नई दिल्ली: कोरोना वायरस (coronavirus) ने पूरी दुनिया में तबाही मचाई हुई है. लेकिन अब तक इस महामारी का कोई इलाज सामने नहीं आ पाया है. हालांकि तमाम देश इसकी दवा बनाने में लगे हुए हैं, मगर सफलता हासिल नहीं हो सकी है. 


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ऐसे में हाइड्रोक्सी क्लोरोक्वाइन को प्रयोग करके ये देखा जा रहा है कि क्या वह कोरोना वायरस के इलाज में वह कारगर हो सकती है. कुछ मरीजों को यह दवा देकर प्रयोग किया गया है. इसके अलावा ऐसे डॉक्टर जो कोरोना वायरस पॉजिटिव मरीजों की देखभाल में लगे हैं, उन्हें भी दवा देकर देखी जा रही है. हालांकि हर किसी को इसका इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. ये जानकारी एम्स के डायरेक्टर डॉ रणदीप गुलेरिया ने दी है.


बता दें कि Hydroxicloroquine मलेरिया के इलाज में काम आती है. इसके अलावा रूमेटाइड अर्थराइटिस और lupus जोकि ऑटोइम्यून डिसऑर्डर है, उसके इलाज में भी इस दवा का इस्तेमाल किया जाता है. 


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भारत इस दवा का सबसे बड़ा निर्माता है. क्योंकि मलेरिया के सबसे ज्यादा मामले भारत में ही आते हैं.  इसके अलावा अभी तक यह दवा अफ्रीका को निर्यात की जाती थी. क्योंकि वहां भी मलेरिया के कई केस सामने आते हैं. 


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फिलहाल की अगर बात करें तो भारत की औसतन घरेलू जरूरत इस दवा को लेकर 24 मिलियन Drugs की रहती है. इसके लिए भारत को जो रॉ मेटेरियल आता है, उसका 70 फीसदी हिस्सा चीन से ही आता है, जोकि तकरीबन 40 मीट्रिक टन होता है.  जिससे भारत में  20 करोड़ दवाएं बनाई जाती हैं.  


भारत के पास अभी रॉ मेटेरियल और दवाओं का 5 से 6 महीने का स्टॉक उपलब्ध है. चीन से अभी भी रॉ मेटेरियल और जरूरी केमिकल सप्लाई हो रहा है, यानी फिलहाल भारत निर्यात करने की स्थिति में आराम से है.