इस डर से यहां नहीं मनाई जाती होली, त्योहार मनाने के लिए 300 साल से लोग कर रहे इस संयोग का इंतजार
होली का त्यौहार पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है, लेकिन हरियाणा के कैथल में एक ऐसा गांव भी है जहां पिछले 300 साल से होलिका दहन नहीं होता. किसी अनहोनी की आशंका से ग्रस्त गांव दुसेरपुर के ग्रामीण लगभग 300 साल से होली का त्यौहार नहीं मना रहे हैं.
कैथल: होली का त्यौहार पूरे देश में धूमधाम से मनाया जाता है, लेकिन हरियाणा के कैथल में एक ऐसा गांव भी है जहां पिछले 300 साल से होलिका दहन नहीं होता. किसी अनहोनी की आशंका से ग्रस्त गांव दुसेरपुर के ग्रामीण लगभग 300 साल से होली का त्यौहार नहीं मना रहे हैं. कुछ लोगो के अनुसार लगभग 300 साल से होलिका दहन नहीं हुआ है. जिसके बारे में गांव के गौरव पट पर भी कथा अंकित है. गांव में त्योहार न मनाए जाने के पीछे 300 वर्ष पहले होली के ही दिन एक साधु द्वारा दिए गए श्राप को कारण बताया जा रहा है.
जानें इस गांव में होली न मानने की वजह
बता दें कि साधु द्वारा दिए गए श्राप से आशंकित ग्रामीण आज भी डरे हुए हैं और होली का त्योहार मनाने से बचते हैं. साधु द्वारा दिए गए श्राप को लेकर ग्रामीणों में वैसे तो कई प्रकार कथाएं प्रचलित है, लेकिन गांव के लोगों और महिलाओं के मुताबिक 300 साल पहले घटना के दिन गांव में होली के उल्लास का मौहल था और लोगों ने मिल-जुलकर एक स्थान पर होलिका दहन के लिए सुखी लकडियां, उपले और अन्य समान इकट्ठा करके रखा हुआ था, लेकिन होलिका दहन के निश्चित समय से पहले गांव के ही कुछ युवाओं को शरारत सुझी और वे समय से पहले ही होलिका दहन करने लगे. युवाओं को ऐसा करते देख गांव में स्नेही राम नाम का एक साधु रहता है जो ठिगने कद था. उस बाबा ने उन्हें समय से पहले होलिका दहन करने से रोकना चाहा.
बताया जाता है कि उन युवकों ने बाबा के ठिगनेपन का मजाक उड़ाते हुए समय से पहले ही होली का दहन कर दिया. युवाओं द्वारा किए गए इस कार्य से बाबा गुस्से से भर उठे और उन्होंने जलती होली में छलांग लगा दी. होलिका में जलते-जलते बाबा ने ग्रामीणों को श्राप दे दिया कि आज के बाद इस गांव में होली का त्योहार नहीं मनाया जाएगा और अगर किसी ने होली का पर्व मनाने की हिम्मत की तो उसे इसका खमियाजा भुगतना पड़ेगा.
श्राप देने के साथ बाबा ने दिया इससे मुक्त होने उपाय
सच्चाई कुछ भी रही हो, लेकिन उस घटना के बाद से आज तक गांव में कोई भी व्यक्ति होली का त्योहार नहीं मनाता. बताया ये भी जाता है कि लोगों ने बाबा से गलती के लिए माफी मांगी थी, लेकिन बाबा ने माफी देने से तो इंकार कर दिया था साथ ही गांववालों को श्राप से मुक्त होने का उपाय बताते हुए कहा था कि होली के दिन गांव में किसी भी ग्रामीण के गाय को बछड़ा या उसी दिन गांव की ही किसी बहु के लकड़ा पैदा होता है तो उन्हें श्राप से मुक्ति मिल जाएगी.
300 साल बाद भी नहीं मिली श्राप से मुक्ति
बता दें कि पिछले 300 साल में होली के दिन गांव में किसी गाय को बछड़ा और औरत को लड़का पैदा होने का संयोग आज तक नहीं बना है. अपने बुजुर्गों द्वारा बताई गई रीतों का पालन करते हुए जहां कुछ ग्रामीण आज भी मीठी रोटी बनाकर बाबा स्नेही राम की समाधी की पूजा करते हैं. वहीं कुछ लोग बाबा की याद में केवल एक दीपक जलाते हैं. 300 साल बीत जाने के बाद आज तक गांव में होली का पर्व नहीं मनाया गया. उन्होंने बताया कि घटना के बाद उसी स्थान पर बाबा की समाधि बना दी गई और लोगों ने उसकी पूजा करनी शुरू कर दी. जिसके चलते अब जब भी गांव में कोई शुभ कार्य होता है तो ग्रामीण सबसे पहले बाबा की समाधि पर माथा टेकते हैं और खुशहाली की दुआ मांगते हैं.
Input: विपिन शर्मा