पराली बनी खुशहालीः हरियाणा के इस जिले में लगी पराली की मंडियां, किसानों को भी हो रहा है हजारों का फायदा
पराली जलाने से प्रदूषण की आग दिल्ली तक पहुंच रही है. लेकिन, अगर बात कैथल जिले की जाए तो पराली प्रबंध में वो पहला जिला बन गया है जिसने सबसे अधिक पराली का प्रबंधन करके किसानों को खुशहाली का रास्ता बना दिया है. क्योंकि अब किसानों के लिए पराली प्रदूषण का कारण नहीं बनेगी, बल्कि उनके लिए पराली कमाई का साधन बन रहा है.
विपिन शर्मा/कैथलः हरियाणा के कैथल जिले की बात की जाए तो पराली प्रबंधन में कैथल वो पहला जिला बन गया है जिसने सबसे अधिक पराली का प्रबंधन करके इसे किसानों की खुशहाली का रास्ता बना दिया है. अब कैथल के किसानों के लिए पराली प्रदूषण का कारण नहीं बनेगी, बल्कि उनके लिए वो लाखों रुपये की कमाई भी देगी. कैथल में अब पराली की भी मंडियां लग चुकी है. जो किसानों से पराली खरीदकर आगे दूसरे राज्यों में भेजेगी ताकि किसानों का भी फायदा हो जाए और पर्यावरण को भी पराली के जलने से होने वाले प्रदूषण से बचाया जा सके.
कैथल में 20 के करीब पराली की मंडियां लग गई हैं जो विभिन्न कंपनियों के माधयम से पराली खरीद रही हैं, जिसमें किसान को प्रति एकड़ 5-7 हजार रुपये का फायदा मिल रहा है. पराली प्रबंधन से किसानों के फायदे के साथ-साथ हजारों मजदूरों को भी काम मिल रहा है. कैथल पूरे प्रदेश में पहला ऐसा जिला बन गया है जिसने पराली प्रबंधन में पहला स्थान हासिल किया है और जिसकी मंडियों से पराली गुजरात व राजस्थान जैसे प्रदेशो में पहुंच रही है.
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पराली की मंडियां लगाने वाले नरेश कुमार व प्रदीप कुमार ने बताया कि किसान यहां पर पराली बेचते हैं जिससे उन्हें सरकार की तरफ से ना जलाने के नाम की एक हजार रुपये प्रोत्साहन राशि तो मिलती ही है साथ में प्रबंधन के बाद अलग से पराली बेचकर भी कमाई होती है. अगर सरकार व प्रशासन के सहयोग से इस तरह की ओर मंडियां बनाई जाए और किसानों की पराली का दाम थोड़ा ओर बढ़ाया जाए तो निश्चित तौर पर प्रदूषण से तो निजात मिलेगी ही साथ से किसानों का फायदा भी होगा.
जब इस विषय में किसान सुरजीत और बेलर मशीन चालक सोहन सिंह ने बताया कि अब पराली प्रबंधन से किसान की तो कमाई हो ही रही है. साथ में बहुत से लोगों को काम मिल रहा है. किसान प्रति एकड़ 5-7 हजार रुपये कमा रहे हैं तो वहीं बेलर मशीन पर 80-85 मजदूर काम करते हैं जिससे बेरोजगारों को काम मिलता है. इसके अलावा अगर मंडियों की बात करे तो यहां भी मजदूरों को काम मिलता है. कृषि अधिकारी डॉ. कर्म चंद ने बताया कि कैथल में लगभग 9.6 लाख टन पराली का उत्पादन होता है जिसमें से लगभग आधी पराली मंडियों व फैक्टरियों के माधयम से बिक जाती है जिसमें किसानों की सीधे-सीधे 57 हजार रुपये प्रति एकड़ का फायदा हो जाता है.
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कैथल में 20 पराली की मंडियां लगी हैं जो किसानों से पराली खरीदकार आगे गुजरात, राजस्थान व अन्य कई प्रदेशों में पराली भेजते हैं. कैथल की मंडियों में पहले ही बाहर के प्रदेशों से ऑर्डर मिलने शुरू हो जाते हैं. अबकी बार अगर पराली जलाने की बात करें तो कैथल में मात्र 10 हजार क्विंटल पराली ही जलाई गई जो कुल उत्पादन का मात्र 1 प्रतिशत है. पंजाब से सटा एरिया होने के कारण कैथल में पराली का प्रबंधन पंजाब के नजदीकी एरिया में भी होने लगा है. उम्मीद है कि आने वाले समय में पंजाब में भी पराली जलाने के माले घटेंगे और प्रराली प्रबंधन बढ़ेगा. कैथल प्रशासन, पराली व्यापारियों व किसानों के सहयोग से हो पाया जिसमें किसानों का तो फायदा है ही साथ में प्रदूषण पर भी अंकुश लगाया जा सकता है.