Survey about Smartphone Use: किसी भी देश के विकास के लिए टेक्नोलॉजी बहुत अहम भूमिका निभाती है, लेकिन विकास के नाम पर आज टेक्नोलॉजी का गुलाम बन जाने की वजह से परिवार में अपनापन कम और अकेलापन बढ़ता जा रहा है. परिवार में अभिभावक और बच्चों में दूरी बढ़ती जा रही है और इसका एक अहम कारण है स्मार्टफोन पर जरूरत से ज्यादा वक्त बिताना. 


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एक सर्वे के मुताबिक 2019 में लोग प्रतिदिन मोबाइल पर औसत 5 घंटे बिता रहे थे. वहीं 2023 में लोगों ने औसत 6.3 घंटे अपने मोबाइल फोन पर बिताया. बारीकी से विश्लेषण करने पर पता चलता है कि बच्चों से ज्यादा मोबाइल फोन इस्तेमाल करने के लिए माता-पिता जिम्मेदार हैं. इसलिए अगर बच्चों को मोबाइल फोन से हो रही मानसिक और शारीरिक बीमारियों से बचाना है तो पहले अभिभावकों को मोबाइल का इस्तेमाल सीमित करना होगा, तभी आप अपने बच्चों बेहतर जीवन दे पाएंगे.


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पिछले पांच साल से मोबाइल फोन बनाने वाली कंपनी वीवो, साइबर मीडिया रिसर्च के साथ मिलकर मोबाइल फोन वाली आदतों पर सर्वे कर रही है. इस बार अक्टूबर-नवंबर महीने में 15 से 50 साल के 1500 लोगों पर एक सर्वे किया गया. इस बार के सर्वे में बच्चों और माता-पिता के नजरिए को अलग-अलग तरीके से देखा गया और उनके मोबाइल फोन इस्तेमाल करने के कारण और उससे हो रही मानसिक परेशानियों को पहचाना गया. ये सर्वे मोबाइल की वजह से माता-पिता और बच्चों के रिश्तों पर पड़ने वाले असर को लेकर किया गया.


रिश्ते मजबूत करने के लिए अपील 
सर्वे में सामने आया कि बच्चे अकेलेपन से बचने के लिए मोबाइल में घुसे रहते हैं. मां-बाप के नजरअंदाज करने को महसूस करने से बचने के लिए मोबाइल फोन में बिजी हो जाते हैं. नतीजे देखने के बाद कंपनी के कॉर्पोरेट स्ट्रेटेजी हेड गीतज चानन्ना ने अपील की है कि हर साल में एक दिन मोबाइल स्विच ऑफ करने की कैंपेन चलाई जाए. उन्होंने इस साल 20 दिसंबर को एक घंटे के लिए मोबाइल फोन स्विच ऑफ करने की अपील की. 


आंकड़े डरा रहे फिर भी नहीं कर रहे खुद में सुधार 
सर्वे के मुताबिक 90% माता-पिता ने माना कि वो फोन के बिना नहीं रह सकते. 92% माता-पिता के मुताबिक वे फोन का ज्यादा इस्तेमाल घर में कर रहे हैं. यानी फैमिली को दिया जाने वाला टाइम मोबाइल फोन को दिया जा रहा है. हालांकि 94% ने स्वीकार किया कि अगर वो अपने बच्चों से या घर में किसी से बात करें तो वो ज्यादा रिलैक्स महसूस करते हैं. 93% मां-बाप ऐसे हैं जो कि अपने बच्चों को पूरा टाइम नहीं दे रहे हैं. 90% ने माना कि वो बच्चों के साथ क्वालिटी टाइम नहीं बिता रहे. 94% माता-पिता अपने बच्चों की मानसिक सेहत को लेकर परेशान हैं. 91% को बच्चों के विकास पर असर पड़ता नजर आ रहा है. 91% लोगों को लगता है कि बच्चों को बाहर खेलने में ज्यादा समय बिताना चाहिए. 


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91% माता-पिता को लगता है कि बच्चों के मोबाइल फोन के इस्तेमाल करने पर कुछ पाबंदियां होनी चाहिए. 92% को लगता है कि बच्चे फोन का गलत इस्तेमाल कर रहे हैं. इसके बावजूद हालत ये है कि मां-बाप खुद अपनी आदत नहीं सुधार पा रहे. 77% ने ये माना कि बच्चे उनसे हर वक्त फोन पर बिजी रहने की शिकायत कर चुके हैं. 90% ने माना कि जब वो फोन में बिजी होते हैं और उनके बच्चे कुछ पूछ लें तो मां-बाप चिड़चिड़े हो जाते हैं. 


