नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने चुनाव के दौरान मुफ्त की चीजें बांटने का वादा करने वाली पार्टियों पर नियंत्रण करने के लिए केंद्र सरकार को अपना रुख साफ करने को कहा है. ये बहुत ही गंभीर मामला है. इसे लेकर सरकार अपना रुख स्पष्ट करने में हिचक क्यों कर रही है. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा है कि वह वित्त आयोग से इस विषय पर राय पूछे और कोर्ट को बताए. 


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चुनाव जीतने के बाद जनता को मुफ्त सुविधा या चीजें बांटने के वादे करने वाले राजनीतिक दलों की मान्यता रद्द करने को लेकर सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दायर की गई है. इसमें कहा गया है कि इस तरह से राजनीतिक पार्टियां लोगों के वोट खरीदने का काम करती है. 


मंगलवार को जैसे ही सुप्रीम कोर्ट में मामला शुरू हुआ तो चुनाव आयोग और केंद्र सरकार दोनों एक दूसरे पर इस मसले को डालते नजर आए. सुनवाई के दौरान चुनाव आयोग के वकील अनिल शर्मा ने कहा कि आयोग ऐसी घोषणाओं पर रोक नहीं लगा सकता. वहीं केंद्र सरकार कानून बनाकर ही इससे निपट सकती है. वहीं केंद्र सरकार के वकील एम नटराज ने कहा कि ये मामला चुनाव आयोग के दायरे में आता है. 


जस्टिस एन वी रमना बोले केंद्र सरकार खुद को अलग नहीं कर सकती
इसके बाद चीफ जस्टिस एन वी रमना ( CJI NV Ramana) केंद्र सरकार की इस दलील पर बोले कि केंद्र सरकार इससे अपने आप को अलग नहीं कर सकती. जस्टिस रमना ने केंद्र सरकार के वकील से कहा कि क्या मैं इस बात को रिकॉर्ड पर लूं कि सरकार को इस मसले पर कुछ नहीं कहना है. क्या ये गंभीर मामला नहीं है. केंद्र सरकार इस पर स्पष्ठ रुख रखने से क्यों हिचक रही है. अदालत ने फिर केंद्र सरकार को एक हलफनामा दाखिल कर अपना पक्ष साफ करने को कहा.


सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय ने कहा कि मैं चुनाव आयोग की इस दलील से सहमत नहीं हूं कि वो इस मसले पर कुछ नहीं कर सकता. आयोग इस तरह से गैरवाजिब सुविधाएं बांटने वाले राजनीतिक दलों की मान्यता रद्द कर सकता है. अश्विनी उपाध्याय ने पंजाब का उदाहरण देते हुए कहा कि पंजाब पर 3 लाख करोड़ का कर्ज है. 3 करोड़ पंजाब की आबादी है, इस लिहाज से हर पंजाब निवासी पर एक लाख का कर्ज है.


चीफ जस्टिस ने कहा कि अकेले पंजाब की बात नहीं है, ये पूरे देश में हो रहा है. अश्विनी उपाध्याय ने बताया की श्रीलंका में भी इसी तरह से देश की अर्थव्यवस्था खराब हुई है. भारत भी उसी रास्ते पर जा रहा है. पूरे देश पर 70 लाख करोड़ रूपये का कर्ज है. ऐसे में अगर सरकार मुफ्त सुविधा देती है तो ये कर्ज और बढ़ जाएगा.


मामले में अगली सुनवाई 3 अगस्त को
वहीं जस्टिस रमना ने कोर्ट में मौजूद वकील और पूर्व मंत्री कपिल सिब्बल से कहा की वो भी अपनी अनुभव से इस मामले में अपनी राय दे सकते हैं. इसके बाद सिब्बल ने कोर्ट को बताया कि ये गंभीर मसला है, लेकिन इसका समाधान बहुत मुश्किल है. इसमें केंद्र सरकार का बहुत रोल नहीं है. ये काम वित्त आयोग बेहतर तरीके से देख सकता है. वित्त आयोग हर राज्य को खर्च के लिए धन आवंटित करता है. वो राज्य से बकाया कर्ज का हिसाब लेते हुए आवंटन कर सकता है. ये सुनिश्चित कर सकता है कि ऐसी मुफ्त सुविधाओं लुटाने के लिए फंड आवंटित नहीं किया जाएगा. इस पर चीफ जस्टिस ने केंद्र सरकार से कहा कि वो बताए कि वित्त आयोग की इसमें क्या भूमिका हो सकती है. इस मामले में अगली सुनवाई 3 अगस्त को होगी.


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