क्या आप जानते हैं की अब जानवारों से जुड़े चुनाव चिन्ह किसी भी पार्टी को नही दिए जाते हैं. अगर आपको इसके पीछे की वजह नही पता है तो चलिए हम आपको बताते हैं
भारतीय निर्वाचन आयोग राष्ट्रीय, क्षेत्रीय और रजिस्टर होने वाली सभी नई तरह की राजनैतिक पार्टियों को चुनाव चिन्ह बांटता है. रिपोर्ट्स के मतुाबिक, चुनाव आयोग ने 2009 के आसापस नियम बनाया है कि धर्म और जानवरों से जुड़े चुनाव चिन्ह किसी भी पार्टी को नहीं दिए जाएंगे.
एनिमल राइट्स एक्टिविस्ट के विरोध के बाद चुनावी रैलियों में पशुओं के साथ होने वाली क्रूरताओं को खत्म करने के लिए ऐसा किया गया है.
पशु -पक्षी चुनाव चिह्न होने के कारण उम्मीदवार प्रचार के दौरान इनका जीवित रूप में प्रयोग करते थे. इस दौरान पशु पक्षियों से क्रूरता भी की जाती थी. प्रचार के दौरान पशु पक्षियों पर होने वाले क्रूर बर्ताव के कारण चुनाव आयोग ने चुनाव चिह्न के रूप में इनके इस्तेमाल पर रोक लगा दी थी.
बसपा इकलौती ऐसी राष्ट्रीय पार्टी है जिसका चुनाव चिन्ह हाथी है. ऐसा इसलिए क्योंकि पार्टी को यह चिन्ह नियम आने से पहले दिया गया था. गोवा की महाराष्ट्रवादी गोमांटक पार्टी, मेघालय की हिल स्टेट पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी का चिंह शेर है.
चुनाव चिन्ह दो तरह के होते हैं. एक राष्ट्रीय राजनीतिक दल या राज्य स्तर की पार्टी के लिए आरक्षित होते हैं. इन्हें रिजर्व चिन्ह कहते हैं. रिजर्व के अलावा दूसरे होते हैं फ्री चिन्ह, जिनकी लिस्ट चुनाव आयोग ने बना रखी है.नए दल को इन सिंबल में से चुनाव चिन्ह दिया जा सकता है.