नई दिल्लीः भारत की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस का मंगलवार को 137वां जन्मदिन था. इस दौरान कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने कांग्रेस का झंडा फहराने की कोशिश की, लेकिन वो झंडा फहराने की बजाय सीधे सोनिया गांधी के हाथों में आ गिरा. हम आपको कांग्रेस पार्टी के 136 वर्षों के इतिहास के बारे में बताएंगे. जिसमें हम आपको बताएंगे कि अंग्रेज़ क्यों चाहते थे कि भारत में कांग्रेस जैसी एक पार्टी ज़रूर होनी चाहिए? और आज़ादी के बाद ये पार्टी देश की पार्टी बनने की बजाय एक परिवार की पार्टी कैसे बन गई, जिसमें नेहरु गांधी परिवार के अलावा हर बड़े नेता के साथ नाइंसाफी हुई और इसी वजह से कांग्रेस अब तक 70 बार टूट चुकी है.


कांग्रेस की स्थापना ब्रिटिश व्यक्ति ने की


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सोनिया गांधी ने एक वीडियो संदेश भी जारी किया, जिसमें उन्होंने कांग्रेस पार्टी को एक विचारधारा और एक आन्दोलन का प्रारूप बताया और मोदी सरकार पर देश को बांटने का आरोप लगाया. कांग्रेस की स्थापना एक ब्रिटिश व्यक्ति ने की थी. जिनका नाम था- A O Hume (एओ ह्यूम). A O Hume वर्ष 1849 में Indian Civil Service के अधिकारी के तौर पर स्कॉटलैंड से भारत आये थे. जब वर्ष 1857 की क्रांति हुई थी, और जिसे हम आज़ादी की पहली लड़ाई कहते हैं, उस वक्त A O Hume उत्तर-प्रदेश में प्रशासनिक अधिकारी थे.


1885 में भारत में कांग्रेस पार्टी की स्थापना


A O Hume ने वर्ष 1885 में भारत में कांग्रेस पार्टी की स्थापना की थी. इसका पहला सम्मेलन तत्कालीन बॉम्बे प्रांत में हुआ था और वो भी तत्कालीन Viceroy की अनुमति से, जो उस वक्त ब्रिटिश भारत का सबसे बड़ा पद होता था. कांग्रेस के पहले सम्मेलन में 72 लोग थे, जिनमें A O Hume के साथ कुछ ब्रिटिश अधिकारी, भारत के ही कई अमीर और प्रभावशाली व्यक्ति, राजा-महाराजा शामिल थे. इनमें दादा भाई नौरोजी, जस्टिस रानाडे, फिरोज शाह मेहता और बद-रुद्दीन तैयबजी के नाम प्रमुख तौर पर हैं. ये एक तरह से छोटा सा Elite Group था, और इसमें भारत की आम जनता का कोई प्रतिनिधित्व नहीं था.


कोई भी आम आदमी नहीं


AO Hume ने जिन भारतीयों को कांग्रेस की स्थापना के लिए एकजुट किया था..उनमें से कोई भी आम आदमी नहीं था. इनमें से ज्यादातर लोगों की पढ़ाई लिखाई या तो ब्रिटेन में हुई थी, या ये लोग ब्रिटेन में ही रहते थे . उदाहरण के लिए कांग्रेस के संस्थापकों में से एक व्योमेश चंद्र बनर्जी अंग्रेज़ों की न्याय प्रणाली में बहुत यकीन रखते थे. ये भी एक तथ्य है कि कांग्रेस की स्थापना करने वाले शुरुआती लोगों में से ज्यादातर...पेशे से वकील थे..इसलिए कांग्रेस को उस समय वकीलों की पार्टी भी कहा जाता था....


