Dak Kanwar Yatra: भगवान शिव की भक्ति के इस महीने में लोग अलग-अलग तरीकों से उनका पूजन करते हैं. इस महीने में कांवड़ यात्रा का विशेष महत्व माना जाता है. यह यात्रा हिंदू कैलेंडर के अनुसार श्रावण मास की प्रतिपदा को शुरू होती है और चतुर्दशी यानी कि सावन की शिवरात्रि तक होती है. कांवड़ यात्रा में कांवड़ियों के द्वारा गंगाजल को हरिद्वार में भगवान शिव को चढ़ाया जाता है. 


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कांवड़ यात्रा कई तरह की होती हैं, जिसमें कांवड़ में जल भरने से लेकर उसे चढ़ाने तक के नियम अलग-अलग होते हैं. इन सबमें डाक कांवड़ को सबसे ज्यादा कठिन माना जाता है. आज के इस आर्टिकल में हम आपके लिए डाक कांवड़ से जुड़ी कुछ जानकारी लेकर आए हैं. 


डाक कांवड़
कांवड़ को लेकर यात्रा करने वाले सभी कांवड़िए लंबी यात्रा करते हैं. इस दौरान वो कई जगहों पर रुककर आराम करते हैं और फिर अपनी यात्रा को शुरू करते हैं, लेकिन डाक कांवड़ के नियम अलग होते हैं. यही वजह है कि इसे सबसे कठिन कांवड़ यात्रा माना जाता है. इसे लेकर जाने वाले व्यक्ति अपनी यात्रा के दौरान कहीं भी नहीं रुकते और एक निश्चित समय में पहुंच कर भगवान शिव को जल अर्पित करते हैं. डाक कांवड़ के दौरान कांवड़ियों को नित्य-क्रिया करने की भी मनाही होती है. अगर कोई यात्रा के दौरान रुकता है या अपने कांवड़ को नीचे रख देता है तो यात्रा को खंडित मान लिया जाता है. डाक कांवड़िये अपने समूह में ही चलते हैं. 


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इन नियमों का पालन करना होता है जरूरी


डाक कांवड़ियों को सात्विक भोजन करना होता है. 
यात्रा के दौरान किसी भी नशे का सेवन नहीं कर सकते. 
पैदल जल लेकर भगवान शिव को अर्पित करना होता है. 
किसी विशेष परेशानी में वाहन से भी यात्रा की जा सकती है. 
यात्रा के दौरान कांवड़ को जमीन पर नहीं रख सकते हैं. 
यात्रा के दौरान तन और मन दोनों की शुद्धि होना जरूरी होता है. 


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