Congress Politics: हरियाणा में हारने के बाद कांग्रेस पूरी तरह से सतर्क हो गई है. सब यही कह रहे हैं कि वहां पर अति-आत्‍मविश्‍वास और स्‍थानीय-जातिगत समीकरणों को नजरअंदाज करने के कारण हरियाणा में कांग्रेस के हाथ से संभावित जीत फिसल गई. लगता है कि कांग्रेस ने इससे सबक लिया है. कम से कम यूपी उपचुनाव और महाराष्‍ट्र विधानसभा चुनाव में तो यही देखने को मिल रहा है. कांग्रेस ने पिछले 24 घंटे में इन दोनों ही राज्‍यों में एकदम नया दांव खेलते हुए सबको चौंका दिया है.


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यूपी उपचुनाव
यूपी में 10 में से 9 सीटों पर उपचुनाव हो रहे हैं. पहले कांग्रेस इनमें से 5 सीटों पर चुनाव लड़ने पर आमादा थी. यूपी प्रदेश कांग्रेस अध्‍यक्ष अजय राय ने इस बाबत ऐलान भी किया था. सपा दो सीटें कांग्रेस को देना चाहती थी और सात पर खुद लड़ना चाहती थी. अंतिम समय में कांग्रेस ने दांव खेला. राहुल गांधी और अखिलेश यादव की फोन पर बात हुई और सपा नेता से कहा गया कि उनके सिंबल पर ही इंडिया गठबंधन के सभी 9 प्रत्‍याशियों को उतार दिया जाए. कांग्रेस ने इसके माध्‍यम से ये संदेश देने का प्रयास किया कि वह यूपी में बीजेपी को रोकने के लिए सपा को बड़ा भाई मानने को तैयार है. इसके माध्‍यम से दोनों पाटियों के कैडर को एकजुट होकर लड़ने का भी संदेश दिया गया. कांग्रेस दरअसल इस बात को समझ रही थी यदि बातचीत करके वह 9 में से कम से कम तीन सीटें अपने लिए सपा से ले सकती है और बाकी 6-7 सीटों पर सपा के प्रत्‍याशी लड़ें. इससे कांग्रेस कार्यकर्ताओं के बीच गलत संदेश जाने की संभावना थी कि सपा के आगे कांग्रेस को झुकना पड़ा. अब कांग्रेस ने इस 'त्‍याग' की राजनीति के माध्‍यम से अपने खिलाफ किसी भी तरह का परसेप्‍शन बनने की संभावना को न्‍यूनतम कर दिया है. इसके साथ ही ये भी सुनिश्चित कर दिया है कि इस कदम से सपा और कांग्रेस के बीच किसी भी तरह की फूट की न्‍यूनतम संभावना के कारण वोटों का बंटवारा नहीं होगा. मकसद बीजेपी को किसी भी तरह का लाभ नहीं देना है. 


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85-85-85 फॉर्मूला
इसी तरह महाराष्‍ट्र में भी कांग्रेस ने दांव चला है. इस बार के लोकसभा चुनाव में विपक्षी महा विकास अघाड़ी (शरद पवार-उद्धव ठाकरे-कांग्रेस) गठबंधन में से सबसे ज्‍यादा कांग्रेस ने सीटें जीतीं. उसी आधार पर विधानसभा चुनावों में भी सबसे ज्‍यादा सीटें मांग रही थी, इस कारण मामला फंसा हुआ था. पहले मीडिया के माध्‍यम से इस तरह की खबरें आईं कि कांग्रेस 100-105 सीटों पर लड़ेगी. उसके बाद शिवसेना 85-90 और 70-75 सीटों पर शरद पवार की पार्टी लड़ेगी. लेकिन एमवीए के नेताओं की जब प्रेस कांफ्रेंस हुई तो तीनों दलों ने समान 85-85-85 सीटों पर चुनावी सहमति का ऐलान करते हुए 288 सीटों वाली विधानसभा की बची हुई सीटें अन्‍य छोटे सहयोगी दलों या आपसी सहमति के आधार पर बांटने की बात कही. ये भी माना जा रहा है कि कांग्रेस ने मौके की नजाकत को देखते हुए किसी के समक्ष खुद को बड़ा भाई बताने से परहेज किया क्‍योंकि उसके ऐसा करने से उद्धव ठाकरे की शिवसेना को तकलीफ हो सकती थी. बीजेपी को ऐसी सूरतेहाल में उद्धव ठाकरे पर तंज कसने का मौका मिल जाता. लिहाजा सभी क्षेत्रीय दलों की भावना का सम्‍मान करते हुए कांग्रेस ने अपने कदम पीछे खींच लिए. अब बाकी बची सीटों पर चाहे जो तय हो लेकिन पब्लिक परसेप्‍शन इस बात का बनता दिख रहा है कि एमवीए के तीनों दल बराबरी की सीटों पर चुनाव लड़ रहे हैं. 


हालांकि कांग्रेस के इस मूव से सबसे ज्‍यादा फायदा शरद पवार को होता दिख रहा है. शरद पवार की पार्टी की सबसे कम सीटों पर दावेदारी थी लेकिन समानता और बराबरी के फॉर्मूले में उनको भी अधिक सीटें मिल गईं. इससे चुनाव जीतने की स्थिति में कौन बनेगा मुख्‍यमंत्री के फॉर्मूले को अपनाने में भी मदद मिलेगी. शरद पवार ने पहले ही कहा है कि जिस पार्टी के सबसे ज्‍यादा विधायक जीतेंगे उसको मौका मिलना चाहिए. बराबरी की सीटों पर लड़ने से सत्‍ता में आने की स्थिति में इस फॉर्मूले से सबसे ज्‍यादा सीटों पर जीतने वाले को फायदा मिलेगा.