हैवानियत पर इंसानियत की जीत का भरोसा दिलाती है ‘तुम पहले क्यों नहीं आए’
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हैवानियत पर इंसानियत की जीत का भरोसा दिलाती है ‘तुम पहले क्यों नहीं आए’

किताब में जिन बच्‍चों की कहानियां हैं, उनमें से कई को संयुक्‍त राष्‍ट्र जैसे वैश्विक मंच से विश्‍व नेताओं से मुखातिब होने और बच्‍चों के अधिकार की मांग उठाने के मौके भी मिले.

हैवानियत पर इंसानियत की जीत का भरोसा दिलाती है ‘तुम पहले क्यों नहीं आए’

नई दिल्ली: कॉन्सिटीट्यूशन क्लब में आज अभिनेता अनुपम खेर ने शांति के नोबेल पुरस्कार से सम्मानित कैलाश सत्यार्थी की किताब ‘तुम पहले क्यों नहीं आए’ का लोकार्पण किया. इसमें दासता और उत्पीड़न की कैद से प्रताड़ित बच्चों और उन्हें मुक्त कराने की 12 सच्ची कहानियां हैं. इस कार्यक्रम में बॉलीवुड अभिनेता अनुपम खेर भी मौजूद रहे. नोबल पुरस्कार विजेता ने कहा कि इन कहानियों को पढ़कर अगर आपकी आंखों में आंसू आते हैं तो यह आपकी इंसानियत का सबूत है. हमारे लिए यह बहुत महत्वपूर्ण है कि हम खुद भी अपने भीतर के बच्चे को पहचानें. 

अनुपम खेर ने कहा कि कैलाश सत्‍यार्थी ने समाज के असली नायकों को गढ़ा है. जैसे कि महात्‍मा गांधीजी ने कहा था कि उनका जीवन ही उनका संदेश है, ठीक वैसे ही कैलाश सत्‍यार्थी का जीवन ही उनका संदेश है. कार्यक्रम का आयोजन राजकमल प्रकाशन और इंडिया फॉर चिल्ड्रन के संयुक्त तत्वावधान में किया गया.

‘तुम पहले क्यों नहीं आए’ में जिन बच्‍चों की कहानियां हैं, उनमें से कई को संयुक्‍त राष्‍ट्र जैसे वैश्विक मंच से विश्‍व नेताओं से मुखातिब होने और बच्‍चों के अधिकार की मांग उठाने के मौके भी मिले. इसके बाद बेहतर बचपन को सुनिश्चित करने के लिए कई राष्‍ट्रीय-अंतरराष्‍ट्रीय कानून भी बने. कार्यक्रम से ठीक पहले बच्चों के ‘हम निकल पड़े हैं’ समूह गान और नारों ने वातावरण को उल्लास से भर दिया। इस दौरान बच्चों ने ‘हर बच्चे का है अधिकार, रोटी खेल पढ़ाई प्यार’ का नारा लगाया. कार्यक्रम में सुमेधा कैलाश, राजकमल प्रकाशन के प्रबंध निदेशक अशोक माहेश्वरी और पुस्तक के नायक (पूर्व बाल मजदूर) भी मौजूद रहे. 

अनुपम खेर ने कहा, फिल्मों के नायक भले ही लार्जर देन लाइफ हों, लेकिन सत्यार्थी ने असली नायकों को बनाया है. वे खुद में एक प्रोडक्शन हाउस हैं. फिल्मों में जो नायक-नायिका होते हैं, वे नकली होते हैं. असली नायक-नायिका तो इस किताब के बच्चे हैं, जिन्हें कैलाश सत्यार्थी ने बनाया है. ये आपकी ही नहीं, देश की भी पूंजी हैं. इसके बाद अनुपम खेर ने किताब के कुछ अंश भी पढ़कर सुनाए. 

सत्‍यार्थी ने कहा, इस किताब को कागज पर लिखने में भले ही मुझे 12-13 साल लगे हों, लेकिन इसमें जो कहानियां दर्ज हैं, उन्हें मेरे हृदय पटल पर अंकित होने में 40 वर्षों से भी अधिक समय लगा है. मैं साहित्यकार तो नहीं हूं पर एक ऐसी कृति बनाने की कोशिश की है जिसमें सत्य के साथ साहित्य का तत्व भी समृद्ध रहे.  

‘तुम पहले क्यों नहीं आए’ किताब के बारे में
कैलाश सत्यार्थी ने  ‘तुम पहले क्यों नहीं आए’ में दर्ज हर कहानी अंधेरों पर रोशनी, निराशा पर आशा की, अन्याय पर न्याय की, क्रूरता पर करुणा की और हैवानियत पर इंसानियत की जीत का भरोसा दिलाती है, लेकिन इस जीत का रास्ता बहुत लंबा, टेढ़ा-मेढ़ा और ऊबड़-खाबड़ रहा है. उस पर मिली पीड़ा, आशंका, डर, अविश्वास, अनिश्चितता, खतरों और हमलों के बीच इन कहानियों के नायक और मैं, वर्षों तक साथ-साथ चले हैं, इसीलिए ये एक सहयात्री की बेचैनी, उत्तेजना, कसमसाहट, झुंझलाहट और क्रोध के अलावा आशा, सपनों और संकल्प की अभिव्यक्ति भी है.

पुस्तक में ऐसी 12 सच्ची कहानियां हैं जिनसे बच्चों की दासता और उत्पीड़न के अलग-अलग तरीकों (विभिन्न इलाकों तथा काम-धंधों में होने वाले शोषण) को समझा जा सकता है. जैसे पत्थर व अभ्रक की खदानें, ईंट-भट्ठे, कालीन कारखाने, सर्कस, खेतिहर मजदूरी, जबरिया भिखमंगी, बाल विवाह, दुर्व्यापार (ट्रैफिकिंग), यौन उत्पीड़न, घरेलू बाल मजदूरी और नरबलि आदि. हमारे समाज के अंधेरे कोनों पर रोशनी डालती ये कहानियां एक तरफ हमें उन खतरों से आगाह करती हैं, जिनसे भारत समेत दुनियाभर में लाखों बच्चे आज भी जूझ रहे हैं. दूसरी तरफ धूल से उठे फूलों की ये कहानियां यह भी बतलाती हैं कि हमारी एक छोटी-सी सकारात्मक पहल भी बच्चों को गुमनामी से निकालने में कितना महत्वपूर्ण हो सकती है.