नई दिल्ली: भारत में बढ़ते रेप मामले बेहद चिंताजनक और संवेदनशील मुद्दा हैं. ये मुद्दे तब ज्यादा भयावह लगते हैं जब एक पिता के उसकी खुद की बेटी के साथ यौन उत्पीड़न का मामला सामने आता है. एक ऐसे ही मामले में उम्रकैद की सजा सुनाते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने टिप्पणि करते हुए ऐसे जुर्मों की कड़ी निंदा की है.


क्या थे दिल्ली हाई कोर्ट के शब्द? 


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दिल्ली हाई कोर्ट ने सोमवार को एक पिता को उसकी बेटी के यौन उत्पीड़न के लिए दी गई उम्रकैद की सजा को बरकरार रखा और कहा कि पिता-पुत्री के संबंधों में यौन अपराध अनैतिकता की पराकाष्ठा है और इससे पूरी गंभीरता से निपटा जाना चाहिए. पीठ ने कहा कि पीड़िता के पिता की मिलीभगत से तथाकथित चाचा द्वारा किए गए आपराधिक काम, यौन उत्पीड़न से कहीं अधिक थे और पीड़िता के लिए आघात का कारण बने जो बहुत लंबे समय तक बरकरार रह सकता है.


अपराध में 'पाप का भाव' छिपा होता है 


न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल और न्यायमूर्ति अनूप जयराम भंभानी की पीठ ने कहा कि परिवार के नजदीकी रिश्तों के साथ किए गए अपराध में ''पाप का भाव'' छिपा होता है और एक मासूम बच्चे के खिलाफ की गई यौन हिंसा किसी भी मामले में घिनौना कृत्य है.



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पिता के साथ चाचा की भी मिलीभगत


अदालत ने कहा कि अभियोजन(prosecution) के रुख से ये साफ है कि पीड़िता के पिता ने 'जानबूझकर और इरादतन' मामले के सह-आरोपी चाचा को पीड़िता तक पहुंच उपलब्ध करायी. अदालत ने पिता की उम्रकैद की सजा बरकरार रखते हुए कहा, 'हमारे विचार से, यह पिता के खिलाफ भारतीय दंड संहिता(IPC) की धारा 34 (साझा इरादा) के तहत कार्रवाई के लिए पर्याप्त है और यह आवेदक(petitioner) ए-2 (चाचा) द्वारा किए गए सभी कृत्यों के लिए जिम्मेदार बनाता है.'


(इनपुट- भाषा)


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