Sirsa News: दोनों पैर खोने के बाद भी जिसने नहीं मानी हार, जानें कौन हैं गुरविंदर सिंह जिन्हें मिलेगा पद्मश्री पुरस्कार
Gurvinder Singh: सड़क हादसे में अपने दोनों पैर गंवाने के बाद भी सिरसा के गुरविंदर सिंह ने हार नहीं मानी और लगभग तीन दशकों से निराश्रितों की सेवा में लगे हुए हैं. केंद्र सरकार द्वारा उन्हें पद्मश्री अवार्ड से सम्मानित करने का फैसला किया गया है.
Sirsa News: केंद्र सरकार की ओर से गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर पद्मश्री पुरस्कारों का ऐलान किया गया, जिसमें सिरसा के गुरविंदर सिंह का नाम भी शामिल है. आज के युग में जहां अपने पराए बन जाते हैं, वहीं गुरविंदर सिंह पिछले तीन दशकों से लोगों की सेवा कर रहे हैं, जिसकी पुरस्कार उन्हें अब मिला है. गुरविंदर सिंह को पद्मश्री अवार्ड मिलने की सूचना के बाद उनके करीबियों की खुशी का ठिकाना नहीं है. सुबह से ही उनके घर पर बधाई देने वाले लोगों का तांता लगा हुआ है.
गुरविंदर सिंह सिरसा में लंबे समय से बेसहारा लोगों के लिए एक आश्रम चलाते हैं, जिसका नाम भाई कन्हैया आश्रम है. यहां बेघर लोगों को घर और अशिक्षित लोगों को शिक्षा दी जाती है. इस आश्रम में साल 2012 से जनसेवा की शुरुआत हुई जो की आज भी कायम है. इस आश्रम का संचालन करने वाले गुरविंदर सिंह खुद भी दिव्यांग हैं, इसके बावजूद उनका हौसला और जज्बा ऐसा है कि वो दिन-रात लोगों की सेवा में लगे रहते हैं. गुरविंदर सिंह व्हीलचेयर पर रहते हुए भी आश्रम के लिए लोगों का सहारा बने हुए हैं.
इस आश्रम में बेसहारा, विकलांग, अपनों से बिछड़े और बीमार लोगों को आश्रय दिया जाता है. इस आश्रम की सेवा से सैकड़ों लोग ठीक होकर अपने घर वापस जा चुके हैं. फिलहाल बच्चों समेत 400 लोग इसमें रह रहे हैं. इस आश्रम में सभी प्रकार की सुविधा उपलब्ध है. कमरों में बेड, कूलर और टीवी भी उपलब्ध करवाया गया हैं. खेलने के लिए आश्रम में झूले लगाए हुए हैं. साथ ही आश्रम में किसी भी बेघर को लाने से पहले पुलिस को जानकारी दी जाती है. उसके बाद जब भी उस व्यक्ति को उनके परिजनों को सौंपा जाता है तब भी कागजी कार्रवाई पूरी करने के बाद ही उन्हें सौंपा जाता है. इस आश्रम की वजह से बहुत से बिछड़े हुए लोग अपने परिजनों से मिल चुके हैं.
भाई कन्हैया आश्रम के मुख्य सेवक गुरविंद्र सिंह बताते हैं कि साल 2010 में एक औरत विक्षिप्त हालत में सड़क पर घूम रही थी. जब महिला को किसी सुरक्षित जगह पर भेजने की कोशिश की तो किसी ने बताया कि इसे पिंगलवाड़ा में आश्रम है, वहां पर छोड़ आइए. इंटरनेट पर सर्च किया तो पता चला कि अमृतसर में पिंगलवाड़ा आश्रम है. उस आश्रम से हमें प्रेरणा मिली इसके बाद शहर में ही तकनीकी कॉलेज के पास 200 गज का प्लॉट लिया और आश्रम स्थापित किया. जिससे भविष्य में ऐसी स्थिति दोबारा ना आए. इस संस्था द्वारा एक स्कूल भी बनाया गया है जहां पर निशुल्क शिक्षा दी जा रही है.
हादसे में गंवा दिए दोनों पैर
गुरविंदर सिंह बताते है कि 7 जून 1997 को वह स्कूटर पर ऐलनाबाद से सिरसा आ रहे थे, तभी रास्ते में वो सड़क हादसे का शिकार हो गए. इलाज के लिए उन्हें लुधियाना के डीएमसी में दाखिल करवाया गया, लेकिन इसकी वजह से उन्होंने अपने दोनों पैर खो दिए. रीढ़ की हड्डी में भी चोट लगी थी, जिसकी वजह से कमर से नीचे का हिस्सा काम करना बंद कर चुका था. जिंदगी व्हील चेयर और बेड पर आ गई, लेकिन इसके साथ-साथ ही देखा कि अस्पताल में कुछ लोग सुबह के समय मरीजों को दूध, दातुन और ब्रेड वितरित कर रहे हैं, मैंने पूछा तो पता चला कि ये जरूरतमंदों की सेवा में जुटे हैं. यहीं से दिमाग में आया कि क्यों ना सिरसा के अस्पताल में भी ऐसी ही सेवा शुरू की जाए. इसके बाद 1 जनवरी 2005 से नागरिक अस्पताल में समाजसेवी लोगों के साथ मिलकर दूध सेवा शुरू की. उसके बाद से ही भाई कन्हैया आश्रम की शुरुआत की और धीरे धीरे सेवाओं में विस्तार हुआ और दूध सेवा कई केंद्रों तक पहुंचा दी गई है.
सिरसा के नागरिक हॉस्पिटल में मरीजों को 250 ग्राम दूध बांटने से शुरू हुआ समाजसेवा का ये सफर वक्त के साथ बढ़ता चला गया. इसके बाद जिले में कई ब्लड कैंप लगाए गए. 29 दिसंबर 2006 को भाई कन्हैया मानव सेवा समिति का गठन कर मुहिम का विस्तार किया गया. जिसके बाद निशुल्क एंबुलेंस की सेवा की शुरू की गई और साल 2012 में भाई कन्हैया आश्रम की शुरुआत हुई.
गुरविंदर सिंह बेघरों,निराश्रित महिलाओं, अनाथों और दिव्यांगजनों की भलाई का कार्य करते हैं. इसके अलावा उन्होंने बाल गोपाल धाम नामक बाल देखभाल संस्था की भी स्थापना की है.गुरविंदर सिंह ने 6,000 से अधिक दुर्घटना पीड़ितों और गर्भवती महिलाओं को मुफ्त एंबुलेंस की सेवा भी दी है. खुद चलने में असमर्थ होने के बाद भी निराश्रितों की सेवा करने वाले गुरविंदर सिंह को अब केंद्र सरकार की तरफ से पद्मश्री पुरस्कार देने का ऐलान किया गया है.