Olympics में देश को 'स्वर्ण' दिलाने का इस Athlete ने देखा सपना, स्टेडियम की फीस के लिए करते हैं कूरियर डिलीवरी
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Olympics में देश को 'स्वर्ण' दिलाने का इस Athlete ने देखा सपना, स्टेडियम की फीस के लिए करते हैं कूरियर डिलीवरी

Athlete Sangpriya Gautam: दिल्ली के मयूर विहार के रहने वाले संघप्रिय के पिता की मौत साल 2011 में हो गई, जिसके बाद पूरे परिवार की जिम्मेदारी उनके और उनकी मां के कंधों पर आ गई, लेकिन खेल और देश के प्रति लगाव की वजह से आज भी वो देश को गोल्ड दिलाने की उम्मीद बांधे हुए हैं.

 

 

 

 

Olympics में देश को 'स्वर्ण' दिलाने का इस Athlete ने देखा सपना, स्टेडियम की फीस के लिए करते हैं कूरियर डिलीवरी

Athlete Sangpriya Gautam: हमारे सामने अक्सर ऐसी कहानियां आती हैं, जो हमें सोचने पर मजबूर कर देती हैं. महाभारत काल से लेकर अबतक इस समाज में एकलव्य मौजूद हैं, जिनकी प्रतिभा हमेशा किसी न किसी वजह से समस्याओं से जकड़ी रहती है. इन समस्याओं के जिम्मेदार सामाजिक व्यवस्था और आर्थिक हालात दोनों हैं. उन्हीं एकलव्यों में से एक हैं दिल्ली के मयूर विहार फेज-3 निवासी संघप्रिय गौतम उर्फ गांधी. संसाधनों के अभाव में ये खुद से अपने हुनर को निखार रहे हैं. इनकी बस यही मांग है सरकार इनकी मदद करे.

पाई-पाई जुटाकर देश के लिए देखा स्वर्ण पदक का सपना  (Marathon Runner Sangh Priya Gautam)
एथलीट संघप्रिय (25) ने बताया कि वह मयूर विहार फेज-3 की जीडी कॉलोनी में रहते है. वर्ष 2011 में उनके पिता रामनाथ गौतम की मौत के बाद, मां मधु के ऊपर पूरे परिवार की जिम्मेदारी आ गई थी. गौतम बताते हैं कि वर्ष 2013 में भाग मिल्खा भाग फिल्म देखकर उनका दौड़ के प्रति रुझान बढ़ा, लेकिन उनके सपने के सामने आर्थिक तंगी सामने आ गई. इतने पैसे नहीं थे कि पढ़ाई के साथ किसी स्टेडियम में जाकर अभ्यास कर सके. स्टेडियम की फिस जुटाने के लिए घर के पास मोटर मैकेनिक के एक कारखाने में तांबा बीनने जाया करते थे. उन्होंने एक-एक पाई को जुटाकर कुछ रुपये जुटाएं और देश के लिए मेडल लाने का सपना देखा. उनकी परेशानियां यहीं खत्म नहीं हुई, जितने रुपये उन्होंने जुटाए थे उतने में स्टेडियम में दाखिला नहीं मिल सका. इसके बाद उन्होंने स्वयं को गुरु मान यमुनापार की सड़कों पर दौड़ना शुरू किया.

सड़कों पर दौड़ लगाकर जीते कई पदक ( Sangh Priya Gautam alias Gandhi)
संघप्रिया में लगन इतनी थी कि वर्ष 2017 जनवरी में छत्तीसगढ़ में आयोजित 51वीं नेशनल क्रॉस कंट्री चैंपियनशिप की 8 किमी की दौड़ में उन्होंने 3 स्थान प्राप्त कर कास्य पदक जीता. उन्होंने इसके बाद फरवरी 2017 में मेरठ में आयोजित 28वीं नॉर्थ जोन जूनियर एथलीट चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक हासिल किया. सड़को पर दौड़ने वाले कदम कब स्टेडियम के ट्रैक पर पहुंच गए उन्हें खुद पता नहीं चल पाया. उनका सपना ओलंपिक में देश के लिए पदक हासिल करना है.

स्टेडियम की फीस भरने के लिए करते है कूरियर डिलीवरी (Sangh Priya Gautam comes from poor family)
संघप्रिया के परेशानी यहीं कम नहीं हुई. स्टेडियम की फीस और डाइट के लिए उन्होंने कुरियर कंपनी में नौकरी शुरू कर दी. इस नौकरी से जितना भी रुपये वो कमाते थे उसमें से कुछ रुपये परिवार के पालन के लिए दे दिया करते थे और जो रुपये बचते थे उसमें वो अपनी डाइट का सामान ले आते थे. जब कोरोना का दौर शुरू हुआ तो नौकरी चल गई, इसके चलते परिवार की आर्थिक स्थिति काफी खराब हो गई. जब कोरोना का संकट हटने लगा तो फिर कुरियर का काम शुरू कर दिया. इसके साथ ही भारतीय खेल प्राधिकरण के नेताजी सुभाष पूर्वी केंद्र में एथलेटिक्स का डिप्लोमा कोर्स की पढ़ाई शुरू की. उन्होंने बताया कि डिप्लोमा कोर्स के लिए काफी परेशानियों का सामना करना पड़ रहा है.

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संघप्रिया की उम्मीदें अब भी है अद्भुत (Athlete Sangpriya Gautam)
गौतम ने बताया कि सड़को पर दौड़ने से लेकर स्टेडियम के ट्रैक तक दोस्तों ने काफी मदद की. मेरा दोस्त एक कुरियर कंपनी में काम करता था और उसी ने कुरियार कंपनी में काम दिया. साथ ही बता दें कि संघप्रिया की मां मधु का कहना है कि बेटे के सिर पर बहुत ही कम उम्र में जिम्मेदारियां आ गई थी. घर की हालत ऐसी है कि बेटे को डिप्लोमा कोर्स करने में काफी परेशानियां उठानी पड़ रही है. बता दें कि इन सभी कठिनाइयों के बावजूद, संघप्रिय का सपना है कि वह ओलंपिक में देश के लिए पदक जीतें. उनका जीवन संघर्षपूर्ण है, लेकिन उनकी मेहनत और उम्मीदें अब भी अद्भुत हैं.

हमारा सुझाव ( Help for Athletes)
इस होनहार को हरसंभव सहयोग उपलब्ध कराना अब सरकार और खेल संघ का दायित्व होना चाहिए. विशेषकर, खेल मंत्रालय का. संघप्रिया को खेल संबंधित सुविधाएं ट्रेनिंग, डाइट और पढ़ाई सुचारू रखने के लिए भी सहयोग मिले, तो वह  Olympics में देश को 'स्वर्ण' पदक दिलाने की ओर में बढ़ सकता है.

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