अंग्रेज़ों को क्रांतिकारियों से खतरा था


हालांकि कांग्रेस की स्थापना के समय इसका उद्देश्य ये बताया गया था कि ब्रिटिश राज में भारतीयों को ज़्यादा से ज़्यादा अधिकार दिलाना है. लेकिन कुछ इतिहासकार ये भी मानते हैं कि कांग्रेस बनाने का असली मकसद ये था कि वर्ष 1857 से जो विद्रोह शुरू हुआ था, उस विद्रोह की आग को ठंडा किया जाए. ऐसा कोई दूसरा विद्रोह ना हो. इसमें ब्रिटिश सरकार काफी हद तक कामयाब भी रही, क्योंकि अंग्रेज़ों को कांग्रेस से कोई खतरा नहीं था, अंग्रेज़ों को क्रांतिकारियों से खतरा था यानी एक अंग्रेज़ द्वारा स्थापित की गई कांग्रेस ने एक तरह से ब्रिटिश राज के लिए वर्ष 1885 से लेकर 1947 तक एक Safety Valve का काम किया. जिसका मकसद..आम भारतीयों में विद्रोह की संभावना को खत्म करना था .


..इस युद्ध में अंग्रेज़ों का साथ दें


वर्ष 1905 में कांग्रेस के अध्यक्ष रहे..गोपाल कृष्ण गोखले ने एक बार कहा था कि कोई भारतीय कांग्रेस की स्थापना कर ही नहीं सकता था, अगर भारत का कोई व्यक्ति इसका प्रयास भी करता तो उस समय के अंग्रेज़ अधिकारी ऐसा होने ही नहीं देते. आज़ादी से पहले कांग्रेस ने अंग्रेज़ों को लेकर कई मौक़ों पर नरमी भी दिखाई, जिसे आप चाहें तो उसकी वफादारी भी कह सकते हैं, जो अंग्रेज़ों के प्रति थी. वर्ष 1914 से 1919 के बीच जब पहला विश्व युद्ध चल रहा था, उस समय बहुत सारे लोगों को लगा कि ये अंग्रेज़ों को भारत से भगाने का सही समय है, क्योंकि वो काफ़ी कमज़ोर हो चुके थे. लेकिन कांग्रेस के कई नेताओं ने ऐसा नहीं होने दिया. खुद महात्मा गांधी ने उस समय भारत के लोगों से ये अपील की कि वो इस युद्ध में अंग्रेज़ों का साथ दें. उनका विद्रोह नहीं करें. यानी आज़ादी से पहले कांग्रेस देश की पार्टी से ज्यादा अंग्रेज़ों के हिसाब से चलने वाली एक पार्टी थी.


मौत से 3 दिन पहले महात्मा गांधी ने लिखा कांग्रेस के संविधान का प्रारूप


और शायद यही वजह है कि 27 January, 1948 यानी अपनी मृत्यु से सिर्फ़ तीन दिन पहले महात्मा गांधी ने कांग्रेस पार्टी के संविधान का प्रारूप लिखा था. और इस प्रारूप में उन्होंने कांग्रेस को एक राजनैतिक पार्टी के तौर पर भंग करके उसे लोक सेवक संघ में बदलने की इच्छा जताई थी, जो एक गैर राजनीतिक संस्था होती और जिसका काम समाज सेवा करना और सकारात्मक कार्य करना होता. लेकिन महात्मा गांधी की मृत्यु के बाद कांग्रेस के कई नेताओं ने पार्टी को भंग करने का ख्याल पूरी तरह से छोड़ दिया और जवाहर लाल नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस 100 प्रतिशत शुद्ध राजनैतिक पार्टी बन गई. उस समय महात्मा गांधी ने अपनी मृत्यु से एक दिन पहले 29 जनवरी 1948 को इस पर एक लेख भी लिखा था, जिसका शीर्षक था.. His Last Will And Testament. ..


महावीर त्यागी ने लिखी थी नेहरु को चिट्ठी


परिवारवाद कैसे किसी देश को बर्बाद कर सकता है. इसे खुद देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू ने अपने एक भाषण में बयां किया था. 15 अगस्त 1960 को लाल किले से दिए गए अपने एक भाषण में नेहरू ने ये बताया था कि अगर भारत के लोग देश से पहले अपनी जाति, समुदाय या खानदान को आगे रखने लगेंगे तो देश का पतन शुरू हो जाएगा. हालांकि ये विडंबना है कि जवाहर लाल नेहरू जब ये भाषण दे रहे थे. उससे एक वर्ष पहले ही 1959 में उनकी पुत्री और देश की पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी को कांग्रेस का अध्यक्ष बनाया जा चुका था. उस दौरान कांग्रेस के एक नेता महावीर त्यागी ने इसका विरोध किया था और नेहरु को एक चिट्ठी लिखी थी. इस चिट्ठी में उन्होंने कहा था कि जो लोग इंदिरा गांधी का नाम अध्यक्ष पद के लिए प्रस्तावित कर रहे हैं, वो लोग असल में नेहरु की चापलूसी कर रहे हैं.


