नई दिल्ली: विभिन्न आपराधिक मामलों में सज़ा पूरी कर जेल से रिहा होने वाले क़ैदियों को समाज की मुख्य धारा में लाने के लिए योग को न सिर्फ़ रोज़गार का जरिया बनाया गया है. बल्कि क़ैदियों की मनोवृत्ति को शांत एवं संयत बनाने में योग की भूमिका का अध्ययन भी किया जा रहा है. आयुष मंत्रालय ने इस पहल की शुरुआत दिल्ली स्थित देश की सबसे बड़ी तिहाड़ जेल से की है. 


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इस जेल में बंद लगभग 16 हज़ार क़ैदियों के लिए मंत्रालय के मोरारजी देसाई योग संस्थान ने ‘संजीवन’ योजना शुरू की है. इसके तहत सज़ा पूरी करने जा रहे क़ैदियों को योग प्रशिक्षक बनाया जा रहा है. अन्य क़ैदियों को योग का प्रशिक्षण देने के साथ साथ, संस्थान के विशेषज्ञ क़ैदियों की मनोवृत्ति को शांत एवं संयत बनाने में योग की भूमिका का अध्ययन भी कर रहे है. 



इसके लिए पिछले सप्ताह आयुष मंत्रालय के सचिव राजेश कोटेजा और दिल्ली के मुख्य सचिव विजय देव ने संजीवन योजना की शुरुआत की. इस संबंध में देव ने बताया कि योजना की रूपरेखा पिछले साल 30 नवंबर को तिहाड़ प्रशासन और योग संस्थान के बीच हुए सहयोग समझौते (एमओयू) के माध्यम से तय हुयी थी.



तिहाड़ में शुरू हो रहे हैं दो पाठ्यक्रम


संस्थान के निदेशक डॉ आई. वी. बासवरेड्डी ने बताया कि संजीवन के तहत तिहाड़ में दो पाठ्यक्रम शुरू किए गए हैं. पहला, योग विज्ञान में परास्नातक पाठ्यक्रम (मास्टर ट्रेनर्स प्रोग्राम) है. चार महीने का यह कोर्स करने वाले क़ैदी रिहा होने के बाद योग प्रशिक्षक बन सकेंगे. पहले चरण में सौ क़ैदियों (75 पुरुष और 25 महिला) को इसके लिए चुना गया है. इन्हें संस्थान की ओर से प्रशिक्षक बनने का प्रमाणपत्र भी दिया जाएगा जिसके आधार पर वे रिहाई के बाद योग प्रशिक्षण को आजीविका का माध्यम बना सकेंगे.


दूसरा फ़ाउंडेशन कोर्स है. इसमें क़ैदियों को योग विज्ञान की तकनीकी एवं व्यवहारिक जानकारी और प्रयोग विधि से अवगत कराते हुए परास्नातक कोर्स के लिए तैयार किया जाएगा.


1000 कैदियों को किया जाएगा प्रशिक्षित 


रेड्डी ने बताया कि संजीवन के तहत एक साल में 1000 कैदियों को प्रशिक्षित करने की योजना है. साथ ही संस्थान के विशेषज्ञ योग से जुड़े कैदियों की मनोदशा पर पड़ने वाले प्रभाव का अध्ययन भी कर रहे हैं. इसमें संजीवन से जुड़े क़ैदियों और सामान्य क़ैदियों की मनोदशा का तुलनात्मक अध्ययन कर शोध रिपोर्ट तैयार की जाएगी.


कैदियों के रोजगार का जरिया बनेगा योग


विजय देव ने बताया कि जेल से रिहाई के बाद क़ैदियों को आजीविका के गहरे संकट का सामना करना पड़ता है क्योंकि सरकारी या ग़ैर सरकारी स्तर पर, उन्हें कहीं भी नौकरी पर कोई नहीं रखना चाहता. समाज में स्वीकृति नहीं मिलने के कारण वे फिर से अपराध की दुनिया में लौट जाते हैं.


उन्होंने कहा कि संजीवन के प्रशिक्षित क़ैदियों को रिहाई के बाद संस्थान और सरकार की ओर से योग शिक्षक के पदों की भर्ती में वरीयता दी जाएगी ताकि ये समाज की मुख्य धारा में शामिल हो सकें.


(इनपुट भाषा से)