सबके लिए स्मार्टफोन की अहमियत अलग 
 70% अभिभावकों ने कहा कि स्मार्ट फोन जानकारी हासिल करने या दुनिया से जुड़ने का जरिया है. 62% को लगता है कि मोबाइल फोन से वो परिवार और दोस्तों से जुड़े रह सकते हैं. 59% ने कहा कि स्मार्टफोन उनकी पर्सनालिटी का प्रतिबिंब है यानी सोशल मीडिया अकाउंट्स पर उनकी पोस्ट, तस्वीरें, वीडियो और लाइक उनकी पर्सनालिटी के बारे में बताते हैं. 55% लोगों के लिए स्मार्टफोन की वजह से बैंकिंग और 53% लोगों के लिए खरीदारी आसान हो गई है.


मोबाइल फोन पर बिजी रहने में पुरुष आगे
स्मार्ट फोन पर टाइम बिताने में पुरुष महिलाओं से आगे हैं. मोबाइल फोन यूज का औसत टाइम 7.7 घंटे है, लेकिन पुरुषों का औसत 7.9, वहीं महिलाओं का औसत टाइम स्पेंट 7.2 घंटे हैं. 40 प्रतिशत महिलाएं और 40% ही पुरुष ऐसे हैं जो 7-8 घंटे मोबाइल फोन में बिजी हैं. 37% पुरुष और 25% महिलाएं ऐसी भी हैं जो 8 घंटे से भी ज्यादा समय के लिए मोबाइल फोन में बिजी रहते हैं. भारत में केवल 5% पुरुष और केवल 12% महिलाएं ऐसी हैं जिनका मोबाइल फोन में व्यस्त रहने का समय 4 घंटे से कम है. 


किस चीज में समय ज्यादा हो रहा खर्च 
स्मार्ट फोन का इस्तेमाल करने वाले लोग सबसे ज्यादा 39 मिनट सोशल मीडिया पर बिता,वहीं  रहे हैं जिसमें फेसबुक, इंस्टाग्राम, ट्विटर, स्नैपचैट जैसे प्लेटफॉर्म शामिल हैं. 38 मिनट इंस्टाग्राम, यूट्यूब पर वीडियो देखने या बनाने में बीत रहे हैं. इस लिहाज से देखें तो आपके दिन के रोजाना कुल 77 मिनट केवल सोशल मीडिया ले जाता है. 38 मिनट ऑनलाइन ऑफिस मीटिंग में बीत रहे हैं. 36 मिनट इंटरनेट पर कुछ सर्च करने में बीत रहे हैं.  36 मिनट Whatsapp, Telegram वगैरह पर पर्सनल चैट्स में बीत रहे हैं. वहीं 36 मिनट गेमिंग में जा रहे हैं.  


87% ने माना कि सुबह आंख खुलते ही सबसे पहले दर्शन मोबाइल फोन के किए जाते हैं. 73% माता-पिता ने कहा, सोने से पहले आखिरी दर्शन भी मोबाइल फोन की स्क्रीन के ही होते हैं. 60 प्रतिशत लोगों ने माना कि वो चाहे परिवार के साथ बैठे हों या खाने की टेबल पर. मोबाइल साथ में रहता है. 61% के मुताबिक दोस्तों या परिवार के साथ बाहर गए हों या मूवी देख रहे हों तो भी मोबाइल उनका ध्यान खींच लेता है.  


बच्चों का नजरिया भी जान लें 
90% बच्चों को लगता है कि उनके मां-बाप मोबाइल पर ही बिजी रहते हैं और असल दुनिया से दूर हैं. 96% को लगता है कि पैरेंट्स सोशल मीडिया को ही असल ज़िंदगी मान रहे हैं. 94% को लगता है कि मां-बाप बच्चों के बारे में भी सोशल मीडिया से ही जानकारी जुटा रहे हैं. 92% को लगता है कि मां-बाप घर में हों, तब भी मोबाइल फोन को ही रिलैक्स करने का जरिया बना लेते हैं. केवल 50% माता-पिता बच्चों के साथ केवल दो घंटे का समय बिता रहे हैं. यानी स्मार्टफोन पर बिताया गया औसत समय 7.7 घंटे है, लेकिन बच्चों के साथ बिताया जाने वाला कुल समय केवल 2 घंटे हैं. 