बड़े कद के नेताओं के साथ हमेशा नाइंसाफ़ी


कांग्रेस की एक बड़ी बात ये भी रही है कि उसने बड़े कद के नेताओं के साथ हमेशा नाइंसाफ़ी की. हम आपको ऐसे चार बड़े नेताओं के बारे में बताते हैं. इनमें सबसे पहले हैं नेताजी सुभाष चंद्र बोस- वर्ष 1939 में जब सुभाष चंद्र बोस ने कांग्रेस का फिर से अध्यक्ष बनने के लिए अपनी दावेदारी पेश की थी. तो उनके ख़िलाफ़ महात्मा गांधी और जवाहर लाल नेहरु का ऐसा गठजोड़ बन गया, जिसने धीरे-धीरे बोस के महत्व की जड़ों को कमज़ोर करने का काम शुरू किया.


बोस जीत गए.. पट्टाभि सीतारमय्या की हार हुई


उस समय इस गठजोड़ ने बोस के ख़िलाफ़ पट्टाभि सीतारमय्या को अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया लेकिन इसके बावजूद बोस ये चुनाव जीत गए और पट्टाभि सीतारमय्या की हार हुई. और यहीं से कांग्रेस में सुभाष चंद्र बोस के महत्व को कम करने के लिए राजनीति शुरू हो गई. कांग्रेस नेताओं और संस्थाओं का उन्हें सहयोग मिलना बन्द हो गया. जिसकी वजह से बाद में उन्हें इस्तीफा भी देना पड़ा और तब उन्होंने Forward Block नामक एक पार्टी भी बनाई थी.


भीम राव अम्बेडकर की भी अनदेखी


इसी तरह से देश के पहले क़ानून मंत्री भीम राव अम्बेडकर की भी अनदेखी हुई. वर्ष 1951 में जब जवाहर लाल नेहरु ने हिन्दू कोड बिल वापस लिया तो अम्बेडकर ने अपने मंत्री पद से इस्तीफा दे दिया और बाद में कांग्रेस भी छोड़ दी. कहा जाता है कि नेहरु और अम्बेडकर के बीच मतभेद काफ़ी बढ़ गए थे और नेहरु को लगता था कि अगर अम्बेडकर कांग्रेस में रहे तो वो यानी नेहरू कभी भी संगठन में ज़्यादा मजबूत नहीं रहेंगे. इसलिए अम्बेडकर के लिए परिस्थितियां ऐसी बना दी गईं कि उन्हें कांग्रेस छोड़नी पड़ी और बाद में उन्होंने Scheduled Caste Federation नाम की एक पार्टी की स्थापना की, जिसने पहले लोक सभा चुनाव में देशभर के 10 राज्यों में 35 सीटों पर चुनाव लड़ा था. लेकिन अम्बेडकर की पार्टी को केवल 2 सीटों पर ही जीत मिल पाई थी. खुद अम्बेडकर बॉम्बे लोक सभा सीट से चुनाव हार गए थे और चौथे नम्बर पर रहे थे.


सरदार वल्लभभाई पटेल को भी कांग्रेस ने नहीं दिया सम्मान


सरदार वल्लभभाई पटेल को भी कांग्रेस पार्टी में वो सम्मान नहीं मिला, जिसके वो हक़दार थे. आज़ादी से एक वर्ष पहले वर्ष 1946 में जब कांग्रेस पार्टी में अध्यक्ष पद के लिए चुनाव हुआ तो ये बात तय थी कि जो नेता अध्यक्ष बनेगा, वही भारत का पहला प्रधानमंत्री भी होगा. उस समय भारत में कांग्रेस की कुल 15 समितियां थीं, जिनमें से 12 ने अध्यक्ष पद के लिए सरदार को चुना. जबकि तीन समितियों ने इसमें हिस्सा ही नहीं लिया. लेकिन इसके बावजूद नेहरु पहले कांग्रेस के अध्यक्ष बन गए और फिर प्रधानमंत्री बन गए क्योंकि, महात्मा गांधी ने सरदार पटेल को उनका नाम वापस लेने के लिए राज़ी कर लिया. आप कह सकते हैं कि देश के पहले Accidental Prime Minister जवाहर लाल नेहरु थे.


