MCD में मेयर बनने के क्या हैं नियम, क्यों पार्षद के अलावा सांसद भी करते हैं यहां वोट?
Delhi Mayor Election: MCD एक्ट के अनुसार चुनाव के बाद सदन की पहली बैठक में मेयर के चुनाव की प्रक्रिया शुरू होती है, मेयर बनने के लिए 138 वोट मिलना जरूरी है.
नई दिल्ली: दिल्ली नगर निगम चुनाव (MCD Election) के नतीजे आ चुके हैं. 250 वार्डों में AAP को 134 और BJP को 104 सीटें मिली हैं. नतीजों से स्पष्ट हैं कि AAP को बहुमत मिला हैं, लेकिन इसके बाद भी BJP और AAP दोनों पार्टियां अपना-अपना मेयर बनाने की बात कह रही हैं.
BJP और AAP के मेयर बनाने के दावे की बीच एक बात है जो सबके जहन में है कि बहुमत न मिलने के बाद भी BJP अपना मेयर कैसे बना सकती है. दरअसल इसके पीछे की वजह है MCD के वो नियम, जिसके तहत मेयर का चुनाव होता है. इसी नियम की वजह से चंडीगढ़ में नगर निगम चुनाव हारने के बाद भी BJP का मेयर बना.
केंद्र सरकार की भूमिका
MCD एक्ट की धारा 53 के अप्रैल महीने में वित्तीय बैठक में मेयर का चुनाव होता है, लेकिन इस बार दिसंबर महीने में चुनाव होने की वजह से केन्द्र सरकार की भूमिका इसमें बढ़ गई है. नियमानुसार MCD के कमिश्नर चीफ सेक्रेटरी के माध्यम से LG को बैठक बुलाने और चुनाव के लिए प्रिसाइडिंग ऑफिसर नियुक्त करने के लिए कहेंगे. इसके बाद LG गृहमंत्रालय से अनुमति लेकर इसे मंजूरी देंगे. इसके साथ ही मेयर की नियुक्ति न होने तक केंद्र सरकार एक विशेष अधिरकारी की नियुक्ति करते हैं, जो MCD के काम देखते हैं. मई 2022 से MCD की ये जिम्मेदारी IAS अधिकारी अश्विनी कुमार के पास है.
मेयर की चयन प्रक्रिया
MCD एक्ट के अनुसार चुनाव के बाद सदन की पहली बैठक में मेयर के चुनाव की प्रक्रिया शुरू होती है, इसमें पहले नामांकन और फिर वोटिंग होती है. वोटिंग के बाद रिजल्ट टाई होने पर विशेष आयुक्त द्वारा ड्रा निकाल कर विजेता की घोषणा की जाती है.
कौन कर सकता है वोटिंग
मेयर के चुनाव में सभी 250 पार्षद, 7 लेकसभा सांसद और 3 राज्यसभा सांसद और विधानसभा अध्यक्ष के 14 मनोनीत विधायक अध्यक्ष पद के लिए वोट डालते हैं. मेयर बनने के लिए 138 वोट मिलना जरूरी है.
क्रॉस वोटिंग
मेयर पद के लिए कोई भी पार्षद क्रॉस वोटिंग कर सकता है, ऐसे में अगर BJP या AAP किसी भी पार्टी में क्रॉस वोटिंग होती है, तो किसी भी पार्टी का मेयर बन सकता है. क्रॉस वोटिंग करने वाले पार्षदों पर दल-बदल कानून लागू नहीं होता. उनकी पार्षदी बनी रहेगी. हालांकि पार्टियां अपने स्तर पर कार्रवाई कर सकती हैं, लेकिन क्रॉस वोट किसने किया, यह पता कर पाना भी मुश्किल है.
एक साल के लिए ही बनता है मेयर
नगर निगम में चुने गए सभी पार्षदों का कार्यकाल 5 साल का होता है, लेकिन मेयर एक साल के लिए ही चुना जाता है. इसके साथ ही दिल्ली नगर निगम एक्ट के अनुसार ये भी निर्धारित किया गया है कि पहले साल महिला मेयर चुनी जाएगी, वहीं तीसरे साल अनुसूचित जाति का मेयर होगा. बचे हुए 3 सालों में कोई भी मेयर का चुनाव लड़ सकता है.