा ने सीजेआई से इन पत्रों के माध्यम से ‘व्यवधान पैदा करने की कोशिशों को खत्म करने तथा ऐसे प्रयासों के खिलाफ एक स्थायी मिसाल पेश करने का अनुरोध किया है. मिश्र ने मिसाल की बात कहकर एक प्रकार से कार्रवाई की मांग कर डाली है. 


अब सीजेआई ने दे दिया जवाब
अब इस चिट्ठीबाजी पर चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया डीवाई चंद्रचूड़ ने एक लाइन में जवाब दे दिया है. चीफ जस्टिस ने इस पर नाराजगी जाहिर की आखिर क्यों कुछ वकील चाहते हैं कि उनका मामला उनकी मर्जी के मुताबिक वाली बेंच ही सुने. एक तरह से दुष्यंत दवे की चिट्ठी पर डीवाई चंद्रचूड़ का जवाब माना जा रहा है. अब देखना होगा कि दुष्यंत दवे इस पर क्या प्रतिक्रिया देते हैं.