Delhi के AIIMS ट्रॉमा सेंटर को मिलेगा देश का पहला हाईब्रिड ऑपरेशन थिएटर, जानें कैसे बचाएगा मरीज की जान
Hybrid operation theater: आपने कभी हाईब्रिड ऑपरेशन थिएटर के बारे में सुना है? हाईब्रिड ऑपरेशन थिएटर आपात स्थिति में मरीज के लिए अत्याधुनिक लाइफ सेविंग तकनीक से लैस ओटी है. इस ऑपरेशन थिएटर में मरीज का सारा टेस्ट एक ही जगह होगा, इलाज से जुड़े सारी प्रॉसीजर और यहां तक कि सर्जरी भी सीधे वहीं हो सकेगी.
Hybrid operation theater: आपने कभी हाईब्रिड ऑपरेशन थिएटर के बारे में सुना है? हाईब्रिड ऑपरेशन थिएटर आपात स्थिति में मरीज के लिए अत्याधुनिक लाइफ सेविंग तकनीक से लैस ओटी है. इस ऑपरेशन थिएटर में मरीज का सारा टेस्ट एक ही जगह होगा, इलाज से जुड़े सारी प्रॉसीजर और यहां तक कि सर्जरी भी सीधे वहीं हो सकेगी. और यह हाइब्रिड ओटी जल्द ही दिल्ली के एम्स को मिलने वाली है. यह देश का पहला हाईब्रिड ऑपरेशन थिएटर होगा.
हर किसी को कभी न कभी अस्पताल का चक्कर काटना ही पड़ता है. ज्यादातर लोग ऑपरेशन थिएटर से भी वाकिफ होंगे. ऑपरेशन थिएटर ही वो जगह होती है जहां डॉक्टर मरीज को बचाने के तमाम जतन करता है. लेकिन जब भी किसी मरीज को अस्पताल में एडमिट किया जाता है. उसे तमाम टेस्ट और प्रॉसीजर से गुजरना होता है.
अस्पताल में अलग-अलग टेस्ट के लिए अलग-अलग सेक्शन होते हैं. कई गंभीर मामलों में यह देखा गया है कि मरीज को त्वरित इलाज न मिलने पर उसकी जान चली जाती है. इस कमी को दूर करने के लिए ही इस हाइब्रिड ऑपरेशन थिएटर को इजाद किया गया है. जहां गंभीर स्थिति में मरीज को एक ही छत के नीचे जांच से लेकर सारे इलाज और ऑपरेशन मिल जाएंगे. यहां इंटरवेंशन रेडियोल़ॉजी के प्रोसीजर भी हो जाएंगे. आसान भाषा में मरीज के अंदर एक पतली सी तार यानी कैथेटर डालकर उसके अंदरुनी हालात को दूरबीन के ज़रिए स्क्रीन पर ज़ूम करके देखा जा सकेगा और इसी जगह पर सर्जरी भी हो जाएगी.
ये सब काम आमतौर पर सभी अस्पतालों में अलग-अलग जगह होते हैं. सीटी स्कैन, एमआरआई, इंटरवेंशन सब अलग-अलग जगह होते हैं और सर्जरी के लिए अलग ऑपरेशन थिएटर होता है. लेकिन कई बार इस व्यवस्था का नुकसान ऐसे मरीजों को उठाना पड़ता है, जो सड़क हादसों के शिकार होते हैं या किसी ट्रॉमा जैसे दिमाग की नस फटने जैसे हादसों के शिकार होकर अस्पताल पहुंचते हैं. इन प्रॉसीजर से होकर गुजरने में कभी-कभी मरीज की इलाज से पहले ही जान चली जाती है. लेकिन अब ये सिस्टम बदल रहा है और इसकी शुरुआत दिल्ली के एम्स ट्रॉमा सेंटर से होने वाली है.
