Freebies पर Supreme Court ने दिखाया सख्त रुख, कहा-मुफ्त सुविधाओं का वादा `एक गंभीर मुद्दा`
PIL in Supreme Court : एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान आम आदमी पार्टी ने कहा कि याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय का ताल्लुक बीजेपी है और याचिका के माध्यम से वह पार्टी के राजनीतिक एजेंडे को आगे बढ़ा रहे हैं.
नई दिल्ली : देश के विभिन्न राज्यों में राजनीतिक दलों द्वारा जनता के लिए की जा रही फ्री सुविधाओं की घोषणाओं को सुप्रीम कोर्ट ने गंभीरता से लिया है. अश्विनी उपाध्याय द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court ) ने कहा कि चुनावी माहौल में राजनीतिक दलों द्वारा मुफ्त सुविधाओं का वादा और वितरण "एक गंभीर मुद्दा" है, क्योंकि इससे देश की अर्थव्यवस्था को नुकसान हो रहा है.
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जनहित याचिका में पार्टियों द्वारा फ्री सुविधाओं (freebies) की घोषणाओं पर प्रतिबंध लगाने की मांग की गई है. साथ ही चुनावी घोषणापत्र को विनियमित करने और उसमें किए गए वादों के लिए राजनीतिक दलों को जवाबदेह बनाने के लिए कदम उठाने की मांग की गई.
आप बोली-याचिका से राजनीतिक एजेंडा आगे बढ़ा रहे उपाध्याय
याचिका के विरोध में आम आदमी पार्टी (AAP) ने कहा कि कल्याणकारी योजनाओं और मुफ्त के बीच अंतर है. आप का प्रतिनिधित्व कर रहे एएम सिंघवी ने कहा, फ्रीबी शब्द का इस्तेमाल बहुत गलत तरीके से किया जा रहा है. जरूरतमंद और वंचित लोगों के सामाजिक आर्थिक कल्याण के लिए लाई गई योजनाओं को 'मुफ्त' के रूप में वर्णित नहीं किया जा सकता. AAP ने आरोप लगाया कि याचिकाकर्ता अश्विनी उपाध्याय (Petitioner Ashwini Upadhyay) के भाजपा से मजबूत संबंध हैं और वे याचिका के माध्यम से राजनीतिक एजेंडे को आगे बढ़ा रहे हैं. उन कल्याणकारी योजनाओं का विरोध करना चाहते हैं, जिन्होंने समाज के कमजोर वर्गों के जीवन को मौलिक रूप से बदल दिया है.
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आम आदमी पार्टी ने यह भी कहा कि मुफ्त शिक्षा, पेयजल और स्वास्थ्य सेवा प्रदान करना सरकार की संवैधानिक जिम्मेदारी है, हालांकि कॉर्पोरेट लोन माफ करना मुफ्त है. सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने फ्रीबी के अर्थव्यवस्था पर पड़ने वाले प्रभाव का आकलन करने के लिए एक पैनल गठित करने का प्रस्ताव रखा.
अगली सुनवाई 17 अगस्त को
कोर्ट ने फ्री सुविधाओं के अर्थव्यवस्था पर असर का जिक्र करते हुए कहा कि कल्याणकारी योजनाओं और मुफ्त सुविधाओं के बीच अंतर है, इसके अर्थव्यवस्था पर प्रभाव का मूल्यांकन किया जाना चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि फ्री सुविधाओं के बजाय यह राशि बुनियादी ढांचे पर खर्च की जानी चाहिए. CJI एनवी रमना ने कि भारत एक ऐसा देश है जहां "गरीबी है और केंद्र सरकार की भी भूखों को खिलाने की योजना है. उन्होंने कहा कि अर्थव्यवस्था पैसे खो रही है और 'लोगों के कल्याण को संतुलित करना होगा. मामले की अगली सुनवाई 17 अगस्त को होगी.