Delhi News: क्वालिटी एजुकेशन ने दुनिया को दिल्ली की तरफ देखने को किया मजबूर, सरकारी स्कूलों का बढ़ा आकर्षण
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Delhi News: क्वालिटी एजुकेशन ने दुनिया को दिल्ली की तरफ देखने को किया मजबूर, सरकारी स्कूलों का बढ़ा आकर्षण

शिक्षा में क्रांतिकारी बदलाव लाकर दिल्ली ने दुनिया का ध्यान अपनी ओर ध्यान खींचा है. दिल्ली की शिक्षा क्रांति की तारीफ न्यूयॉर्क टाइम्स से लेकर यूएई के हलीफ टाइम तक में हुई है.स्कूली शिक्षा के कायाकल्प की शुरुआत मनीष सिसोदिया ने की.

Delhi News: क्वालिटी एजुकेशन ने दुनिया को दिल्ली की तरफ देखने को किया मजबूर, सरकारी स्कूलों का बढ़ा आकर्षण

Delhi News: शिक्षा में क्रांतिकारी बदलाव लाकर दिल्ली ने दुनिया का ध्यान अपनी ओर ध्यान खींचा है. दिल्ली की शिक्षा क्रांति की तारीफ न्यूयॉर्क टाइम्स से लेकर यूएई के हलीफ टाइम तक में हुई है.स्कूली शिक्षा के कायाकल्प की शुरुआत मनीष सिसोदिया ने की. दिल्ली के सरकारी स्कूल में न सिर्फ वर्ल्ड क्लास क्लासरूम बन रहे हैं बल्कि इसमें पढ़ने वाले बच्चे किसी भी नामी गिरामी प्राइवेट स्कूल के बच्चों को टक्कर दे रहे हैं. चाहे फर्राटेदार इंग्लिश बोलना हो या मैथ्स के सवाल बनाना, सरकारी स्कूल के बच्चे किसी से कम नहीं हैं. यही वजह है कि इंजीनियरिंग- मेडिकल प्रवेश परीक्षा से लेकर दिल्ली के बड़े-बड़े कॉलेजों में उनका नामांकन हो रहा.

सरकारी स्कूलों की ओर बढ़ रहा है रुझान
प्राइवेट स्कूल और सरकारी स्कूल में पढ़ाई में क्या फर्क आया है. इस बारे में अब बच्चे खुद बोलने लगे हैं. स्कूल ऑफ एक्सीलेंस खिचड़ीपुर में 8वीं में पढ़ने वाले रौनक आर्या का कहना है कि वो 5वीं में प्राइवेट स्कूल से यहां आए. उनका कहना है कि प्राइवेट में कवाटरली फीस उनकी 32, 800 रुपए थी. इसके अलावा सालाना किताब कॉपी यूनिफॉर्म में 10 हजार तो लग ही जाते थे. विंटर के कपड़े अलग से लेने पड़ते थे, जिसमें आराम से 5 हजार रुपए लगते थे. यानी सालाना (32800x 4) 1,31,200 +10000+5000= 1,46,200 रुपए खर्च होते थे, जो अभी नहीं लगते हैं. इसके अलावा प्राइवेट स्कूल में जो बच्चे पढ़ने में अच्छे थे उन्हें हर एक्टिविटी में शामिल कर लिया जाता था, लेकिन इस स्कूल मेंगेम में वो बच्चे हैं जिन्हें गेम पसंद है. एनसीसी भी है, दूसरी एक्टिविटी भी होती रहती है. सरकारी स्कूलों में पेरेंट्स टीचर मीट यानी पीटीएम भी होता है. पहले पीटीएम प्राइवेट स्कूलों में ही हुआ करते थे. सरकारी स्कूलों में पीटीएम के महत्व को पैरेंट्स ने भी समझा है. किसी भी बच्चे के विकास में घर- परिवार और स्कूल दोनों का अहम योगदान होता है. इसको समझते हुए स्कूल में पेरेंट्स टीचर मीटिंग यानी पीटीएम की शुरुआत हुई. 

