दयाशंकर मिश्र


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खुशी गूगल पर सबसे ज्‍यादा तलाश किए जाने वाले कीवर्ड में से एक है. इसके अनंत रूप हैं. कोई किसी वजह से खुश है, तो कोई इस वजह से कि दूसरा दुखी है. खुशी के अनगिनत कारणों का जितना हमसे संबंध है उतना ही दूसरों से है. सच तो यह है कि जब तक हम न चाहें हमें कोई दुखी नहीं कर सकता. इसका मतलब यह भी है कि खुश रहना स्वभाव है. इसका बाहरी कारणों से जुड़ाव तो है, लेकिन ऐसा मानना सही नहीं है कि यह नितांत बाहरी कारणों पर ही आधारित है. 


हममें से अधिकांश लोग हर दिन खुश रहने के ऐसे कारणों की खोज में लगे रहते हैं, जिनसे भविष्य सुखमय/खुशहाल बन सके. इस तरह हर कोई खुशी की फ्यूचर प्लानिंग में जुटा है, लेकिन आज खुश नहीं है, क्योंकि उसकी पूरी चेतना तो खुशी पाने की चिंता में खप रही है. किसी भी चीज को पाने से जुड़ी खुशी का कुल समय इतना छोटा है कि आप इससे अधिकतम कुछ घंटे ही खुश रह सकते हैं.


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आज जो हमें मिला है उसके मिलते ही हम आगे की योजना पर चले जाते हैं, क्योंकि इसके मिलने का उत्सव मनाने या थोड़ा ठहरकर उसे लोगों के साथ साझा करने का समय ही हमारे पास नहीं होता. ऐसा इसलिए है क्योंकि हमारा सबकुछ हमारी चेतना, निजी लक्ष्यों तक सीमित है. हमारी खुशियों में दूसरों की भागीदारी कम होते होते अब लगभग गायब सी हो गई है. हम दूसरों की खुशी से खुश नहीं होते, तो भला दूसरे हमारे हिस्से की खुशी से क्यों पुलकित होने लगेंगे. 


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खुशी के बारे में दार्शनिक खलील जिब्रान कहते हैं, 'हमारी हंसी और खुशी जिस कुएं (हृदय) से निकलती है वह अक्सर हमारे आंसुओं के खारे जल से भरा होता है. हमारे चेहरे से जब गम का यह मुखौटा उतर जाता है, तो वही हमारी खुशी बन जाता है. हमारी आत्मा के भीतर दुख जितना उतर जाएगा हम उतनी ही खुशी हासिल कर सकेंगे.' (यहां आप सरलता के लिए गम की जगह संघर्ष को भी रख सकते हैं.)


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खुशी का हमारे लक्ष्य के परिणाम से सीधा वास्ता नहीं है. जो आज हम किसी भी कीमत पर हासिल करना चाहते हैं अगले ही दिन वह हमें अक्सर छोटा मालूम होने लगता है. खुशियों का असली मजा इंतजार और संघर्ष के सौंदर्य में है. हमारे लक्ष्य के हिस्सेदार जितने अधिक होंगे, हमारी खुशियों का दायरा उतना ही विस्तृत होता जाएगा. जो जीवन के प्रति जितने अधिक निष्ठावान, प्रेम से भरे हैं, खुशियों से उनका उतना ही गहरा नाता है. हमारे चेहरे पर आने वाली मुस्कान के जितने अधिक स्वार्थहरित कारण होंगे, हमारी मुस्कान उतनी ही अधिक स्थायी और सौंदर्यशाली होगी. जो दूसरों के सुख में सरलता से शामिल हो जाता है, प्रकृति स्वयं उसके सुख में शामिल होने को उत्सुक रहती है.


(लेखक ज़ी न्यूज़ में डिजिटल एडिटर हैं)


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