जरा, इस सवाल को बिना किसी कारण, यूं ही दूसरों के सामने उछाल कर देखिए. आप पाएंगे कि लोगों के बारे में राय देते हुए हम अक्‍सर निगेटिव होते हैं. इसके पीछे मूल वजह यही होती है कि अगर कोई काबिल और सबसे अच्‍छा है तो वह मैं हूं. 


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दूसरे के बारे में विस्‍तार से और अच्‍छी राय देना एक कला है. ऐसा नहीं कि मैं आपसे गलत बयानी की बात कर रहा हूं, मैं तो बस यह कह रहा हूं कि जिन्‍हें आप जानने का वादा करते हैं, जिनके साथ आप वक्‍त बिताते हैं, उनके प्रति आपकी राय, आपकी भावनाएं बेहद स्‍पष्‍ट और अच्‍छी हों तो यह चमत्‍कार की तरह काम करेगा. इसे अपने सुपरिचितों से शुरू करिए और फिर इसे उन सब तक विस्‍तार दे दीजिए जिनके बारे में आप कुछ भी न जानते हों. एक छोटी सी कहानी, जो शायद आपने पहले भी सुनी हो. लेकिन आज इसे एकदम नए और निजी संदर्भ में सुनिए..


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एक राजा के यहां एक व्‍यापारी पहुंचा. वह लकड़ी का बड़ा करोबारी था. राजा की पहचान राजा होने के साथ एक उदार, सभ्‍य और शिक्षित व्‍यक्‍ति के रूप में भी थी. इसलिए वह उससे मिलने पहुंच गया. राजा ने उससे भेंट की, लेकिन आमतौर पर मिलनसार रहने वाले राजा के मन में थोड़ी देर बात करने के बाद ही निगेटिव विचार आ गए. राजा को बात करते-करते ख्‍याल आया कि यह व्‍यापारी जरूर कुछ ऐसा कर रहा है, जो उसके राज्‍य के लिए अच्‍छा नहीं है. इसलिए इसे अभी जेल में डाल देना चाहिए.


खैर, राजा ने किसी तरह से अपनी भावनाओं पर काबू पाया, उसके जाने के बाद अपने सीनियर मंत्री को बुलाया और सारा मामला बताया. मंत्री ने अपने एक गुप्‍तचर को उसके पीछे लगा दिया. कुछ दिन बाद गुप्‍तचर से जरूरी जानकारी मिलने के बाद वह अपनी पहचान छुपाकर व्‍यापारी के घर तक पहुंच गया. उससे कहा, सुना है आपका कारोबार अच्‍छा नहीं चल रहा है. मैं कैसे आपकी मदद कर सकता हूं. व्‍यापारी ने बताया, 'मेरा मूल काम चंदन का है. चंदन के दाम इन दिनों बेहद कम हैं, सो मुझे परेशानी हो रही है. मंत्री ने कहा, यह दाम कैसे बढ़ेंगे. व्‍यापारी ने कहा, वैसे तुरंत कोई उपाय तो नहीं लेकिन अगर राजा मर जाए... तो उसके अंतिम संस्‍कार और उसके रिवाजों के लिए चंदन की मांग हो जाएगी. और मेरे दिन फि‍र सकते हैं'.


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मंत्री को इस  संवाद के बाद राजा की उस दिन की व्‍याकुल भावनाओं का उत्‍तर मिल गया. मंत्री ने महल जाकर एक सप्‍ताह तक चंदन की खरीद का आदेश दे दिया. ठीक एक सप्‍ताह बाद मंत्री ने एक बार फि‍र राजा और व्‍यापारी की मुलाकात करवाई. इस बार राजा को व्‍यापारी के बारे में पिछले बार जैसी कोई फीलिंग नहीं आई. व्‍यापारी तो अपने आर्डर से पहले ही गदगद था. दोनों को एक दूसरे से मिलकर अच्‍छा लगा. बाद में मंत्री ने राजा को सारा किस्‍सा बताते हुए समझाया कि व्‍यापारी जब पहली बार उससे मिला तो वह उसकी मत्‍यु की कामना कर रहा था. उसने राजा को व्‍यापारी की भावनाओं को पढ़ लेने के लिए बधाई भी दी.


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आप इस कहानी में कई पेंच निकाल सकते हैं. लेकिन मेरा ध्‍यान इसके ग्रामर पर नहीं, इसके सार पर है. हम मानकर चलते है कि कोई हमारा मन नहीं पढ़ सकता, लेकिन ऐसा होता नहीं. असल में जिंदगी में हमसे अधिक जानने वाले लोग हमेशा ज्‍यादा हैं, जबकि हम मानते हैं कि सबसे बड़े विशेषज्ञ हम ही हैं. इसलिए यह किस्‍सा हमारी रोजमर्रा की जिंदगी के बड़े काम की है. मैंने अक्‍सर पाया कि वह मुलाकातें जिसमें पूर्वग्रह न हो, या कम से कम हो, बेहद सुखद होती हैं. समस्‍या यह है कि हम चीज का तुंरत रिजल्‍ट चाहते हैं. दूसरे के बारे में कम से कम बात करना चाहते हैं.


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किसी के बारे में अच्‍छी राय बनेगी कैसे जब तक कि आप उसके बारे में पूर्वाग्रह से मुक्‍त न हों. लोगों से मिलना एक कला है. मिलते तो सभी हैं, लेकिन असर कम ही लोग छोड़ पाते हैं. हम अक्‍सर लोगों से निगेटिव इनपुट्स के साथ मिलते हैं. ऐसे में हमारी जानकारी या इनपुट हमारी भावनाओं को अपना असर दिखा चुके होते हैं. इसलिए आगे से लोगों के साथ किसी भी तरह के संवाद से पहले उनके बारे कोई नकारात्‍मक विचार न बनाएं. क्‍योंकि आपकी भावनाएं आपके शब्‍दों पर सवार हो जाती हैं. ऐसे में उनका असर नकारात्‍मक होने से इंकार नहीं किया जा सकता. इसलिए आगे से जब भी किसी से मिलिए उसे एकदम वही फीलिंग होनी चाहिए जैसे राजा और व्‍यापारी को दुबारा एक दूसरे से मिलकर हुई.


(लेखक ज़ी न्यूज़ में डिजिटल एडिटर हैं)


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