नई दिल्ली: 9 महीने के मासूम बच्चे को पैदा होने से पहले ही एक ऐसी बीमारी ने जकड़ लिया, जिसका इलाज करने में 5 से 10 सर्जरी, कई सालों का समय, और करोड़ों का खर्च लग सकता है. इतने लंबे चौड़े इलाज के लिए माता-पिता को सही इलाज, सही डॉक्टर और सही अस्पताल तो चाहिए ही, लाखों-करोड़ों के खर्च का इंतजाम भी करना है. बच्चे का इलाज हर अस्पताल नहीं कर सकता. देश के सबसे प्रीमियर रिसर्च संस्थान एम्स में इस बच्चे का इलाज संभव है, या फिर बड़े कॉरपोरेट मल्टी स्पेशिलिटी अस्पताल इस बच्चे का इलाज करने में समर्थ है. जाहिर है कि प्राइवेट अस्पताल में इसका खर्च लाखों से करोड़ों तक में आ सकता है. इसीलिए बच्चे के माता-पिता ने सबसे पहले एम्स का दरवाजा खटखटाया, लेकिन एम्स में बच्चे का एक MRI टेस्ट करवाने में ही मां बाप का सब्र जवाब दे गया.  


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बच्चे के पिता शौकत अली जब बच्चे को एम्स लेकर पहुंचे तो वहां लंबी लाइनों, और कई महीनों से लेकर सालों बाद की तारीखों से जूझते-जूझते उनका हौसला टूट गया. एम्स की ओपीडी में दिखाने के बाद ब्रेन का एमआरआई स्कैन करवाने की सलाह दी गई. जिसकी तारीख 2 से 3 महीने बाद की मिली. 3 महीने के बाद जो MRI टेस्ट हुआ उसे देखकर एम्स के न्यूरोसर्जन ने तुरंत ऑपरेशन करने के लिए एडमिशन लेने को कहा, लेकिन एडमिशन के लिए एम्स के जनरल वॉर्ड में 2 साल बाद और प्राइवेट वॉर्ड में 6 महीने बाद की तारीख थी. एक बच्चा जिसे एमरजेंसी सर्जरी की सलाह खुद एम्स ने दी थी, उसके मां-बाप के लिए इतना इंतजार करने का मतलब था बच्चे की जान को जोखिम में डालना. बच्चे के पिता शौकत अली ने गुड़गांव के पारस अस्पताल का रुख किया. जहां वो न्यूरोसर्जन मिले जो खुद कभी एम्स में डॉक्टर रह चुके थे. डॉ सुमित सिन्हा का न्यूरोसर्जरी का एम्स का अनुभव काम आया और पारस अस्पताल में बच्चे का पहला ऑपरेशन कामयाब रहा.  


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9 महीने के बच्चे के पिता सरकारी नौकरी में हैं तो पहले ऑपरेशन में CGHS (central govt health scheme) की सुविधा होने के बावजूद एक ऑपरेशन में तकरीबन 4 लाख का बिल का भुगतान कर चुके हैं. जन्म से लेकर बीमारी का सही पता लगाने में 5 लाख रुपए अलग लग चुके हैं. इसके अलावा भविष्य में होने वाली 3-4 सर्जरी का खर्च अभी बाकी है.  


जेनेटिक बीमारी Apert Syndrome का शिकार है मासूम  
बच्चे को अपर्ट सिंड्रोम है. मेडिकल भाषा में इसे क्रेनियोस्टेनोसिस कहा जाता है. ये एक जेनेटिक बीमारी है, जो गर्भ के दौरान ही जीन्स में हुए म्यूटेशन की वजह से हो जाती है. इस बीमारी में बच्चे की मानसिक और शारीरिक ग्रोथ पर असर पड़ता है. सिर की हड्डियां आपस में जुड़ जाती हैं. इससे न सिर का आकार बढ़ पाता है और न ही ब्रेन डेवलप हो पाता है. आंखे फैली रह सकती हैं. तलुवा भी चिपका रहता है, जिससे सांस लेने में दिक्कत होती है. आंखो पर प्रेशर रहता है जिससे आंखो की रोशनी खराब हो सकती है. पैरों और हाथों की उंगलियां भी जुडी रहती हैं.  


