Tomato News: यह शोध टमाटर की 'अर्कविकास' और 'एल्साक्रीट' किस्मों पर किया गया है. उन्होंने कहा, "हमने टमाटर में मौजूद एब्सिसिक एसिड की मात्रा को कम करने की कोशिश की है. टमाटर के जीन में बदलाव कर एंजाइम की मात्रा कम कर दी गई. इस प्रक्रिया को ट्रांसजेनिक परिवर्तन कहा जाता है.
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Tomato Price News: CSIR की लखनऊ स्थित प्रयोगशाला 'राष्ट्रीय वनस्पति अनुसंधान संस्थान' (एनबीआरआई) के नेए शोध से भविष्य में टमाटर की कीमतों को नियंत्रित करने में मदद मिल सकती है. संस्थान ने ट्रांसजेनिक बदलाव की मदद से टमाटर के पकने और खराब होने का समय बढ़ाने में सफलता हासिल की है. इससे भंडारण और परिवहन के लिए अतिरिक्त समय मिलेगा. यह शोध संस्थान के मुख्य वैज्ञानिक अनिरुद्ध साने ने किया है.
फसल को मिलेगा अतिरिक्त समय
साने ने कहा कि अनुसंधान टमाटर की कीमत वृद्धि को नियंत्रित करने में एक हद तक मददगार हो सकता है, क्योंकि इसकी कटाई के बाद बाजार तक पहुंचाने के लिए अतिरिक्त समय मिल रहा है. यदि उपज देर से पकती है, तो इसे लंबे समय तक संग्रहीत किया जा सकता है. परिवहन दूर-दराज के स्थानों तक किया जा सकेगा और भंडारण के लिए गोदामों की आवश्यकता नहीं होगी.
देशभर में उगाई जाएंगी टमाटर की प्रजातियां
एनबीआरआई के निदेशक अजीत कुमार शासनी ने कहा, "देशभर में टमाटर की विभिन्न प्रजातियां उगाई जाती हैं. उत्पादन के बाद उन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाने में एक से तीन दिन का समय लगता है. इस दौरान उन्हें ठंडा रखना पड़ता है नहीं तो ये जल्दी पकने लगते हैं. ऐसे में बड़ी मात्रा में टमाटर बाजार पहुंचने से पहले ही खराब हो जाते हैं. इसे रोकने के लिए यह शोध किया गया है."
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बर्बादी कम होगी
अनिरुद्ध साने ने कहा कि यह शोध टमाटर की 'अर्कविकास' और 'एल्साक्रीट' किस्मों पर किया गया है. उन्होंने कहा, "हमने टमाटर में मौजूद एब्सिसिक एसिड की मात्रा को कम करने की कोशिश की है. टमाटर के जीन में बदलाव कर एंजाइम की मात्रा कम कर दी गई. इस प्रक्रिया को ट्रांसजेनिक परिवर्तन कहा जाता है. टमाटर में एब्सिसिक एसिड की मौजूदगी के कारण उसमें एथिलीन बनना शुरू हो जाता है जो उन्हें पकाता है. इसलिए, एब्सिसिक एसिड की गति धीमी होने से एथिलीन बनने में देरी होती है. इससे पकने की गति को पांच दिन से बढ़ाकर 10-15 दिन करने में मदद मिलेगी. इससे भंडारण और परिवहन का समय बढ़ेगा और बर्बादी भी कम होगी.'' साने ने बताया कि इस शोध में 12 साल लगे.