PFI India: UAPA के तहत केंद्र सरकार के प्रतिबंध के खिलाफ पीएफआई (पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया) ने  सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है. PFI ने UAPA ट्रिब्यूनल द्वारा प्रतिबंध बरकरार रखने के फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी है. आज ये केस जस्टिस अनिरुद्ध बोस और जस्टिस बेला त्रिवेदी की बेंच के सामने लगा, लेकिन सुनवाई टल गई.


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बीते साल लगा था प्रतिबंध
28 सितंबर 2022 को केंद्र सरकार ने पीएफआई और उससे जुड़े संगठनों को UAPA के सेक्शन 3(1) के तहत मिले अधिकार का इस्तेमाल करते हुए 5 साल के लिए बैन कर दिया था. सरकार ने पीएफआई के अलावा रेहाब इंडिया फाउंडेशन, कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया, ऑल इंडिया इमाम कॉउन्सिल, नेशनल कंफेडरेशन ऑफ ह्यूमन राइट्स ऑर्गेनाइजेशन, नेशनल वीमेन फ्रंट, जूनियर फ्रंट, एम्पावर इंडिया फाउंडेशन और रेहाब फाउंडेशन केरल पर प्रतिबंध लगाया था. 


गैर कानूनी गतिविधियों में 
इन पर बैन लगाने के पीछे सरकार ने यह तर्क दिया था कि इन संगठनों के वैश्विक आतंकी संगठनों से सम्बन्ध हैं. ये संगठन देश की एकता, अखंडता और सम्प्रभुता को नुकसान पहुंचाने के मकसद से लगातार गैर कानूनी गतिविधियों में शामिल रहे हैं. इस साल मार्च में दिल्ली हाईकोर्ट के जस्टिस दिनेश शर्मा की अध्यक्षता वाले यूएपीए ट्रिब्यूनल ने भी पीएफआई  और दूसरे संगठनों पर लगे बैन को सही ठहराया था.


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ट्रिब्युनल से पुष्टि कराना जरूरी होता है
नियमों के मुताबिक किसी संगठन पर  केन्द्र सरकार की ओर से लगाए प्रतिबंध की यूएपीए ट्रिब्यूनल से पुष्टि करानी जरूरी होती है. यूएपीए के सेक्शन 3 के मुताबिक किसी संगठन को गैरकानूनी करार दिये जाने के 30 दिन के अंदर इस बारे में जारी नोटिफिकेशन को सरकार ट्रिब्यूनल के पास भेजती है. इसके बाद ट्रिब्युनल ये तय करता है कि क्या वाकई उस संगठन को गैरकानूनी करार दिए जाने के लिए पर्याप्त वजह हैं. केंद्र सरकार ने अक्टूबर में  दिल्ली हाई कोर्ट के जज जस्टिस दिनेश शर्मा को यूएपीए ट्रिब्यूनल का पीठासीन अधिकारी नियुक्त किया था ताकि ये ट्रिब्यूनल पीएफआई और उससे जुड़े संगठनों पर केंद्र सरकार की ओर से लगाए गए प्रतिबंध की समीक्षा कर सके.