दिल्ली के एम्स का ट्रामा सेंटर दिल्ली ही नहीं आसपास के शहरों के लोगों के लिए भी इकलौती जगह है जहां एक्सीडेंट के शिकार लोगों को बेहतर और तुरंत इलाज का भरोसा मिलेगा. इस अस्पताल में इलाज की स्पीड को और तेज़ करने के लिए हाइब्रिड ऑपरेशन थिएटर की शुरुआत की जा रही है. एक ही ऑपरेशन थिएटर में सीटी स्कैन और एमआरआई जैसे स्कैन किए जा सकेंगे. उसी ओटी में इंटरवेंशन के प्रोसीजर की व्यवस्था रहेगी यानी मरीज के अंदर तार के जरिए किसी ब्लॉक को खोलना हो या बेहतर तरीके से अंदर के हालात को समझना हो तो ये काम भी ऑपरेशन टेबल पर किया जा सकेगा. जिससे तुरंत और बेहतर सर्जरी करना संभव हो सकेगा.
एम्स ट्रॉमा सेंटर में सड़क हादसों के मरीजों को लाया जाता है. ज्यादातर केस एमरजेंसी हालात में लाए जाते हैं. कई बार मरीज की जान बचाने के लिए डॉक्टरों के पास वक्त बहुत कम होता है. ऐसे में इस तरह के बेहद गंभीर मरीजों को सीधे ओटी में यानी ऑपरेशन थिएटर में ले जाया जा सकेगा. वहीं सीधे इलाज शुरु किया जा सकेगा. दरअसल ये सभी मशीनें बेहद महंगी होती हैं लिहाजा कोई भी अस्पताल इन्हें एक ओटी में हमेशा के लिए ब्लॉक नहीं करके रख सकता. एम्स के ओटी में भी सीटी स्कैन और एमआरआई की मशीनें व्हील्स पर यानी पहियों पर होंगी. जो साथ ही के एक कमरे में रहेंगी- जिससे इन मशीनो को खाली होने पर बाकी मरीजों के लिए इस्तेमाल किया जा सके.
हालांकि इस योजना पर एम्स में 2021 से काम चल रहा है. फिलहाल की अपडेट ये है कि इस मॉडल हाईब्रिड ओटी के लिए जगह निश्चित की जा चुकी है. मशीनों के लिए टेंडर की प्रक्रिया चल रही है. एम्स ट्रॉमा सेंटर के चीफ डॉ कामरान फारुखी को उम्मीद है कि अगले वर्ष तक यानी 2024 में ये ऑपरेशन थिएटर चालू हो चुका होगा. Aiims Trauma centre के अस्पताल प्रबंधन को देख रहे डॉक्टर अनंत के मुताबिक इस पूरे सिस्टम को एक साथ लाकर चालू करने के लिए स्वास्थ्य मंत्रालय की स्वीकृति मिल चुकी है – लेकिन अब काम ने स्पीड पकड़ ली है. ऐसे में कई मरीजों के लिए ये सुविधा जान बचाने वाली साबित होगी.
एम्स ट्रॉमा सेंटर में रोजाना 200 मरीज आते हैं. एक समय पर औसतन 45-50 मरीजों का इलाज चल रहा होता है. अस्पताल में इस समय 200 से ज्यादा बेड्स हैं. कुल 5 ऑपरेशन थिएटर हैं जिन्हें बढ़ाकर 10 किया जाना है. नए हाइब्रिड ओटी की बात 2021 से चल रही है लेकिन सच ये है कि भारत में ट्रामा सर्विस की भारी कमी है. देश की राजधानी में केवल दो ट्रॉमा सेंटर हैं – एक केंद्र के तहत आने वाले स्वायत्त अस्पताल एम्स का ट्रामा सेंटर तो दूसरा दिल्ली सरकार के लोकनायक अस्पताल के तहत आने वाला सुश्रुत ट्रॉमा सेंटर – जो जैसे-तैसे काम कर रहा है. देश को ऐसे कई और ट्रॉमा सेंटर की जरुरत है जिससे कई मरीज जिन्हें इलाज की जगह केवल इंतज़ार ही मिलता है – उनकी जान समय पर बचाई जा सके.