चंडीगढ़ः हरियाणा के मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने बुआई का मौसम शुरू होने से पहले जलभराव वाली कृषि भूमि की पहचान कर बाढ़ या रुके हुए पानी की समस्या से निपटने के लिए योजना तैयार करने के लिए दिए गए निर्देशों के फलस्वरूप मुख्य सचिव संजीव कौशल ने आज कृषि और किसान कल्याण और सिंचाई विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों के साथ बैठक की.


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मुख्य सचिव ने राज्य में ऐसे क्षेत्रों की मैपिंग पूरी करने की समय सीमा भी निर्धारित की. उन्होंने अधिकारियों को कृषि तथा सिंचाई विभाग द्वारा वर्ष में दो बार अर्थात प्रत्येक वर्ष 15 मई और 31 अक्टूबर तक जलभराव वाली भूमि का प्रमाणीकरण कराने के निर्देश भी दिए. प्रमाणीकरण उस भूमि के आकलन और दस्तावेजीकरण की प्रक्रिया होती है, जो काफी हद तक बाढ़ग्रस्त या जलमग्न हो.


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इस प्रक्रिया में आमतौर पर किसी योग्य पेशेवर यानी जलविज्ञानी या सिविल इंजीनियर द्वारा साइट का निरीक्षण किया जाता है. वह भूमि की स्थलाकृति, जल-स्रोतों से इसकी निकटता और ऐसे अन्य कारकों का आकलन करता है, जो बाढ़ या बाढ़ के अन्य रूपों के लिए इसकी संवेदनशीलता को प्रभावित कर सकते हैं. इस आकलन के परिणामों को एक रिपोर्ट या प्रमाणीकरण के अन्य रूप में दस्तावेजीकरण किया जाता है, जिसका भूमि उपयोग और विकास से संबंधित निर्णय लेने के लिए किया जा सकता है.


कौशल ने अधिकारियों को राज्य में उन क्षेत्रों का आकलन करने के भी निर्देश दिए, जहां भूजल सतह पर आ जाता है. उन्होंने अधिकारियों को निर्देश दिए कि वे भारी बारिश और अचानक बाढ़ जैसी प्राकृतिक आपदाओं के कारण उत्पन्न होने वाली जल भराव की समस्या पर नियमित रूप से निगरानी रखें. उल्लेखनीय है कि यह बैठक मुख्यमंत्री द्वारा सीएम विंडो के माध्यम से प्राप्त जन शिकायतों की समीक्षा बैठक के फॉलोअप के रूप में बुलाई गई थी.