Delhi News: दिल्ली की सेहत मोहल्ला क्लीनिक कर रहे दुरुस्त, जानिए कितनी हो रही लोगों की बचत?
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Delhi News: दिल्ली की सेहत मोहल्ला क्लीनिक कर रहे दुरुस्त, जानिए कितनी हो रही लोगों की बचत?

Mohalla Clinc Delhi : मोहल्ला क्लीनिक की अहमियत को देखते हुए दिल्ली सरकार इस पर सालाना 212 करोड़ रुपये खर्च कर रही है. इसकी लोकप्रियता बढ़ने की वजह वहां होने वाले 212 तरह के टेस्ट और 110 किस्म की दवाइयां हैं, जिससे मरीजों का काफी जेब खर्च बच जाता है.

फाइल फोटो

Delhi News: दिल्लीवासियों की सेहत सुधारने के लिए अरविंद केजरीवाल के मोहल्ला क्लीनिक वाले विजन की चर्चा दूर-दूर तक है. गरीबों और कम आय वालों को अपने मोहल्ले में डॉक्टरी परामर्श, दवाइयां और छोटे-मोटे टेस्ट करवाना अब आसान हो गया है. इतना ही नहीं मोहल्ला क्लानिक की वजह से से दिल्ली को 500 करोड़ रुपये का बूस्ट मिला है. दिल्ली में मोहल्ला क्लीनिक की संख्या 530 है. यहां हर रोज 64 हजार लोग दवा, जांच और इलाज करा रहे हैं. इसका मतलब है कि सालाना मोहल्ला क्लीनिक पहुंचने वाले मरीजों की संख्या 2.33 करोड़  है. अगर  दो साल पहले के लगातार तीन साल के आंकड़ों पर नज़र डालें तो मोहल्ला क्लीनिक आने वाले मरीजों की संख्या लगातार बढ़ती चली गई .

मोहल्ला क्लीनिक में मरीजों की दस्तक 2019-20 से लेकर अगले तीन साल का आंकड़ा देखें तो मोहल्ला क्लिनिक में आने वाले मरीजों की संख्या हर साल बढ़ी है. 2019-20 में जहां 1.05 करोड़ मरीज पहुंचे थे, वहीं 2020-21 में 1.52 करोड़ और 2021-22  1.82 करोड़ मरीज अपना इलाज कराने पहुंचे. दिल्ली सरकार की आधिकारिक वेबसाइट के मुताबिक दिल्ली में 68 सरकारी अस्पताल हैं. मोहल्ला क्लीनिक की वेबसाइट पर दावा है कि दिल्ली के अस्पतालों में ओपीडी के लिए 1.6 करोड़ मरीजों में कमी आई है. मोहल्ला क्लीनिक की अहमियत को देखते हुए दिल्ली सरकार इस पर सालाना 212 करोड़ रुपये खर्च कर रही है. मोहल्ला क्लीनिक की लोकप्रियता बढ़ने की वजह वहां होने वाले 212 तरह के टेस्ट और 110 किस्म की दवाइयां हैं, जिससे मरीजों का काफी जेब खर्च बच जाता है.

दिल्ली में ज्यादातर गरीब परिवार में पति पत्नी दोनों काम के लिए घर से बाहर जाते हैं, ताकि इनके घर का चूल्हा हर दिन जलता रहे. बीमार चाहे खुद हो या परिवार का कोई सदस्य, काम छोड़कर घर पर बैठना दुखदायी हो जाता है. इतना वक्त भी नहीं होता कि सरकारी अस्पतालों में जाकर छोटी-मोटी बीमारियों के लिए कतारों में खड़े हों और इलाज कराएं. मोहल्ला क्लीनिक ने गरीबों को दिल्ली में झोलाछाप डॉक्टरों की चंगुल से भी मुक्त कराया है. नीम-हकीम पैसे लेकर लोगों की सेहत से खिलवाड़ करते थे और कई बार समय पर सही इलाज न मिलने से मरीजों की जान पर बन आती थी. ऐसे में मोहल्ला क्लीनिक ही उनका आसरा है.
 
पूर्वी दिल्ली के दल्लुपुरा में रहनेवाली अनिला बताती हैं कि सर्दी आते ही उसकी छोटी सी बेटी काफी बीमार हो गई.. सर्दी जुकाम के साथ उसे सांस लेने में तकलीफ थी. अनिला पास की सोसायटी के तीन घरों में झाडू-पोछे का काम करती है. उसका पति भाड़े का ई-रिक्शा चलाता है. घर पर बूढ़ी सास है जो बच्ची को दंपति की अनुपस्थिति में संभालती है. अनिला का कहना है कि वो अपनी बच्ची को मोहल्ला क्लीनिक ले गई और डॉक्टर को दिखाया. डॉक्टर ने उसे दवाइयां दी और सर्दी से बचाकर रखने को कहा वरना निमोनिया होने की बात कही. अनिला खुश है कि पांच दिन में उसकी बच्ची पूरी तरह ठीक हो गई.   उसे न तो काम से छुट्टी लेनी पड़ी और न ही पति के दिनचर्या में बदलाव करना पड़ा. अगर मोहल्ला क्लीनिक नहीं होता तो अनिला को प्राइवेट क्लीनिक जाना पड़ता, जिसकी फीस 1000 रुपये है. उसे पति के साथ बेटी को लेकर क्लीनिक जाना पड़ता जिससे दोनों की दिहाड़ी पर असर पड़ता, सो अलग. अनिला ने बताया कि मोहल्ला क्लीनिक की वजह से न सिर्फ इलाज का 1000 रुपये बच गए बल्कि पति के भी कम से कम 500 रुपए बच गए.

अनिला यूपी के प्रतापगढ़ की है. उसका कहना है कि अगर वो प्रतापगढ़ में होती तो उसकी बच्ची की बीमारी में कम से कम उसे 3000 रुपए खर्च करने पड़ते, क्योंकि गांव में झोलाछाप डॉक्टरों का बोलबाला है जो 400-500 लेकर इलाज करते हैं लेकिन एमबीबीएस डॉक्टर को दिखाने के लिए उसे शहर जाना पड़ता जो करीब 20 किलोमीटर दूर है.

इनपुट : हरि शंकर जोशी

 

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