नई दिल्‍ली: वर्षों से वेंटिलेटर के सहारे सांस लेने और बिस्तर पर पड़े रहने के बाद अगर किसी को पता चले कि अब वह उठ सकता है. चल फिर सकता है. और खुद से सांस भी ले सकता है तो इसे चमत्कार ही कहा जाएगा. अमेरिका में हुए इस अविष्कार का फायदा अब भारत के मरीज़ों को भी मिलने लगा है.


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मनदीप कौर अपने पिता की सर्जरी होते हुए देख रही हैं, क्योंकि ये सर्जरी बेहद अहम है. मनदीप के पिता पहले मरीज़ हैं, जिन पर ये सर्जरी की जा रही है. तीन साल से वेंटिलेटर पर सांस लेने को मजबूर मनदीप के पिता अब जल्द ही खुद से सांस ले पाएंगे. इस सर्जरी में फेफड़ों को पेसमेकर से जोड़ा जा रहा है. जिससे अब बिना वेंटिलेटर की मदद के सांस ली जा सकेगी. सांस लेने का काम पेसमेकर के जरिए होगा.


 


अमेरिका के ओहायो की क्लीवलैंड यूनिवर्सिटी का अविष्कार अब भारत में इस्तेमाल किया जाने लगा है. दिल्ली के वसंत कुंज में बने स्पाइनल इंजरी अस्पताल में अमेरिका की क्लीवलैंड यूनिवर्सिटी के डॉक्टरों ने यहां आकर ये आपरेशन किया है. स्पाइनल इंजरी अस्पताल के डायरेक्टर डॉ एच एस छाबड़ा ने बताया कि रीढ़ की हड्डी में चोट लगने की वजह से या एक्सीडेंट की वजह से लकवा हो जाने पर जो मरीज़ वेंटिलेटर से सांस लेने को मजबूर हो जाते हैं- वो अब इस सर्जरी की मदद से बिस्तर से उठ सकेंगे, चल फिर सकेंगे और पेसमेकर की मदद से सांस ले सकेंगे. भारत में तकरीबन 15 फीसदी ऐसे मरीज़ हैं जो इस सर्जरी की मदद से वेंटिलेटर से निजात पा सकते हैं.


अस्पताल के सर्जन डॉ चरक के मुताबिक अगर हादसे के बाद मरीज़ जल्दी ये पेसमेकर लगवा ले तो वह चलने फिरने के लायक हो जाता है. हालांकि सालों से वेंटिलेटर पर रह रहे मरीज़ों को इस सर्जरी के बाद पेसमेकर से सांस लेने में 2-6 महीने का वक्त लग सकता है. सर्जरी के ज़रिए फेफड़ों में दो-दो इलेक्ट्रोड फिट किए जाते हैं और पेसमेकर शरीर के बाहर ही रहता है, जिसकी बैटरी हर महीने बदलनी पड़ती है. हालांकि फिलहाल ये सर्जरी महंगी है. इम्पलांट की कीमत तकरीबन 18 लाख रुपए है और आपरेशन के ज़रिए इसे लगवाने में कुल खर्च 25 लाख तक का आ सकता है.