Spiti Valley: 700 झीलों से सैलाब का खतरा, ग्राउंड जीरो से जानिए कैसे बन रहीं तबाही की वजह
Dangerous Lakes In Spiti Valley: प्रकृति का रौद्र रूप ऐसा ही होता है. सैलाब ने लोगों को भागने का मौका तक नहीं दिया. कई लोगों की जान चली गई और कई लापता हो गए. ग्राउंड जीरो से जानिए हिमाचल प्रदेश में ये खतरा कितना बड़ा है.
लाहौल एंड स्पीती: जलवायु परिवर्तन से बन रहा खतरा भविष्य में हिमाचल प्रदेश (Himachal Pradesh) में तबाही की वजह बन सकता है. यानी उत्तराखंड में पिछले दिनों जो आपने देखा वो इसका सिर्फ ट्रेलर था. वैज्ञानिकों का मानना है कि हिमाचल प्रदेश के नदी बेसिन की झीलों का जलस्तर लगातार बढ़ रहा है और ग्लेशियर पर नई झीलें (Lakes In Spiti Valley) भी बन रही हैं. जिनके बारे में कोई डेटा या जानकारी नहीं है.
ग्राउंड जीरो से सैलाब के खतरे पर रिपोर्ट
इस खबर में जानिए वैज्ञानिकों की रिसर्च क्या कहती है. लेकिन उससे पहले ग्राउंड जीरो से जानिए कि ये खतरा कितना बड़ा है. हिमालय (Himalaya) के हिस्से में आने वाला वो इलाका जो प्राकृतिक तौर पर संवेदनशील है. इसमें उत्तराखंड (Uttarakhand) के ऊपर इलाकों के साथ-साथ हिमाचल के ऊपरी इलाके भी शामिल हैं.
ये देखने में तो बेहद खूबसूरत और रोमांचक लगता है लेकिन प्रकृति की इस तस्वीर का एक दूसरा पहलू भी है. जो उत्तराखंड के चमोली (Chamoli) में आई आपदा के दौरान सबने देखा. विकास की तमाम कंक्रीट की दीवारें कहां बह गईं पता ही नहीं चला. सबकुछ रखा रह गया. प्रकृति का रौद्र रूप ऐसा ही होता है. सैलाब ने लोगों को भागने का मौका तक नहीं दिया. कई लोगों की जान चली गई और कई लापता हो गए.
इस आपदा के बाद हिमालय के सभी संवेदनशील इलाके सवालों के घेरे में हैं. सवाल ये है कि जलवायु परिवर्तन के खतरे को देखते हुए हिमालयी क्षेत्र कितना सुरक्षित रह गया है और इसके लिए कौन जिम्मेदार है.
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कितना बड़ा है ये खतरा
ग्राउंड जीरो से जानिए हिमाचल प्रदेश के सिसु में ये खतरा कितना बड़ा है. स्पीती घाटी को वैली ऑफ ग्लेशियर कहते हैं. यहां कई झीलें ऐसी हैं जिनके बारे में लोग जानते हैं. लेकिन कई ऐसी भी हैं जिनके बारे में कोई नहीं जानता. यानी ग्लेशियर पिघलकर पिछले कई वर्षों के दौरान छोटी-छोटी झीलों में तब्दील हो रहे हैं या फिर उनका जल स्तर बढ़ रहा है.
गौरतलब है कि नुकसान तो ऐसा रहा नहीं है लेकिन आगे ग्लेशियर फट सकता है. अब स्थानीय लोगों का ये मानना है कि सरकार को जल्द से जल्द यहां बनी नई झीलों का भी पता लगा लेना चाहिए ताकि हालात से निपटने के लिए तैयारी पूरी हो और खतरे को टाला जा सके.
