कैथल: हमारे भारत में नदियों को मां का दर्जा दिया गया है, लेकिन आज इन्हीं नदियों का सम्मान खत्म होता जा रहा हैं. जिसकी वजह से यह प्रदूषित हो गई है और लुप्त होती जा रही हैं. दूसरी ओर हम धरती को माता का दर्जा देते हैं, लेकिन रिचार्ज बोरवेल के बहाने कुछ राइस मिलर अपने प्रदूषित केमिकल वाले पानी को इनके माध्यम से जमीन के नीचे पहुंचा रहे हैं. जिससे जमीन प्रदूषित हो रही है और आसपास के इलाकों में कैंसर, काला पीलिया, दांतो का जल्दी टूटना, वायरल जैसी बीमारियां फैल रही है. जब आमजन ही पवित्र नदियों और धरती माता को प्रदूषित करेंगे तो हमें स्वच्छ वातावरण कैसे मिलेगा. समय रहते सरकार ऐसे लोगों पर कार्रवाई नहीं करेगी तो आने वाले समय में होने वाली भयंकर महामारी से कैसे बचा जाएगा.


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आपको बता दें बात पिहोवा की तरफ से आने वाली सरस्वती नदी की बात हो रही है जो पूरी तरह से प्रदूषित है. ये नदी पंजाब में जाकर घग्गर नदी में मिलती है और घग्गर नदी के पानी को भी प्रदूषित कर देती है. आगे पंजाब से गुजरते हुए यह नदी पाकिस्तान तक जाती है तो इसका दुष्प्रभाव कहां तक है और इसका साफ मतलब है कि लोगों का फैलाया हुआ प्रदूषण लोगों को ही बीमार कर रहा है. आपको बता दें कि चाहे पवित्र नदी हो या ड्रेन इन दोनों में ही गंदी नाली का पानी डालना, गंदगी फेंकना और इस को प्रदूषित करना कानूनी रूप से अपराध है.


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पहले हम बात करेंगे सरस्वती नदी की. यह नदी पौराणिक समय से बहती आ रही है और आते-आते यह लुप्त हो गई. इसका मुख्य कारण रहा कि हमने इस नदी को इतना प्रदूषित कर दिया जिसका पानी जहर बन गया. सरकार ने सरस्वती के उद्गम स्थल को दोबारा जीर्णोद्धार करके साफ सुथरा बनाया ताकि पवित्र सरस्वती नदी की आस्था बनी रहे, लेकिन अब इस सरस्वती नदी को लोग सरस्वती ड्रेन कहने लगे हैं. क्योंकि इसमें फैक्ट्रियों का गंदा पानी, सीवरेज का पानी, गांव का गंदा पानी सब कुछ इसमें छोड़ दिया गया. इसका पानी पूरी तरह से प्रदूषित गंदा और बदबूदार है जिसका असर आसपास के इलाकों में पड़ता है.


हमने कैथल के नजदीक गांव पोलड़ से लेकर गांव सोथा तक इस सरस्वती नदी जोकि अब ड्रेन का रूप ले चुकी है दौरा किया. इसके आसपास के लोगों से बातचीत की तो लोगों का कहना है कि यह सरस्वती नदी जो गंदे नाले का रूप ले चुकी है. इससे आसपास के इलाके में 24 घंटे मच्छर रहते हैं बदबू फैलती है और बीमारियां बढ़ रही है. वह पोलड़ से आगे गांव आता है सोथा जो कि सबसे ज्यादा प्रभावित रहा. इस गांव में काला पीलिया कैंसर जैसी कई बीमारियां फैली और काफी लोगों की मौत भी हो गई. उसके बाद प्रशासन ने संज्ञान भी लिया गांव में सफाई व्यवस्था को दुरुस्त किया, लेकिन सरस्वती नदी का कुछ नहीं किया. आज भी इस नदी में लोग अपने पशुधन को बांध देते हैं. चारा की खेती कर लेते है और सब्जियों की खेती कर लेते हैं जो की पूरी तरह से प्रदूषित होती है. जानवर इसको खाते हैं तो प्रदूषित दूध देते हैं और प्रदूषित सब्जियों से लोगों में बीमारियां फैलती है. गांव के लोगों की भी मांग है कि सरकार इस नदी को प्रदूषित करने वाले लोगों पर शिकंजा कसे, इस नदी को साफ करें और जो लोग इसमें खेती करते हैं चाहे वह किसी भी चीज की हो उस पर रोक लगाएं तभी गांव को बीमारियों से बचाया जा सकता है.


दूसरा मामला चीका में कुछ राइस मिलरो द्वारा जमीन को अंदर से प्रदूषित कर रहे हैं. चीका कुछ राइस मिलर मील का केमिकल युक्त प्रदूषित पानी जमीन में रिचार्ज बोरवेल लगाकर जमीन के अंदर डाल देते हैं. जिससे जमीन अंदर से जहरीली होती जा रही है. जिसकी वजह से आसपास के गांव की जमीन भी प्रदूषित हो गई है. क्योंकि चीका में राइस मिलों की संख्या 100 से ज्यादा है और इस तरह का काम काफी लोग कर रहे हैं. स्थानीय लोगों ने भी इसकी आवाज उठाई, लेकिन कोई समाधान नहीं हुआ. मामला हाईकोर्ट तक जा चुका है. लोगों का कहना है कि जमीन अंदर से प्रदूषित हो रही है जिससे आसपास के इलाके में काला पीलिया, कैंसर, चिकनगुनिया और दांतो का जल्दी टूटना जैसी बीमारियां इलाके में फैल रही है. लोगों के साथ और जीवन पर गहरा प्रभाव पड़ रहा है. यहां के लोगों का कहना है कि सरकार इसका संज्ञान ले क्योंकि स्थानीय स्तर पर कुछ अधिकारी राइस मिलर मालिकों के साथ अच्छे संबंध बनाकर रखते हैं. जिसकी वजह से इन पर कोई कार्यवाही नहीं होती और लोगों को मजबूरी में आकर न्यायालय का सहारा लेना पड़ रहा है.



Input: विपिन शर्मा