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पीटीएम से भी बदला है नजरिया
पीटीएम में माता-पिता अपने बच्चों की पढ़ाई-लिखाई, व्यवहार जैसे मुद्दे पर टीचर के साथ सकारात्मक बातचीत करते हैं. बच्चे के सर्वांगीण विकास के लिए प्रभावी ढ़ंग से काम करने पर एक रूपरेखा तैयार करते हैं. इसका बच्चों की सीखने की प्रक्रिया में काफी असर देखा गया है. पीटीएम के महत्व को समझते हुए अरविंद केजरीवाल ने दिल्ली सरकार के स्कूलों में इसका आयोजन कराना शुरू किया . इसका रिजल्ट भी दिखा. पैरेंट्स को स्कूल में न सिर्फ स्टडी बल्कि हर वो एक्टिविटी जिसमें उनके बच्चों ने हिस्सा लिया, बच्चों की दिलचस्पी, उसका परफॉर्मेंस हर चीज की जानकारी शिक्षकों से मिली. इससे पैरेंट्स में विश्वास जगा कि उनका बच्चा अच्छे वातावरण में अच्छी शिक्षा ले रहा है. सर्वोदय विद्यालय सरिता विहार स्कूल में 5वीं में पढ़ने वाली शिवांगी शर्मा के पिता देवेश शर्मा श्रमिक हैं उन्होने बताया कि बेटी के स्कूल में एडमिशन के बाद पहली बार वो पीटीएम में ही आए. बेटी का रिजल्ट तो वो देख लेते थे लेकिन स्कूल आकर उन्हें पता चला कि उनकी बेटी की एक पेंटिंग प्रदर्शनी में लगी है. बेटी पर गर्व करते हुए वो कहते हैं कि देखना एक दिन मेरी बेटी दुनिया में नाम करेगी. दिल्ली सरकार ने हाल ही में मेगा पीटीएम का आयोजन किया जिसमें सीएम आतिशी पहुंची और पेरेंट्स-बच्चों से फीडबैक लिया. सीएम आतिशी के मुताबिक "पहले पीटीएम सिर्फ बड़े प्राइवेट स्कूलों में होते थे. सरकारी स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को मौका नहीं मिलता था कि उनके पेरेंट्स स्कूल में आए और पढ़ाई को लेकर टीचर से बात करें. अब लगातार पिछले 10 साल से दिल्ली सरकार के स्कूलों में मेगा पीटीएम का आयोजन हो रहा है."  

अभिभावकों पर खर्च का बोझ भी घटा
शिक्षा को लेकर सरकार के नये रवैये ने अभिभावकों पर खर्च का बोझ भी हल्का किया है.इसका भी असर सरकारी स्कूलों में पढ़ाई को लेकर उत्साह में दिखता है.फ्री ट्यूशन फीस, फ्री यूनिफॉर्म, फ्री किताबों ने पेरेंट्स को भी बड़े खर्चे से मुक्त कर दिया है. यही वजह है कि बड़े-बड़े प्राइवेट स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चे भी सरकारी स्कूलों की ओर आकर्षित हो रहे हैं. बीते दिनों वर्तमान मुख्यमंत्री आतिशी ने दावा किया था कि कुछ सालों में 4 लाख स्टूडेंट्स सरकारी स्कूलों में आए हैं. माना जा रहा है कि प्राइवेट स्कूलों के बजाए सरकारी स्कूलों में वे बेहतर उम्मीद देख रहे हैं.स्टूडेंट्स की बढ़ती संख्या को देखते हुए स्कूलों के इंफ्रास्ट्रक्चर में कई बदलाव किये जा रहे हैं. दिल्ली ने संसाधनों का रोना रोने के बजाय उपलब्ध संसाधनों में ही शिक्षा का स्तर सुधारने का काम किया है. 2015 तक दिल्ली में 24 हजार क्लासरूम थे. आजादी के बाद से 9 साल पहले की यह उपलब्धि थी. लेकिन बीते इन 9 सालों में 22,711 अतिरिक्त क्लास रूम बनाए गये हैं. इस तरह अब क्लासरूम की संख्या 46,711 हो चुकी है.

नये क्लासरुम ने संभाली भीड़
ऐसा भी नहीं है कि नये क्लासरूम बनाने की ओर ध्यान नहीं दिया गया. उस पर भी काम होता रहा है. दिल्ली सरकार का दावा है कि 1541 नये कमरे निर्माणाधीन हैं और ये दिल्ली के सरकारी स्कूलों की तस्वीर बदल देगी. दिल्ली के अलग-अलग हिस्सों में 14 नए सरकारी स्कूल बनाए जा रहे हैं. इसके अलावा बड़े पैमाने पर स्कूलों अकैडमिक ब्लॉक भी बनाए जा रहे हैं. दिल्ली के स्कूलों में जो 1541 नए कमरे बन रहे हैं वो दिल्ली के अलग-अलग इलाकों में अलग-अलग स्कूलों में हैं. इनमें रोहिणी सेक्टर 27, रोहिणी सेक्टर 41 सीएफ 3, रोहिणी सेक्टर 40, सुंदर नगरी, नसीरपुर द्वारका, किराड़ी जहांगीरपुरी, सलेमपुर, आयानगर, मेहराम नगर जैसे इलाके शामिल हैं.  दिल्ली इकॉनोमिक सर्वे 2020-21 के मुताबिक दिल्ली में सरकारी स्कूलों की संख्या 1234 है. इनमें 37 स्कूल ऑफ एक्सीलेंस हैं जहां एडमिशन लेने के लिए प्राइवेट स्कूलों से ज्यादा मारामारी है. शैक्षणिक सत्र 2023-24 में यहां कुल 4400 सीट थे जिसके लिए 92 हजार से ज्यादा स्टूडेंट्स ने आवेदन किया. इससे पता चलता है कि इन स्कूलों का कितना क्रेज है. बड़ा सवाल यही है कि क्या दिल्ली की शिक्षा नीति में सकारात्मक बदलाव का दौर आगे भी जारी रहेगा. यह इस बात पर निर्भर रहने वाला है कि दिल्ली को जो नयी सरकार मिलने वाली है उसका शिक्षा को लेकर नजरिया कैसा रहता है.

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