ग्लोबल वार्मिंग की वजह से ग्लेशियर पिघल रहे हैं. ये मुद्दा लगातार उठाया जा रहा है लेकिन इसके चलते और कितने खतरे पैदा हो रहे हैं उन्हें पहचानना सबसे बड़ी चुनौती है. हमारा मकसद डराना नहीं जागरूक करना है ताकि आप सिर्फ अपने लिए नहीं बल्कि प्रकृति के लिए भी सोचें.
हिमाचल प्रदेश के लाहौल एंड स्पीती की ऊंची चोटियों पर कई छोटी-बड़ी झीलें है जो हिमाचल के लिए खतरा बन सकती हैं. लेकिन सवाल ये है कि तैयारी क्या है. चमोली और केदारनाथ जैसी आपदा से बचने के लिए क्या रणनीति है. ताकि समय रहते ग्लेशियर के टूटने और पर्वतीय झीलों के कारण फ्लैश फ्लड से होने वाली तबाही को कम किया जा सके.
तेजी से पिघल रहे ग्लेशियर
ग्लेशियर लगातार पिघल रहे हैं और घाटी की झीलें खतरा बनती जा रही हैं. ये हम नहीं कह रहे बल्कि हिमाचल प्रदेश काउंसिल फॉर साइंस टेक्नोलॉजी एंड एनवायरमेंट के स्टेट सेंटर ऑफ क्लाइमेट चेंज की रिपोर्ट कहती है.
हिमालय क्षेत्र की चार नदी घाटियां जिनमें सतलुज, चेनाब, रावी और व्यास शामिल हैं. रिपोर्ट के मुताबिक, सतलुज नदी बेसिन की 769 झीलें और चेनाब बेसिन में 254 झीलें हैं.
चारों नदी घाटियों में लगभग 1600 झीलें हैं. जो इस वक्त चिंता का विषय बनी हुई हैं.
ग्लोबल वार्मिंग का परिणाम है कि लाहौल-स्पीति जिले में बारासिग्री ग्लेशियर तेजी से घटा है. अब हम आपको 4 हजार 140 मीटर की ऊंचाई पर स्थित घेपन पीक ग्लेशियर और घेपन लेक के बारे में बताते हैं. यहां आइसबर्ग पिघल रहे हैं और इस झील का जलस्तर लगातार बढ़ रहा है.
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अब इस ग्लेशियर को देखिए. स्टेट सेंटर ऑफ क्लाइमेट चेंज की रिपोर्ट्स के मुताबिक, इस ग्लोशियर का आकार पहले बहुत बड़ा था. लेकिन अब इस तरह बर्फ से टुकड़े झील के बीच में दिखाई दे रहे हैं जो ग्लेशियर से अलग होकर तैर रहे हैं.
वैज्ञानिकों ने हिमाचल प्रदेश में भविष्य में बनने वाली ग्लेशियर झीलों पर शोध किया है. सेटेलाइट से मिली तस्वीरों के जरिए ये पता चला है कि जलवायु परिवर्तन के कारण स्पीति क्षेत्र के चंद्रा घाटी में 65 ग्लेशियरों पर आने वाले समय में करीब 360 छोटी और बड़ी ग्लेशियर झीलें बनेगी.
आने वाले समय में कितनी झीलें चंद्रा घाटी में बनेंगी और ये खतरा कितना बड़ा हो सकता है ये भी जान लीजिए. चमोली की आपदा के बाद इस खतरे को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता और अब इससे जुड़ी जानकारी इकट्ठा करने के लिए जल्द ही वैज्ञानिकों को स्पीति की घेपन लेक भेज जाएगा.
इसके लिए हिमालयन नॉलेज सेंटर बनाया गया है जो उत्तराखंड और हिमाचल के डेटा को एक दूसरे से साझा करेगा. 2013 में केदारनाथ आपदा और अब चमोली में ग्लेशियर फटने से सबक लेकर हिमालय क्षेत्र में बन रही इन झीलों की निगरानी एक बड़ी जिम्मेदारी बन गई है क्योंकि तापमान के साथ-साथ खतरा भी बढ़ रहा है.
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