2 June Ki Roti: जून का महीना शुरू हो चुका है. 2 जून शुरू होते ही सोशल मीडिया पर 'दो जून की रोटी' की कहावत वायरल होने लगती है. लोगों का कहना है कि वो लोग बहुत भाग्यशाली होते हैं जिन्हें दो जून की रोटी मिलती है. दरअसल, दो जून की रोटी से लोगों का मतलब दो वक्त के खाने से होता है. यह तो आप सभी जानते हैं कि हर व्यक्ति की सबसे आम जरूरत भोजन हैं. दो वक्त की रोटी के लिए एक व्यक्ति क्या कुछ नहीं करता नौकरी, बिजनेस, गरीब व्यक्ति रिक्शा, मजदूरी तक करता है.


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जानें, क्या है दो जून की रोटी का अर्थ?


बता दें कि 'दो जून की रोटी' की कहावत का अर्थ केवल तारीख से नहीं, बल्कि दो जून का मतलब वक्त से है. अवधि भाषा में वक्त को जून कहा जाता है. ऐसे में इसका मतलब दो समय यानी कि सुबह और शाम की रोटी से है. शायद ही आप लोग जानते होंगे की 'दो जून की रोटी' का वाक्य उत्तर भारत में काफी लोकप्रिय है और दो जून की तारीख आते ही लोग इस कहावत को तारीख से जोड़कर बोलना शुरू कर देते हैं.



आज दिन 'दो जून की रोटी' से जुड़े कई जोक्स सोशल मीडिया पर वायरल होने लगते हैं. जैसेः- सभी से गुजारिश है कि आज के दिन रोटी जरूर खाएं, क्योंकि दो जून की रोटी बहुत ही मुश्किल से मिलती है. देश में बनने वाली सरकार देश से गरीबी मिटानें के लिए कई योजनाएं लेकर आती है. लाखों-करोड़ों रुपये इन योजनाओं के तहत देश से गरीबी मिटाने पर जोर दिया जाता है. लेकिन, इस के बाद भी लाखों लोगों को दो वक्त की रोटी नसीब नहीं होती और हमेशा की तरह उन्हें भूखे पेट ही सोना पड़ता है.


जानकारी के मुताबिक साल 2017 में आए नेशनल फैमिली हेल्थ सर्वे (national family health survey) के अनुसार, देश में 19 करोड़ लोग ऐसे जिन्हें वक्त पर भोजन नहीं मिलता. इसका मतलब आज भी लाखों लोगों को भोजन नहीं मिलने वाला है और आज भी उन्हें भूखे पेट सोना पड़ेगा. तो वहीं, सभी लोगों को दो जून की रोटी नसीब हो सके, इसके लिए केंद्र सरकार कोरोनाकाल से मुफ्त राशन मुहैया करवा रही है, जिसका 80 करोड़ जनता को सीधा फायदा मिल रहा है.


देश के अन्नदाताओं को कहें धन्यवाद


आपको बता दें कि कृषि प्रधान देश कहे जाने वाले भारत में किसानों की आर्थिक स्थिति कुछ खास नहीं है, जितना पसीना किसान खेतों में बहाता है सरकार को किसानों की आर्थिक स्थिति और भी ज्यादा बेहतर करनी चाहिए, साथ ही सरकार को किसानों के लिए और योजनाओं पर काम करना चाहिए. पूरा देश जानता है कि एक साल तक देशभर के किसानों ने कृषि कानूनों के खिलाफ दिल्ली की विभिन्न सीमाओं पर प्रदर्शन किया.


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