Rabia Kidwai AAP Candidate: हरियाणा की 90 सदस्यीय विधानसभा के लिए मतदान 5 अक्टूबर को और रिजल्ट 8 अक्टूबर को आ जाएगा. हरेक राजनीतिक दल और उनके नेताओं ने चुनाव जीतने के लिए एड़ीचोटी का जोर लगा दिया है. इस सबके बीच गुरुग्राम की 34 वर्षीय राबिया किदवई ने चुनाव से पहले ही एक रिकॉर्ड अपने नाम कर लिया है. वह देश के सबसे पिछड़े इलाकों में गिने जाने वाले उस मुस्लिम बहुल क्षेत्र से विधानसभा चुनाव लड़ने वाली पहली महिला बन गई हैं, जहां शायद ही महिलाओं को बमुश्किल हिजाब के बिना देखा जाता है. इस बार आम आदमी पार्टी ने राबिया को नूंह से अपना प्रत्याशी बनाया है. 


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कौन है राबिया किदवई?


राबिया हरियाणा के पूर्व राज्यपाल अखलाक उर रहमान किदवई (A R Kidwai) की पोती हैं. आम आदमी पार्टी ने उन्हें कांग्रेस विधायक आफताब अहमद और इंडियन नेशनल लोकदल (INLD) के ताहिर हुसैन के खिलाफ चुनाव मैदान में उतारा है. दोनों ही नेता स्थानीय लोगों के बीच खासा पकड़ रखते हैं.


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आप प्रत्याशी के सामने चुनौतियां?


राबिया के सामने अनुभवी राजनीतिक विरोधियों के अलावा उनका बाहरी होना और मतदाताओं के बीच जागरूकता और शिक्षा की सामान्य कमी मुख्य चुनौतियां हैं. पीटीआई के मुताबिक राबिया किदवई ने बताया कि यहां की महिलाएं उन्हें बताती हैं कि वे अपनी किसी भी समस्या के समाधान के लिए शायद ही  किसी पार्टी के कार्यालय में जाती हैं. लैंगिक भेदभाव पर राबिया का कहना है कि जितना मैंने सोचा था, पूर्वाग्रह उससे कहीं ज्यादा गहरी जड़ें जमा चुका है.


मेवात में तीन विधानसभा सीट 


नूंह को 2005 में तत्कालीन गुड़गांव और फरीदाबाद के कुछ हिस्सों को मिलाकर एक अलग जिला बनाया गया. इसमें तीन विधानसभा क्षेत्र- नूंह, फिरोजपुर झिरका और पुन्हाना शामिल हैं. राबिया का कहना है कि भले ही वे बाहरी उम्मीदवार है और कभी नूंह में नहीं रहीं, लेकिन वे इसी समुदाय से है और उनके पास नूंह को गुरुग्राम के बराबर लाने की क्षमता है. खासकर जब बात शिक्षा की हो. उनके दादा शहीद हसन खान मेवाती मेडिकल कॉलेज की स्थापना सहित क्षेत्र में किए गए विकास कार्यों के लिए जाने जाते हैं और वह भी विधानसभा में नूंह का अच्छे से प्रतिनिधित्व कर सकती है. उन्होंने कहा कि दिल्ली से सिर्फ 70 किलोमीटर दूर होने के बावजूद यह क्ष्रेत्र बेहद पिछड़ा हुआ है. सोहना और गुरुग्राम में जिस तरह का विकास हुआ है, यह क्षेत्र उससे कोसों दूर है.


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नूंह दंगों का पड़ा असर 


उनका दावा है कि इस बार बदलाव के लिए पुरुष और महिलाएं दोनों उनका समर्थन कर रहे हैं. उन्होंने इसकी एक और वजह भी बताई. राबिया किदवई ने कहा, 2023 के नूंह दंगों के बाद यहां के लोगों ने खुद को राजनीतिक दलों द्वारा त्याग हुआ महसूस किया. मुझे लगता है कि सांप्रदायिक हिंसा किसी का प्रचार स्टंट था.दंगों को भड़काने वाले लोग हृदयहीन और निर्दयी थे और यही कारण है कि मतदाता नया विकल्प तलाश रहे हैं.


नूंह में पहली बार महिला लड़ेगी चुनाव 


अब तक किसी भी महिला ने नूंह से चुनाव नहीं लड़ा है. वहीं शमशाद 1977 में फिरोजपुर झिरका से चुनाव लड़ने वाली पहली महिला उम्मीदवार थीं. जनता पार्टी ने उन्हें चुनाव मैदान में उतारा था. इसके बाद 1987 में ललिता देवी और 1999 में ममता ने बतौर निर्दलीय उम्मीदवार चुनाव लड़ा. अगर पुन्हाना की बात की जाए तो नौक्षम चौधरी ने 2019 में भाजपा उम्मीदवार के रूप में चुनाव लड़ा था, लेकिन हार गई थीं.


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सत्ता में महिलाओं की भागीदारी  


1966 में पंजाब से अलग होने के बाद से हरियाणा में अब तक केवल 87 महिलाओं को विधानसभा में भेजा गया है. राज्य में अब तक कभी कोई महिला मुख्यमंत्री नहीं रही.