नई दिल्लीः बड़े-बड़े व्यापारिक घरानों को छोड़कर कोरोना महामारी (Corona Pandemic) ने पूरी दुनिया की रोजी रोटी पर असर डाला है. लॉकडाउन (Lockdown)  ने रेड लाइट एरिया को भी बुरी तरह प्रभावित किया है. हाल ही के एक सर्वे के मुताबिक देह व्यापार में लगी सेक्स वर्कर्स का हाल बेहाल है. तीन राज्यों की 90 फीसदी सेक्स वर्कर बेबसी की जिंदगी जीने को मजबूर हैं. कोरोना से मौत के डर और कोविड प्रोटोकॉल की सख्ती ने ऐसे बाजारों में गुजर बसर करने वाली महिलाओं को कर्ज के दलदल में फंसा दिया है. 


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रेड लाइट एरिया पर हुआ शोध
तमिलनाडु (Tamil Nadu) के कोयंबटूर स्थित करुणा इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी साइंसेज (KITS) में क्रिमिनोलॉजी के एमरिटस प्रोफेसर डॉक्टर बेउल्लाह शेखर द्वारा हुए शोध के मुताबिक इस कम्युनिटी के लोग वित्तीय शोषण का शिकार हो रहे हैं. कोरोना के चलते मार्च से रेडलाइट एरिया में सन्नाटा है. ज्यादातर सेक्स वर्कर्स की आमदनी बंद हो चुकी है. KITS ने दिल्ली, कोलकाता, मुंबई, पुणे और नागपुर के रेड लाइट एरिया पर अध्यन किया था.


राष्ट्रीय एड्स नियंत्रण संगठन (National Aids Control Organisation) के मुताबिक, देश के करीब 7,76,237 सेक्स वर्कर्स में से 1,29,000 से ज्यादा तो महाराष्ट्र, दिल्ली और पश्चिम बंगाल में हैं. 


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जबरन गुलामी की मजबूरी  
Covid-19 के प्रकोप से इस सेक्टर में लिप्त महिलाओं को रोजी-रोटी के लाले पड़े हैं. इन हालातों में ज्यादातार सेक्स वर्कर्स, वेश्यालय मालिकों की जबरन गुलामी करने को मजबूर हो रही हैं. उनका कर्ज काफी बढ़ गया है और भविष्य में उसे चुकाने का कोई रास्ता भी नहीं दिख रहा है. लिहाजा ये महिलाएं बाकी जिंदगी भी कर्ज के जाल में फंसकर दूसरों के रहमोकरम पर बिताने को मजबूर होंगी. 


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वेश्यावृति में जबरन लाई जाती हैं 95% महिलाएं
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (National Crime Records Bureau) के आंकड़ों के मुताबिक, देश में मानव तस्करी का शिकार हुई 95 फीसदी लड़कियों और महिलाओं को वेश्यावृत्ति (prostitution) के पेशे में धकेल दिया जाता है. हालांकि असल आंकड़े तो और भयावाह हो सकते हैं. क्योंकि ताजा जानकारी के मुताबिक मिला डेटा तो चोरी-छिपे होने वाले देह व्यापार का एक छोटा हिस्सा भर होगा.       


इसलिए नहीं मिलती आंकड़ों की सही जानकारी
बता दें कि रेड लाइट एरिया में रहने वाली इन कमर्शियल सेक्स वर्कर्स के पास न तो बैंक अकाउंट होता है और न ही कोई पर्सनल आइडेंटिटी प्रूफ होता है, इसलिए उनकी डिटेल्स भी नहीं आती है. सेक्स वर्कर्स, वेश्यालय मालिकों और दलालों से उधार लेन देन को प्राथमिकता देती हैं क्योंकि इसके लिए उन्हें किसी पेपर वर्क की जरूरत नहीं पड़ती. सर्वे के मुताबिक 95 फीसदी महिलाएं तो कर्ज के कारण ही इस पेशे से बाहर निकलने के बारे में सोंच भी नहीं सकतीं. वहीं  रिपोर्ट के मुताबिक साल 2020 के आखिर तक इन सेक्स वर्कर्स का औसत कर्ज बढ़कर 6,95,982 रुपए हो जाएगा. 


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