Delhi News: दिल्ली में पहली बार डबलडेकर वायाडक्ट (Doubledecker Viaduct) बनाने की तैयारी चल रही है. इसी के साथ पहली बार दिल्ली में अनोखे इंटिग्रेटेड पोर्टल्स (Integrated Portals) का निर्माण किया जा रहा है. बता दें कि डबलडेकर वायाडक्ट में एक पिलर के दो हिस्सों पर नीचे गाड़ियों के लिए फ्लाईओवर का निर्माण किया जाएगा और फ्लाईओवर के ऊपर मेट्रो लाइन को तैयार किया जा रहा है. बता दें कि डबलडेकर वायाडक्ट का निर्माण दिल्ली से पहले जयपुर और नागपुर में किया जा चुका है. मगर एक-दूसरे के पैरेलल मेट्रो लाइन और फ्लाईओवर के निर्माण के लिए इस तरह के इंटिग्रेटेड पोर्टल्स का निर्माण पूरे देश में पहली बार किया जा रहा है.


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पहली बार इंटिग्रेटेड पोर्टल्स का होगा निर्माण


इस बात की जानकारी देते हुए DMRC के प्रधान कार्यकारी निदेशक अनुज दयाल ने बताया कि दिल्ली मेट्रो के इतिहास में पहली बार इस तरह के इंटिग्रेटेड पोर्टल्स का निर्माण किया जा रहा है. उन्होंने बताया कि यह एक मेट्रो और फ्लाईओवर का एक ऐसा इंटिग्रेटेड स्ट्रक्चर है, जिसमें एक ही पोर्टल पर मेट्रो लाइन और फ्लाईओवर, दोनों टिके होंगे. उन्होंने बताया कि फेज-4 में मजलिस पार्क से मौजपुर के बीच बन रहे नए मेट्रो कॉरिडोर के सूरघाट और जगतपुर स्टेशनों के बीच पीडब्ल्यूडी के सहयोग से इस अनूठे स्ट्रक्चर का निर्माण किया जा रहा है.


DMRC के अधिकारी ने आगे बताया कि सिग्नेचर ब्रिज और वजीराबाद रोड के बीच आउटर रिंग रोड के किनारे जिस जगह ये इंटिग्रेटेड पोर्टल्स बनाए जा रहे हैं, उसके ठीक बगल में अभी एक फ्लाईओवर बना हुआ है, जिस पर से गाड़ियां निकलती हैं. इंटिग्रेटेड पोर्टल्स की मदद से इस फ्लाईओवर को और एक्सटेंड किया जा सकेगा, जिससे दूसरी तरफ से भी गाड़ियां निकल सकेंगी. पोर्टल के आधे हिस्से पर फ्लाईओवर बनेगा, वहीं आधे हिस्से पर मेट्रो लाइन का वायाडक्ट रखा जाएगा, जिस पर से पिंक लाइन की मेट्रो गुजरेगी. इससे एक ही स्ट्रक्चर का डबल इस्तेमाल किया जा सकेगा.


इस खास तकनीक होगा निर्माण


आपको बता दें कि इस पूरे फ्लाईओवर की लंबाई 457.35 मीटर होगी, जिसमें कुल 21 पोर्टल्स बनाए जाएंगे. इसकी चौड़ाई करीब 26 मीटर और जमीन से ऊंचाई करीब 10 मीटर होगी। 21 में से 12 पोर्टल्स का निर्माण कार्य लगभग पूरा हो चुका है. लेकिन, 9 पोर्टल्स का निर्माण कार्य अब भी बाकी है. इन पोर्टल्स का फ्लाईओवर और मेट्रो वायाडक्ट का डबल लोड होने वाला है. इसलिए इसके निर्माण के लिए खास तकनीकों का इस्तेमाल किया जा रहा है.