वह शो रूम जाने की तैयारी में थे. जिंदगी की पहली कार को घर लाने. अपने घर के बिल्‍कुल पास बन रही बहुमंजिला इमारत के पास-पास एक मजदूर परिवार बेहद संजीदगी से कुछ चर्चा कर रहा था. इस बार किसी तरह पैसे बचाना है, हर हाल में सेकंड हैंड साइकिल लेनी है. युवा दंपति यह सुनकर कुछ देर के लिए वहीं ठिठक गए. उनके दिमाग में घूमने लगा कि कितने दिनों से वह कार के मॉडल, उसके फीचर्स पर बात कर रहे हैं. बजट तो उनका भी सीमित है, लेकिन इतनी चिंता उनके माथे पर कभी नहीं आई जैसे इस मजदूर दंपति के माथे पर थी. 


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युवा दंपति कार लेने के लिए आगे बढ़ गए. लेकिन उसके बाद उन्‍होंने वह नहीं किया जो हममें से ज्‍यादातर लोग करते हैं. सुनी हुई पीड़ा को बिसार देना. बहुत हुआ...अब इससे बाहर आ जाएं. जैसी मानसिकता अधिकांश दोस्‍तों की होती है.


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हेमा विजय नोयडा में रहती है. वर्किंग वुमन हैं. तमाम व्‍यस्‍तता के बाद भी उन्‍होंने तय किया, कुछ करना है. ऐसा कुछ जिससे जब कभी मजदूर के घर के आगे से गुजरें तो कुछ खटके नहीं. अपराध बोध न हो. अपने प्रयास, संकल्‍प में हेमा को पत्रकार पति अंकुर विजयवर्गीय का पूरा साथ मिला. दोनों ने 12 बच्‍चे चुने आसपास से. उनको पढ़ाने का समय तय किया. हर दिन शाम 6 बजे. किसी भी हालात में, इसमें बाधा न आए. यह भी सुनिश्चित किया. 


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पिछले डेढ़ साल से यह सिलसिला जारी है. इनकी कॉपी किताबों, दूसरी छोटी-मोटी जरूरतों का ख्‍याल भी यह दंपति रख रहे हैं. जिससे बच्‍चों की पढ़ाई में किसी तरह की बाधा न आए. यह बहुत ही भावुक, छोटी सी कोशिश है. ऐसे लोगों के जीवन में सकारात्‍मक दखल की जो हमें बदले में कुछ नहीं दे सकते. हममें से बहुत से लोग इस तरह की कोशिशों को बहुत छोटा कहकर खारिज कर देते हैं. लेकिन अपने आसपास की तस्‍वीर बदलने के लिए किसी बहुत बड़े प्रयास की राह देखने की जगह ऐसी कोशिश कहीं अधिक सफल हो सकती है.


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हेमा और अंकुर की तरह हम सबको कभी न कभी ऐसे अनुभव हुए हैं, जब यह एहसास होता है कि दूसरों के लिए कुछ किया जाए. कुछ ऐसा करें, जिससे दूसरों की जिंदगी में कुछ योगदान दिया जा सके. लेकिन अधिकांश लोगों के साथ यह विचार संचारी भाव बनकर रह जाता है. दरअसल अच्‍छे, सकारात्‍मक विचार का हमारे दिमाग में लंबे समय तक टिक पाना मुश्किल होता है. ऐसे विचार व्‍यस्‍तता के जाल में फंसकर दम तोड़ देते हैं. जबकि एक ईमानदार कोशिश से कुछ और नहीं तो एक जिंदगी रोशन करने की शक्ति तो होती है.


इसलिए आइए, इन दिनों की मानसून की राहत भरी बूंदों के बीच ऐसे संकल्‍पों को व्‍यस्‍तता, टाल मटोल से बचाने का वादा खुद से करें. दूसरों को जिंदगी रोशन रहेगी तो कुछ रोशनी तो हमारे हिस्‍से भी आएगी. यही जिंदगी का नियम है. 


(लेखक ज़ी न्यूज़ में डिजिटल एडिटर हैं)


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