नेहरू ने खुद को दे दिया भारत रत्न


एक और बात.. नेहरु ने स्वयं प्रधानमंत्री रहते हुए खुद को भारत रत्न पुरस्कार दे दिया था. इंदिरा गांधी को भी प्रधानमंत्री रहते हुए वर्ष 1971 में भारत रत्न मिल गया. और इसी तरह पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी को उनकी मृत्यु के दो वर्षों के बाद ही 1991 में मरणोपरांत ये पुरस्कार मिल गया था. लेकिन भीम राव अम्बेडर को उनकी मृत्यु के 34 वर्षों के बाद, सुभाष चंद्र बोस को 47 वर्षों के बाद और सरदार पटेल को उनकी मृत्यु के 41 वर्षों के मरणोपरांत भारत रत्न पुरस्कार से सम्मानित किया गया था. बोस और सरदार पटेल को ये पुरस्कार भी तब मिला, जब पी.वी. नरसिम्हा राव देश के प्रधानमंत्री बने.


चौधरी चरण सिंह के साथ भी इंसाफ नहीं


देश के पांचवें प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के साथ भी कांग्रेस ने कभी इंसाफ नहीं किया. उन्होंने 40 वर्षों तक कांग्रेस की सेवा की, लेकिन इस दौरान उन्हें उत्तर प्रदेश का मुख्यमंत्री भी नहीं बनने दिया गया. क्योंकि चौधरी चरण सिंह नेहरु की आंखों में काफ़ी चुभते थे. उन्होंने वर्ष 1967 में कांग्रेस छोड़ दी थी और इस दिन उनकी आंखों में आंसू थे.



कांग्रेस करीब 70 बार टूट चुकी है


आज जिस कांग्रेस पार्टी को हम मूल कांग्रेस के रूप में मानते हैं. वो असली कांग्रेस है ही नहीं. सच्चाई ये है कि स्थापना से लेकर अब तक कांग्रेस करीब 70 बार टूट चुकी है और इसके कई नेता अपनी अलग पार्टियां बना चुके हैं. मौजूदा कांग्रेस पार्टी भी इन्हीं में से एक है, जिसकी स्थापना इंदिरा गांधी ने वर्ष 1978 में Emergency के बाद की थी. इसके अलावा वर्ष 1923 में जवाहर लाल नेहरू के पिता मोती लाल नेहरू खुद कांग्रेस से अलग हो गए थे और उन्होंने अपनी स्वराज पार्टी बना ली थी. हालांकि बाद में उन्होंने इसका विलय कांग्रेस में कर दिया था. इसी तरह सुभाष चंद्र बोस, डॉक्टर भीम राव अम्बेडकर, जे.बी. कृपलानी, भारत के पहले गवर्नर C Raj Gopala Chari, के. कामराज, मोरारजी देसाई, चौधरी चरण सिंह, शरद पवार, ममता बनर्जी और YS जगनमोहन रेड्डी भी पहले कांग्रेस में थे. लेकिन बाद में उन्होंने कांग्रेस से खुद को अलग कर लिया और अपनी पार्टी बना ली. और कई राज्यों में आज कांग्रेस इन पार्टियों के सामने बहुत कमज़ोर है. 


आज कांग्रेस के हाथ बहुत कमज़ोर


आज़ादी के बाद देश के पहले लोक सभा चुनाव में कांग्रेस पार्टी लोक सभा की 489 में से 364 सीटें जीतने में कामयाब रही थी. इसके बाद कांग्रेस ने 55 वर्षों तक इस देश पर शासन किया. लेकिन आज कांग्रेस के हाथ बहुत कमज़ोर हो चुके हैं. वो 2019 में केवल 52 लोक सभा सीटें ही जीत पाई थी. इसके अलावा 28 राज्यों और 8 केन्द्र शासित प्रदेशों में से केवल 3 राज्यों में ही कांग्रेस की बहुमत की सरकार है. जबकि बीजेपी की 12 राज्यों में बहुमत की सरकार है.