नई दिल्ली: दवा नियामक ड्रग कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया (DCGI) ने ग्लेनमार्क फार्मास्युटिकल्स (Glenmark Pharma) से COVID-19 के मरीजों पर एंटी वायरल फैबीफ्लू के इस्तेमाल के बारे में कथित ‘झूठे दावों’ पर स्पष्टीकरण मांगा है. साथ ही, दवा की कीमत पर भी कंपनी से सवाल किया है. DCGI ने यह कदम एक सांसद की शिकायत पर उठाया है.


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कंपनी को 17 जुलाई को लिखे पत्र में DCGI डॉ. वीजी सोमानी ने कंपनी के ‘झूठे दावे’ और ‘ज्यादा कीमत’ पर ध्यान आकर्षित किया है. उन्होंने लिखा है, ‘एक सांसद ने जानकारी दी है कि फेबिफ्लू (फेविपिराविर) से इलाज का खर्च 12,500 रुपये के करीब आएगा. कंपनी ने जो लागत तय की है वह गरीबों व मध्यम वर्गीय लोगों के लिहाज से सही नहीं है’.


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शिकायत के मुताबिक, कंपनी ने यह दावा किया है कि उसकी दवा हायपरटेंसन व मधुमेह जैसे दूसरे रोगों से पीड़ित कोरोना वायरस (CoronaVirus) संक्रमित रोगियों के इलाज में कारगर है. जबकि इसके प्रोटोकोल के संक्षिप्त परिचय में कहा गया है कि इसे सहरुग्णता की दशाा वाले लोगों पर आजमाने के लिए नहीं तैयार किया गया था. इस संबंध में पर्याप्त क्लीनिकल डाटा भी नहीं है. दवा नियामक ने कंपनी से इन सवालों पर स्पष्टीकरण देने को कहा है. हालांकि, कंपनी की तरफ से फिलहाल इस पर कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है.


मुंबई स्थित फार्मा कंपनी ग्लेनमार्क ने 13 जुलाई को कहा था कि उसने अपनी एंटीवायरल ड्रग फेबिफ्लू की कीमत 27 फीसदी कम करते हुए 75 रुपये प्रति टेबलेट कर दी है, जो कोरोना के मामूली और हल्के लक्षण वाले मरीजों के इलाज पर इस्तेमाल की जाती है. कंपनी ने पिछले महीने 103 रुपये प्रति टेबलेट की कीमत के साथ फेबिफ्लू को लांच किया था.


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शिकायतकर्ता सांसद ने कंपनी की ऑनलाइन कॉन्फ्रेंस और मीडिया रिपोर्टों के हवाले से टेबलेट की कीमत 103 रुपये बताते हुए डीसीजीआई के समक्ष प्रजेंटेशन भेजा है, जिसमें कहा गया है कि कंपनी के मुताबिक, मरीज को 14 दिन टेबलेट का सेवन करना होगा. इलाज के अलग-अलग चरण में 14 दिन में मरीज को कुल 122 टेबलेट लेनी होगी. 103 रुपये के हिसाब से यह खर्च करीब 12,500 रुपये पर पहुंच जाएगा. जो गरीब व्यक्ति के लिए वहन करना संभव नहीं है. गौरतलब है कि दवा नियामक ने 19 जून को फेबीफ्लू के विनिर्माण और विपणन को मंजूरी दी थी.