Delhi Riots Anniversary: साल था 2020 और तारीख थी 23 फरवरी. उत्तर पूर्वी दिल्ली के जाफराबाद में 2019 में पारित नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) के खिलाफ महिलाओं ने जाम लगा रखा था. अब तक तक तो सब ठीक था, लेकिन आमजन का गुस्सा उस समय बढ़ गया, जब एक बड़ी पार्टी के नेता ने दिल्ली पुलिस से सड़कों को खाली कराने को कहा. इतना ही नहीं उन्होंने ये तक कह दिया कि वे अपने समर्थकों की मदद से भी ऐसा कर सकते हैं. इसके बाद शुरू हुआ हिंसा,आगजनी और मौत का वो तांडव, जिसकी भेंट करीब 53 लोग चढ़ गए.


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आईबी स्टाफर पर किए गए थे 52 वार 


इस सांप्रदायिक दंगे में 200 से ज्यादा लोग घायल भी हुए थे. मरने वालों में एक आईबी स्टाफर अंकित शर्मा भी थे. चांदबाग में नफरत से भरी भीड़ ने चाकुओं से 52 वार कर उनकी हत्या कर दी थी. इस मामले में कोर्ट ने पिछले साल मार्च में पूर्व पार्षद ताहिर हुसैन समेत 10 लोगों पर आरोप तय किए थे. 


इसी तरह दंगाइयों ने शिव विहार तिराहे पर स्थित एक मिठाई की दुकान पर भीड़ ने हमला कर दिया था. इस दौरान दंगाइयों ने दुकान में काम करने वाले 22 साल के दिलबर नेगी को निर्ममता से मौत के घाट उतारने के बाद जला दिया गया था. पिछले साल अक्टूबर में सत्र अदालत ने इस केस से जुड़े 11 आरोपियों को बरी कर दिया था. 


उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुए इस दंगे को अब 4 साल हो चुके हैं. जिन परिवारों ने उस दंगे में अपनों को गंवाया था, उनके जख्म आज भी हरे हो जाते हैं. ज़ी मीडिया ने दंगा पीड़ित दो परिवारों से उनके वर्तमान हालातों के बारे में सवाल किए. इस दौरान आईबी स्टाफर अंकित शर्मा के भाई ने बताया कि 2020 के दंगों के बाद वे गाजियाबाद शिफ्ट हो गए. उन्होंने बताया कि दिल्ली पुलिस के वकील उनका केस लड़ रहे हैं. जब भी पुलिस को जरूरत पड़ती है तो कोर्ट में उन्हें बयान देने के लिए बुला लेती है. 


फास्ट ट्रैक कोर्ट में हो केस की सुनवाई 
2020 के दंगों के बाद पीड़ित परिवार दिल्ली में चांदबाग स्थित घर छोड़ दिया और सुरक्षा के मद्देनजर गाजियाबाद में रहने लगा था. भाई ने बताया कि अंकित की मौत के बाद दिल्ली सरकार ने उन्हें शिक्षा विभाग में नौकरी दे दी थी. जब उनसे केस की प्रगति के बारे में पूछा गया तो उन्होंने कहा कि इनका परिवार बस यही चाहता है कि फास्ट ट्रैक कोर्ट में केस की सुनवाई हो और दोषियों को फांसी की सजा सुनाई जाए.


दुकान में घुसकर कर दी थी हत्या 
वहीं दिलबर नेगी के भाई उत्तराखंड में गाड़ी चलाकर परिवार का भरण पोषण कर रहे हैं. पिछले साल दिलबर के पिता का निधन हो गया था. दो बहनों की शादी हो चुकी है और एक की होनी है. दंगों का जिक्र करते हुए उन्होंने बताया कि भाई की हत्या के बाद दिल्ली सरकार ने मुआवजे के तौर पर 10 लाख और उत्तराखंड सरकार ने 5 लाख रुपये की आर्थिक सहायता दी थी. दिलबर के भाई का भी यही कहना था कि उसके हत्यारों को फांसी दी जानी चाहिए.