Success Story: वो कहने हैं न जहां चाह, वहां राह. इसी कहवात को सच कर दिखाया है. दिल्ली के राजीव तिवारी ने. राजीव तिवारी की रेल दुर्घटना में दोनों पैर, एक हाथ और एक हाथ की दो अंगुलियां चली गई थीं, डॉक्टरों ने कड़ी मशक्कत के बाद उनकी जान बचाई. कहने के लिए तो राजीव का एक झटके में सबकुछ खत्म  गया था, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मांगी. 


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जेएनयू से शुरू की पढ़ाई
इस दुर्घटना के बाद भी उन्होंने अपनी पढ़ाई जारी रखी और देश की टॉप यूनिवर्सिटी जेएनयू में एडमिशन लिया.  पढ़ाई में काफी अच्छे होने के कारण राजीव की जल्द ही वहां के प्रोफेसर्स से भी बनने लगी. इसके बाद उन्होंने जेएनयू में रहते हुए ही सिविल सर्विसेज की तैयारी शुरू कर दी.  राजीव की पहचान IIT दिल्ली के कई प्रफेसर्स से भी थी. राजीव ने बताया कि उन्होंने हमेशा उनका मनोबल बढ़ाया.  


हार नहीं मानना जीत का मंत्र
राजीव बताते हैं कि कोई भी घाव शारीरिक नहीं बल्कि मानसिक होता है. अगर आप ये ठान लेंगे कि आपको कुछ कर गुजरना है तो आपको कोई नहीं रोक सकता. राजीव ने अपनी सफलता का श्रेय अपने परिजनों, जेएनयू और IIT को दी. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि डॉक्टरों ने उन्हें जीवनदान दिया है. इसके लिए वे उनका शुक्रिया अदा करते हैं. राजीव के मुताबिक जीत का बस एक यही मंत्र है कि कभी हार ना मानें. 


समाज के हित में करेंगे काम
राजीव आगे बताते हैं कि उनका सपना है कि वो आगे चलकर देश मे AIIMS, IIT, और JNU जैसे संस्थानों को आगे बढ़ाना चाहते हैं ताकि समाज के आखिरी छोड़ का व्यक्ति भी बेहतर शिक्षा और बेहतर स्वास्थ्य से वंचित ना रह सके. राजीव की यह संघर्ष भरी कहानी काफी प्रेरणा दायक है.