नई दिल्लीः असम की राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर (NRC) के मसौदे को लेकर ममता बैनर्जी सहित विपक्षी दलों की ओर से सियासी घमासान जारी है. वहीं दूसरी ओर पाकिस्तान से पलायन कर भारत आए हिंदू शरणार्थियों की सुध लेने वाला कोई नहीं है.असम में 40 लाख लोगों ( बंगलादेशी घुसपैठ) के जीवन अधर में जाने की संभावनाओं को देखते हुए विपक्ष उग्र है लेकिन संसद से चंद कदम की दूरी पर दिल्ली के मजनूं के टीले में पाकिस्तान से आए हिंदू परिवारों का कोई फिक्रमंद नहीं है.इन्हें पूछने के लिए ना तो दिल्ली की केजरीवाल सरकार है और ना ही विपक्ष का कोई नेता.हिंदू शरणार्थियों का हाल जाने ज़ी मीडिया की टीम दिल्ली के मजनूं के टीले के पास बसे पाकिस्तानी रिफ्यूजी कैंप पहुंची, जहां पाया कि पिछले 7 साल से उनकी सुध लेने वाला कोई नहीं आया.


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पाकिस्तान से आए एक हिंदू शरणार्थी सोना दास ने ज़ी मीडिया बताया कि हम 2011 में पाकिस्तान से पलायन कर हम भारत इस उम्मीद में आए थे कि भारत हमे अपना लेगा लेकिन यहां आने के बाद कुछ नहीं हुआ.सोना दास ने ज़ी मीडिया को पाकिस्तानी पासपोर्ट भी दिखाया,जो 2010 में बना था और 2015 में उसकी वैधता खत्म हो चुकी है.उन्होंने ने कहा कि हमे उम्मीद थी कि भारत हमारा अपना देश है यहां हमे नागरिकता मिल जाएगी लेकिन सात साल बीत गए है लेकिन अब भी हम नागरिकता के इंतजार में हैं.


शरणार्थियों ने बताया कि पाकिस्तान से हमने पलायान इसलिए किया था ताकि हम धर्म परिवर्तन और यातनाओं से बच सकें.शरणार्थियों के घर की दीवार पर तिरंगे रंग से रंगा हुआ मिला जिसपर शरणार्थियों ने कहा ये उनका भारत से प्यार और दिल रिश्ता है.


कुछ हिंदू शरणार्थियों ने कहा कि ना हमारे पास बिजली है ना रहने को घर है और ना पीने को पानी है. रोहिंग्या के लिए तो आवाज उठाया जाता है लेकिन 7 साल से हम यहां रह रहे हैं हमें पूछने वाला कोई नहीं है ना हमारे पास कोई नेता आया ना कोई सरकारी अफसर आया और ना ही सरकार ही आई. कुछ शरणार्थियों ने तो यहां तक कहा कि इससे अच्छा तो यह था कि हम पाकिस्तान में ही रहते और धर्म परिवर्तन ही कर लेते क्योंकि वहां से हम अपना घर बार यहां तक की जमीन छोड़कर भारत आए थे कि भारत हमें अपना लेगा, पाकिस्तान ने तो पहले ही ठुकरा दिया था और भारत में रहकर भी हम भारत के अब तक नहीं हो सके हैं.दरअसल, दिल्ली के मंजनूं के टीले, आर्दशनगर और रोहिणी के रिफ्यूजी कैंप में 2000 से भी अधिक पाकिस्तानी हिंदू शरणार्थी रह रहे हैं. दिल्ली के मजनू के टीले में करीब 115 परिवार में 600 से अधिक लोग रह रहे हैं.