ये दो घंटे का समय सर्वे से निकला हुआ औसत समय है. केवल 51% पुरुष और 43% महिलाएं ही अपने बच्चों को दो घंटे दे रहे हैं. 11% पुरुष और 9% महिलाएं बच्चों को 1 घंटे से कम समय दे रहे हैं. 34% महिलाएं और 28% पुरुष अपने बच्चों को 2 से 4 घंटे दे पाते हैं. 4 घंटे से ज्यादा समय बिताने वालों में केवल 11% महिलाएं और 8% पुरुष शामिल हैं. केवल 1% लोगों ने माना कि वो बच्चों के साथ समय बिताते हुए फोन नहीं देखते. 34% ने कहा कि वो बच्चों के साथ होते हुए भी हमेशा मोबाइल देखते रहते हैं. 40% ने कहा कि वो अक्सर मोबाइल में बिजी हो जाते हैं. 10% ने कहा कि वो ऐसा बहुत कम करते हैं. 15% ने कहा कभी कभार वो बच्चों के साथ रहते हुए मोबाइल में बिजी हो जाते हैं.


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91% बच्चे मां बाप की मोबाइल की आदतों से अकेलेपन के शिकार हो रहे हैं. 91% बच्चों को लगता है कि मोबाइल फोन न मिले तो उनमें एंग्जाइटी यानी बेचैनी बढ़ जाती है. 89% बच्चे ऑनलाइन पर इंफ्लुएंसर और दूसरे लोगों की बेहतर जिंदगी देखकर डिप्रेशन के शिकार हो जाते हैं. 90% बच्चे अकेलापन महसूस करते हैं. 84% बच्चों में मोबाइल फोन में रहने की वजह से बातें करने की आदत खत्म हो गई है. 88% बच्चे भविष्य में माता-पिता के साथ ज्यादा वक्त बिताना चाहते है और 93% को लगता है कि उनके माता-पिता से रिश्ते और गहरे और बेहतर होने चाहिए.


14 साल की उम्र तक बच्चों को मोबाइल थमाने की वजह 
37% ने कहा कि वो बच्चों की सुरक्षा के लिहाज से उन्हें फोन दे देते हैं. 31% के मुताबिक बच्चे को पढ़ने के लिए मोबाइल की जरूरत है. 20% ने माना कि बच्चे ने कहा कि उसके दोस्तों के पास फोन है तो उसे भी चाहिए. 12% ने इनाम या गिफ्ट के तौर पर बच्चे को स्मार्ट फोन दिया है. हालांकि 89% का दावा है कि वो बच्चों को फोन में Parental Control लगाकर रखते हैं. 


आदत नहीं जाती और अपराध बोध भी नहीं 
96% माता-पिता अपने बच्चों के साथ रिश्तों को और गहरा करना चाहते हैं. 91% को लगता है कि वो अपने बच्चों के साथ कम समय बिता रहे हैं. उन्हें और समय बिताना चाहिए. 83% बच्चों को लगता है कि मोबाइल फोन उनकी जिंदगी का अभिन्न अंग है, जबकि उसी में 91% बच्चे मानते हैं कि वो माता पिता से फेस टू फेस बात करें तो उन्हें ज्यादा आनंद आता है. बच्चे फोन पर औसतन साढ़े 6 घंटे बिता रहे हैं. 


मोबाइल से बच्चों का रिश्ता माता-पिता से ज्यादा गहरा ?  
87% बच्चों को मोबाइल ना होने से कमतर होने का अहसास होता है - inferiority complex. 72% बच्चों ने माना कि वो मां बाप से बात करते वक्त भी स्मार्टफोन में बिजी रहते हैं. 87% ने माना कि वो मां बाप से रुखाई से बात करते हैं क्योंकि उनका मोबाइल फोन टाइम डिस्टर्ब हो जाता है. 78% बच्चों ने स्वीकार किया है कि उनके माता पिता उनसे हर वक्त स्मार्टफोन में रहने की शिकायत कर चुके हैं. 93% बच्चों के मन में अपने माता पिता के साथ अपने रिश्तों को लेकर अपराधबोध है. 83% बच्चों को लगता है कि उन्हें अपने माता पिता के साथ ज्यादा समय बिताना चाहिए. 


क्यों चाहिए बच्चों को स्मार्टफोन 
59% को जानकारी सर्च करने के लिए . 58% को सबसे कनेक्ट रहने के लिए 55% को अपनी पर्सनालिटी के बारे में बताने के लिए. 50% को शॉपिंग के लिए और 48% को अपने आइडिया दुनिया से शेयर करने के लिए स्मार्ट फोन की जरूरत है. 


भारत का युवा मोबाइल गेम्स में कैद है.  
32% लड़के और 30% लड़कियां मोबाइल फोन पर रोज 5-6 घंटे बिता रहे हैं. 31% लड़कियां और 23% लड़के 7-8 घंटे मोबाइल में बिजी हैं. केवल 24% लड़के और 17% लड़कियां 4 घंटे से कम समय मोबाइल को दे रहा है. 93% बच्चे गिल्ट का अनुभव करते हैं कि वो अपने माता-पिता के साथ टाइम नहीं बिता रहे.