नई दिल्ली: हरियाणा विधानसभा चुनाव (Haryana assembly election result 2019) के रिजल्ट आ चुके हैं. यहां मुख्य मुकाबला भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और कांग्रेस के बीच थी, लेकिन इस लड़ाई में महज 31 साल के दुष्यंत चौटाला (Dushyant Chautala) किंगमेकर बनकर निकले हैं. दुष्यंत चौटाला (Dushyant Chautala) की पार्टी जननायक जनता पार्टी (जेजेपी) को इस चुनाव में भले ही 10 सीटें मिली हैं, लेकिन आलम यह है कि बीजेपी और कांग्रेस दोनों दलों को सरकार बनाने के लिए इनके समर्थन की जरूरत है. चाबी चुनाव चिन्ह के साथ चुनाव में उतरी जेजेपी को जनता ने हरियाणा के भावी सरकार की चाबी सौंप दी है.


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दरअसल, हरियाणा विधानसभा चुनाव रिजल्ट में बीजेपी को 40 सीटें मिली हैं. उन्हें बहुमत के जादुई आंकड़े तक पहुंचने के लिए 6 सीटों की दरकार है. ऐसे में जेजेपी अगर उन्हें सपोर्ट करती है तो बीजेपी आसानी से सरकार बना लेगी. दूसरी तरफ कांग्रेस को 31 सीटें मिली हैं. अगर जेजेपी कांग्रेस के साथ जाती है तो उसे कांग्रेस के पास 41 विधायकों का समर्थन हो जाएगा. ऐसे में कांग्रेस निर्दलीय और अन्य छोटे दलों के 9 विधायकों में से छह को अपने पाले में करके सरकार बना सकते हैं. इस तरह हरियाणा में सरकार बनाने में जेजेपी का रोल अहम हो गया है. आइए 7 प्वाइंट में समझने की कोशिश करते हैं कि आखिर दुष्यंत चौटाला (Dushyant Chautala) कैसे हरियाणा में इतने खास हो गए.


1. INLD में फूट के बाद 2 धड़ों में बंटा परिवार
2014 के विधानसभा चुनाव में इंडियन नेशनल लोकदल (INLD) दूसरे नंबर पर रही थी, लेकिन इस बार दुष्यंत चौटाला (Dushyant Chautala) इससे अलग हो गए. बताया जाता है कि चाचा अभय चौटाला के चलते दुष्यंत की INLD में खास हैसियत नहीं थी. इसलिए उन्होंने अलग होने का फैसला लिया.



2. दिसंबर 2018 में जननायक जनता पार्टी बनाई
चाचा अभय चौटाला के साथ बात नहीं बनने के चलते दुष्यंत चौटाला (Dushyant Chautala) ने करीब 11 महीने पहले नई जननायक जनता पार्टी का गठन किया. इस पार्टी के निर्माण के साथ ही INLD के कार्यकर्ताओं का बड़ा हिस्सा इस पार्टी में आ गए. यानी यह पार्टी भले ही नई है, लेकिन इसके पास कार्यकर्ता पुराने हैं, जिसका उन्हें चुनाव प्रचार में काफी फायदा हुआ.


3. एक साल में सियासी ज़मीन मज़बूत की
दुष्यंत चौटाला (Dushyant Chautala) के बारे में कहा जाता है कि वे बेहद उत्साही हैं. उनके अंदर जोश और जज्बे की कमी नहीं हैं. उन्होंने महज 11 महीने में अपनी नई पार्टी को चुनाव में लड़ने लायक बनाने में सफल साबित हुए हैं.


4. हरियाणा में डोट टू डोर कैंपेन किया
एक तरफ जहां बीजेपी बड़ी-बड़ी रैलियां और रोड शो कर रही थी, वहीं जेजेपी ने डोर टू डोर प्रचार पर फोकस किया. टीवी चैनलों और अखबारों में बीजेपी के विज्ञापन पटे हुए थे. मीडिया के इन माध्यमों पर जेजेपी को खास तवज्जो नहीं मिल पा रहे थे. इसके विकल्प के तौर पर जेजेपी ने सोशल मीडिया के जरिए लोगों तक अपनी बात पहुंचाई, जिससे उन्हें फायदा भी हुआ है.


5. BJP से नाराज़ जाट वोट बैंक को एकजुट किया
मनोहर लाल खट्टर की सरकार से जो भी जनता नाराज है उनके सामने जेजेपी मजबूत विकल्प के तौर खुद को पेश कर पाई. हरियाणा में बड़ी आबादी कांग्रेस भूपेंद्र सिंह हुड्डा के शासन से ऊबकर बीजेपी को वोट दिया था. अब बीजेपी की खट्टर सरकार से भी उदासीनता मिलने पर इन वोटरों ने जेजेपी को सपोर्ट किया है.


6. जाटों को लुभाने में सफल रहे
हरियाणा में 25 फीसदी जाटों का वोट है. पिछले विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने जाट बनाम गैर जाट की राजनीति का ट्रेंड शुरू कर दिया था. इस वजह से हरियाणा के जाट खुद को उपेक्षित समझ रहे थे. जाट वोटर करीब 30 सीटों पर निर्णायक भूमिका में हैं. जेजेपी ने इन्हीं 30 सीटों पर अपना फोकस बनाए रखा, जिसमें से 10 पर उसे जीत मिली है.


7. दुष्यंत ने सबसे ज्यादा जाट को दिए टिकट
हरियाणा में टिकट बंटवारे पर नजर डालें तो जेजेपी ने सबसे ज्यादा 34 जाट प्रत्याशियों को टिकट दिए थे. उनके चाचा अभय चौटाला ने भी अपने समाज के इतने ही लोगों को टिकट दिया था. वहीं कांग्रेस ने 27, बीजेपी 20, आप 15 और बीएसपी ने 6 जाट प्रत्याशी मैदान में उतारे थे. सीट बंटवारे के जरिए दुष्यंत जनता को संदेश देने में सफल रहे कि वे ही जाटों के असली चेहरा हैं.


विदेश से पढ़े-लिखे हैं दुष्यंत
दुष्यंत चौटाला हिसार के रहने वाले हैं, और हरियाणा के कद्दावर नेता रहे चौधरी देवीलाल के परिवार से आते हैं. ओमप्रकाश चौटाला के पोते दुष्यंत को राजनीति विरासत में मिली लेकिन अपनी साख खुद की बनाई हुई जमीन से हासिल की है. पहली बार वह 2014 में लोकसभा चुनाव के दौरान चर्चा में आए जब उन्होंने कुलदीप बिश्नोई को हराया था. उस वक्त उन्होंने सबसे कम उम्र में सांसद बनने का रिकॉर्ड बनाया था. दुष्यंत चौटाला की पढ़ाई-लिखाई कैलिफोर्निया स्टेट यूनिवर्सिटी से हुए है. वह यहां से ग्रेजुएट हैं. इंडियन लोक दल से बाहर किए जाने के बाद भी वह कहते रहे हैं कि वही देवीलाल की असली विरासत हैं. बताते हैं कि 1996 के लोकसभा चुनाव में वह परिवार के मुखिया देवी लाल के साथ रोहतक में प्रचार के दौरान हुआ करते थे. राजनीति का गुणा-गणित उन्होंने उसी बचपन से सीखा है. फिलहाल यह कुछ देर में साफ हो जाएगी दुष्य़ंत किस ओर जाना जरूरी समझेंगे.