चंडीगढ़ : हरियाणा में मस्कुलर डिस्ट्रॉफी (पेशीय दुर्विकास) से करीब 300 बच्चे जूझ रहे हैं, लेकिन उन्हें इलाज की पर्याप्त सुविधा नहीं मिल रही है. मीडिया मे छपे समाचारों के अनुसार हरियाणा में मस्कुलर डिस्ट्रॉफी से ग्रस्त बच्चों को इलाज नहीं मिल रहा है और बाहर बहुत महंगा इलाज करवाना पड़ रहा है. इस मामले को लेकर हरियाणा मानव अधिकार आयोग (HHRC) ने स्वतः संज्ञान लिया है.


COMMERCIAL BREAK
SCROLL TO CONTINUE READING

समाचारों के मुताबिक मस्कुलर डिस्ट्रॉफी का इलाज बहुत महंगा होने के कारण बहुत सारे परिवार बच्चों का इलाज कराने में सक्षम नहीं है. इस बीमारी के इलाज के लिए हरियाणावासी पीजीआई चंडीगढ़ पर ही निर्भर हैं. इलाज के लिए लगने वाले इंजेक्शन की कीमत करीब 2 करोड़ रुपये है जो कि किसी भी सामान्य परिवार के लिए पहुंच से बाहर है. 


हरियाणा मानव अधिकार आयोग की पूर्ण खंडपीठ (जिसमें आयोग के अध्यक्ष जस्टिस एसके मित्तल और सदस्य जस्टिस केसी पूरी व दीप भाटिया ने इस विषय पर स्वास्थ्य विभाग से कुछ बिंदुओं पर जवाब मांगा है.


उन्होंने पूछा कि हरियाणा में ऐसे कितने बच्चे इस रोग से ग्रस्त हैं. उनके इलाज का हरियाणा में कोई प्रबंध है या नहीं और यदि कोई ऐसा इलाज हरियाणा में है तो क्या उसके लिए राज्य सरकार ने पीड़ितों को कोई आर्थिक मदद की योजना बनाई है या नहीं.  आयोग ने यह भी पूछा कि यदि इस प्रकार का कोई इलाज हरियाणा में उपलब्ध नहीं है तो उसके लिए सरकार क्या पॉलिसी बना रही है. इस मामले की अगली सुनवाई 23 मार्च को चंडीगढ़ में की जाएगी. इस बीमारी के शिकार बच्चे 12 साल की उम्र तक आते-आते चलने फिरने में असमर्थ हो जाते हैं. 20 साल की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते सांस लेने के लिए मशीन की आवश्यकता पड़ जाती है. किशोरावस्था तक आते-आते इस बीमारी से ग्रस्त बच्चों के चेहरे और हाथ-पैरों की कुछ विशेष पेशियों में सिलसिलेवार कमजोरी पैदा होने लगती है. 


इनपुट : विजय राणा