सर्जरी की चुनौतियां
जन्म के बाद जल्द सर्जरी करनी जरुरी होती है, लेकिन कई ऑर्गन प्रभावित होने से सर्जरी करना मुश्किल होता है. 5-6 सर्जरी हो सकती हैं. पहली सर्जरी 6-9 महीने में होती है जो स्कल यानी खोपड़ी की होती है. पैरों और उंगलियों के लिए 1 साल पर प्लास्टिक सर्जरी. फिर चेहरे का आकार ठीक करने के लिए 5 साल की उम्र में प्लास्टिक सर्जरी. दिल पर असर हो तो उसकी सर्जरी करनी पड सकती है. बच्चे के 6 महीने की उम्र से लेकर 20 साल की उम्र तक सर्जरी हो सकती है. 


प्रेगनेंसी के 20 हफ्ते पर होने वाले अल्ट्रासाउंड स्कैन में इस सिंड्रोम का पता चल सकता है. बच्चे की मां सना का अल्ट्रासाउंड तो हुआ, लेकिन वो उस वक्त वो बिहार के सुपौल में थी. जहां न स्कैन में कुछ दिखा और न स्कैन करने वाले डॉक्टर कुछ समझ पाए. वर्ना ऐसे बच्चों के मामले में अबॉर्शन की सलाह दी जाती है. क्योंकि जन्म के बाद कई सर्जरी के बाद भी बच्चा कितना सामान्य जीवन जी पाएगा, ये कहना मुश्किल ही होता है. केवल बड़े मल्टी स्पेशिलिटी अस्पताल ही बच्चे का इलाज कर पाते हैं. लेकिन सरकारी अस्पतालों में तारीखों से जूझते-जूझते इलाज  में काफी देर हो सकती है.  


AIIMS में वेटिंग  
एम्स में साधारण टेस्ट के लिए एक सप्ताह तो रुटीन MRI और CT Scan जैसे टेस्ट के लिए 2 से 6 महीने तक की तारीख मिलना नॉर्मल है. हालांकि एमरजेंसी में आए मरीजों को किस्मत से इलाज मिल भी जाता है, लेकिन ओपीडी में दिखाने के बाद अर्जेंट और एमरजेंसी ऑपरेशन वाले मामलों में भी 2 महीने से 2 साल तक कोई भी तारीख दी जा सकती है.  


बता दें कि एम्स में 7 बड़े और 5 छोटे ऑपरेशन थिएटर हैं. वेटिंग लिस्ट कम करने के लिए एम्स में 12 नए ऑपरेशन थिएटर तैयार किए जा रहे हैं. इसके अलावा अलग-अलग डिपार्टमेंट्स के पास अपने-अपने ओटी भी हैं. एम्स में अब दो शिफ्ट में ऑपरेशन किए जाने पर भी विचार चल रहा है. सुबह 8 से 2 और दोपहर 2 से रात 8 बजे, जिससे वेटिंग लिस्ट की लाइलाज हो जिससे बीमारी का इलाज किया जा सके. ओटी होने से समस्या का हल नहीं होता. ऑपरेशन थिएटर के साथ-साथ सपोर्ट स्टाफ एनेस्थिसिया के एक्सपर्ट और उतने ही डॉ भी हर वक्त सर्जरी के लिए उपलब्ध होने भी जरुरी हैं.  


आम आदमी या तो अपना घर बार बेचकर, लोन लेकर या सारी जमा पूंजी लुटाकर प्राइवेट अस्पताल में जान बचा सकता है या बड़े सरकारी अस्पतालों की वेटिंग लिस्ट में शामिल होकर अपनी किस्मत वाली तारीख तक सलामत रहने की उम्मीद कर सकता है.