Delhi News: देशभर में समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) को लाने की बात चल रही हैं. इस बीच ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड (AIMPLB) ने समान नागरिक संहिता (Uniform Civil Code) का विरोध किया है. बता दें कि यूसीसी (UCC) के बारे में लॉ कमीशन के सचिव ने AIMPLB को जनता से राय और विचार मांगने के बाद सही प्रतिक्रिया देने के लिए कहा था, जिसको लेकर AIMPLB ने समान नागरिक संहिता पर एक ड्राफ्ट तैयार किया है. वहीं AIMPLB ने उस ड्राफ्ट को लॉ कमीशन को दो दिया है.


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इस ड्राफ्ट में मुस्लिम बोर्ड ने प्रस्तावित कानून पर अपनी आपत्तियां जताई हैं. बोर्ड ने ड्राफ्ट में लिखा है कि मुस्लिम समुदाय का कहना है कि यह उनके धार्मिक हितों के खिलाफ होगा. यह ड्राफ्ट बुधवार यानी 5 जुलाई को बोर्ड की एक वर्चुअल बैठक में चर्चा के लिए प्रस्तुत किया गया.


UCC से धार्मिक मौलिक अधिकार होंगे प्रभावित
बैठक के दौरान AIMPLB ने कहा कि यह देश की अलग-अलग धार्मिक संस्कृतियों के खिलाफ है. बोर्ड ने जेंडर जस्टिस, सेक्युलरिज्म, राष्ट्रीय एकता से लेकर तमाम रीति-रिवाजों पर इसके प्रभाव को लेकर आपत्ति जताई है. बोर्ड ने संविधान के अनुच्छेद 25, 26 और 29 धार्मिक मौलिक अधिकारों के बारे में जानकारी देते हुए आपत्ति जताई है. मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड ने कहा कि धार्मिक मौलिक अधिकार हमारे देश का लोकतांत्रिक ढांचा है. यूसीसी से यह प्रभावित होगा.


वहीं बोर्ड ने कहा कि UCC को लेकर दिए गए नोटिस में कई चीजें स्पष्ट नहीं है. बता दें कि विधी आयोग ने UCC पर अलग-अलग पक्षों और हितधारकों को अपनी आपत्तियां दर्ज कराने के लिए 14 जुलाई तक का समय दिया था.


वहीं मुस्लिम बोर्ड ने UCC को राजनीति और प्रचार का साधन बताया. साथ ही बोर्ड ने कहा कि लॉ कमीशन पहले भी यह कह चुका है कि यूसीसी न तो जरूरी है, न ही वांछनीय है. वहीं अब यह देखकर आश्चर्य होता है कि इतने कम समय में एक के बाद एक आयोग फिर से जनता की राय मांग रहा है. वो भी बिना कोई खाका बताए कि आयोग क्या करना चाहता है.


संविधान की आड़ में UCC पर वार
वहीं मुस्लिम बोर्ड ने संविधान का हवाला देते हुए कहा कि हमारे देश का सबसे महत्वपूर्ण दस्तावेज भारत का संविधान है. वहीं संविधान ने अलग-अलग समुदायों को अलग-अलग अधिकारों का हकदार बनाया है. इसमें अलग-अलग धर्मों को अलग-अलग जगह दी गई है.


21वें विधि आयोग पर आपत्ति
वहीं AIMPLB ने कहा कि सरकार 21वें विधि आयोग द्वारा तैयार परामर्श रिपोर्ट के प्रकाशन के बाद एकदम चुप है. क्या सरकार ने इसे स्वीकार किया है. वहीं सरकार ने यह भी नहीं बताया कि 21वें विधि आयोग के निष्कर्षों की व्याख्या करने के लिए क्या कदम उठाए हैं. वहीं बोर्ड ने कहा कि अगर सरकार ने 21वें विधि आयोग को पूरी तरह खारिज कर दिया था तो उसने नामंजूरी के कारण का खुलासा नहीं किया है.