सोशल मीडिया से लेकर राजनीतिक गलियारों में भारत बनाम इंडिया को लेकर चल रही बहस के बीच इतिहासकारों का कहना है कि ईसा पूर्व पांचवीं शताब्दी के ग्रीक मूल वाले ‘India’ शब्द का अंग्रेजों से कोई वास्ता नहीं है
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Bharat vs India: इतिहासकारों के मुताबिक इंडिया ईसा पूर्व पांचवीं शताब्दी से हमारे इतिहास का हिस्सा है. यूनानी और फारसी इतिहासकारों ने भी इसका इस्तेमाल किया था. इरफान हबीब के मुताबिक इंडिया नाम को ब्रिटिश के साथ जोड़ना कोरा झूठ है.
Bharat vs India: सोशल मीडिया से लेकर राजनीतिक गलियारों में भारत बनाम इंडिया को लेकर चल रही बहस के बीच इतिहासकारों का कहना है कि ईसा पूर्व पांचवीं शताब्दी के ग्रीक मूल वाले ‘इंडिया’ शब्द का अंग्रेजों से कोई वास्ता नहीं है. साथ ही उन्होंने इसे औपनिवेशिक अतीत का अवशेष बताने वाली दलीलों को खारिज किया है. उनका यह भी कहना है कि संविधान के अनुच्छेद एक में ‘इंडिया और भारत’ दोनों नामों का ‘इंडिया, दैट इज भारत’’ के रूप में जिक्र है और दोनों ही नाम इतिहास का हिस्सा हैं और पूरी तरह से वैध हैं.
विपक्षी दलों का दावा कितना सही?
दरअसल भारत की पहचान सिंधु नदी के उस पार स्थित देश के रूप में की गई. सिंधु नदी को अंग्रेजी में इंडस कहते हैं. समय के साथ लोग इसे इंडिया के नाम से पुकारने लगे. हाल ही में इंडिया और भारत को लेकर बहस उस समय बढ़ गई, जब जी20 सम्मेलन में शामिल होने के लिए विदेशी राष्ट्राध्यक्षों समेत अन्य मेहमानों को प्रेसिडेंट ऑफ भारत के नाम से न्योता भेजा गया. विपक्षी दलों ने निमंत्रण पत्र में प्रेसिडेंट ऑफ भारत लिखे जाने के पीछे का कारण अपने गठबंधन INDIA (Indian National Developmental Inclusive Alliance) के नाम को बताया. विपक्षी दलों ने दावा किया कि सरकार देश के नाम से ‘इंडिया’ शब्द को हटाना चाहती है. हालांकि ये दावा कितना सही है, ये भविष्य में देखने वाली बात होगी, क्योंकि अगर G20 सम्मेलन की बात की जाए तो इसके लोगो में भारत और इंडिया ('G20 भारत 2023 इंडिया') दोनों लिखा है.
'इंडिया' ईसा पूर्व पांचवीं शताब्दी से हमारे इतिहास का हिस्सा
इतिहासकार एस. इरफान हबीब के मुताबिक ब्रिटिश का इंडिया नाम से कोई वास्ता नहीं है. यह ईसा पूर्व पांचवीं शताब्दी से हमारे इतिहास का हिस्सा है. यूनानी इतिहासकार मेगस्थनीज और फारसी इतिहासकारों ने इसका इस्तेमाल किया था. इसलिए भारत की तरह ही इंडिया भी हमारे इतिहास का हिस्सा है. नई दिल्ली में आयोजित जी20 के दो दिवसीय शिखर सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहचान ‘भारत’ का प्रतिनिधित्व करने वाले नेता के तौर पर पेश की गई.
इंडिया को ब्रिटिश के साथ जोड़ना कोरा झूठ
इरफान हबीब के मुताबिक इंडिया नाम को ब्रिटिश के साथ जोड़ना कोरा झूठ है. सरकार द्वारा पिछले साल सितंबर में राजपथ का नाम बदलकर कर्तव्य पथ किए जाने को लेकर इतिहासकार ने कहा कि किंग्सवे और क्वीन्सवे को देश की आजादी के तुरंत बाद क्रमश: राजपथ और जनपथ नाम दिया गया था. राजपथ के ‘राज’ का ब्रिटिशराज से कोई वास्ता नहीं है. राजपथ दिल्ली के रायसीना हिल्स को इंडिया गेट से जोड़ता है.
एक नाम श्रेष्ठ और एक निम्न कैसे?
इतिहासकार सलिल मिश्रा भी इरफान हबीब की दलीलों से इत्तेफाक रखते हुए कहते है कि भौगोलिक, पारिस्थितिक, जनजातीय, सामुदायिक और अन्य आधार पर देश की पहचान के लिए भारत, इंडिया, हिंदुस्तान, जम्बूद्वीप और आर्यावर्त का उपयोग किया गया. यह भारत के लंबे, विविध और समृद्ध इतिहास का ही संकेत है. उन्होंने कहा, बेशक विश्व स्तर पर इंडिया और भारत व्यापक रूप से उपयुक्त शब्द हैं और दोनों का अपना इतिहास है. ऐसा कोई तरीका नहीं है जिससे हम एक को दूसरे पर विशेषाधिकार दे सकें और ऐसा कोई तरीका नहीं है जिससे वह खुद एक को श्रेष्ठ और दूसरे को निम्न मान सकें.
संविधान बनने से पहले भी हुई थी बहस
सलिल मिश्रा ने इतिहास के पन्नों को पलटते हुए बताया कि इंडिया, दैट इज भारत पर बहस कोई नई बात नहीं है. 18 सितंबर, 1949 को एक चर्चा के दौरान संविधान सभा के विभिन्न सदस्यों ने भी देश के लिए कई नाम सुझाए थे. एच. वी. कामथ ने हिंदुस्तान, हिंद और भारतभूमि या भारतवर्ष जैसे नाम सुझाए थे.वहीं कांग्रेस सदस्य हरगोविंद पंत ने इंडिया के स्थान पर भारत और भारतवर्ष नाम रखने की वकालत की. संविधानसभा की बहस के दौरान कांग्रेस के एक अन्य नेता कमलापति त्रिपाठी ने कहा, हमारे समक्ष प्रस्तुत प्रस्ताव में ‘भारत दैट इज इंडिया’ का उपयोग ज्यादा उचित होता, लेकिन अंतत: संविधानसभा के अध्यक्ष डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने कामथ द्वारा प्रस्तावित संशोधन को मतदान के लिए रखा और इस तरह अनुच्छेद एक ‘इंडिया डैट इज भारत' बना.