नई दिल्ली: अंग्रेज़ी भाषा का एक शब्द है Incurable Disease, जिसका हिन्दी में अर्थ होता है लाइलाज बीमारी. यानी एक ऐसी बीमारी, जिसका उपचार सम्भव नहीं है. आज हम DNA में आपको एक ऐसी ही बीमारी के बारे में बताना चाहते हैं.


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हमारे इस विश्लेषण का आधार है, उत्तर प्रदेश के आगरा से आया एक वीडियो. ये वीडियो आगरा के एक प्राइवेट अस्पताल का है, जिसका नाम है 'पारस अस्पताल'.


बंद कर दी गई ऑक्सीजन की सप्लाई 


इस वीडियो में अस्पताल के संचालक और डॉक्टर अरिंजय जैन कहते हैं कि जब देश में कोरोना वायरस की दूसरी लहर पीक पर थी और आगरा में ऑक्सीजन का संकट था. उस समय अस्पताल में एक मॉकड्रिल की गई. इस मॉक-ड्रिल के तहत 5 मिनट के लिए ऑक्सीजन की सप्लाई बंद कर दी गई. ऐसा ये देखने के लिए हुआ कि ऑक्सीजन की सप्लाई बंद होने के बाद कितने मरीज बचते हैं.


22 मरीजों की मौत


वीडियो में अस्पताल के संचालक कहते हैं कि 5 मिनट बाद 22 मरीजों की मौत हो गई और जो परिवार अपने मरीजों को ले जाने के लिए तैयार नहीं थे, उन्हें उनकी लाशें थमा दी गईं. ये सबकुछ अस्पताल में 26-27 अप्रैल के बीच हुआ. वीडियो में कही गई बातों से पता चलता है कि अस्पताल में उस दिन जानबूझकर मरीजों को दी जाने वाली ऑक्सीजन की सप्लाई को रोक दिया गया और इसकी वजह से 22 लोगों की मौत हो गई.


सोचिए जब देश एक ऐसे दौर से गुज़र रहा है, जब हमें अस्पतालों की ज़रूरत है, डॉक्टरों की ज़रूरत है, इलाज की ज़रूरत है, ऐसे वक़्त में इस तरह की अमानवीय घटना होती है. हमारे देश में अस्पतालों और डॉक्टरों पर लोग काफ़ी भरोसा करते हैं. जब किसी व्यक्ति का स्वास्थ्य बिगड़ता है और उसे इलाज की ज़रूरत होती है तो वो अस्पताल में भर्ती होते समय कोई शर्त नहीं रखता.


अस्पताल पहुंचने पर लोगों का डॉक्टरों से एक ही सवाल होता है कि मैं ठीक तो हो जाऊंगा न?


आप खुद सोचिए कि अस्पताल में आपको जो दवाइयां लिखी जाती हैं, जो टेस्ट होते हैं और जो इलाज दिया जाता है, उसका आपको कोई ज्ञान नहीं होता है. किसी को भी इसके बारे में कोई जानकारी नहीं होती. लोग बस यही कहते हैं जितना पैसा ख़र्च होगा, हम उसकी व्यवस्था कर लेंगे, बस आप हमारे मरीज को ठीक कर दो. कहने का मतलब ये है कि भारत में अस्पतालों पर लोग विश्वास करते हैं. इलाज पर विश्वास करते हैं और डॉक्टरों को भगवान मानते हैं.


अस्पताल ने की हत्या?


लेकिन अगर ये विश्वास ही ना रहे तो सोचिए क्या होगा? आगरा की इस घटना ने लोगों के इसी विश्वास को चोट पहुंचाई है. जब ये वीडियो वायरल हुआ तो इस अस्पताल के बाहर उन लोगों की भीड़ जमा हो गई, जिन्होंने 26 और 27 अप्रैल को इस अस्पताल में अपनों को खोया था. आज ये लोग कह रहे हैं कि इस अस्पताल ने उनके अपनों की हत्या की? और हम भी मानते हैं कि अगर ये आरोप सही हैं तो इन सभी मौतों को हत्या ही माना जाना चाहिए. हालांकि उत्तर प्रदेश सरकार ने बताया है कि उस दिन 22 लोगों की मौत का दावा सही नहीं है. सरकार का कहना है कि उस दिन अस्पताल में 3 ही मौत हुई थीं.


प्राइवेट अस्पतालों पर भरोसा नहीं


ये घटना एक प्राइवेट अस्पताल की है और आपको ये जानकर हैरानी होगी कि हमारे देश में प्राइवेट अस्पतालों पर भरोसा नहीं करने वाले लोगों की संख्या बहुत ज़्यादा है, लेकिन सरकारी अस्पतालों में अव्यवस्था और डॉक्टरों की कमी की वजह से प्राइवेट अस्पताल ही उनके लिए आख़िरी विकल्प की तरह हैं. एक सर्वे के मुताबिक, भारत में 42 प्रतिशत लोग प्राइवेट अस्पतालों पर भरोसा नहीं करते. ये सर्वे 40 हज़ार लोगों पर हुआ था.


इन आंकड़ों से आप ये भी समझ सकते हैं कि स्वास्थ्य क्षेत्र का बुनियादी ढांचा आज भी कमज़ोर है और इसी का फायदा कुछ प्राइवेट अस्पताल उठाते हैं. हालांकि ऐसा नहीं है कि सारे अस्पताल ऐसे होते हैं. आज जब देश महामारी के दौर से गुज़र रहा है, तब यही अस्पताल और डॉक्टर देश की रीढ़ बन रहे हैं.



इलाज को बना दिया प्रोडक्ट


लेकिन कुछ प्राइवेट अस्पताल ऐसे भी हैं, जिन्होंने आपदा को अवसर की तरह लिया है और इलाज को प्रोडक्ट बना कर अस्पतालों को दुकान बना दिया है.


भारत सरकार की संस्था National Sample Survey Office ने वर्ष 2017-2018 में एक सर्वे किया था, जो ये बताता है कि लोग प्राइवेट अस्पतालों पर भरोसा तो नहीं करते, लेकिन इलाज कराने के लिए यही प्राइवेट अस्पताल उनके लिए आख़िरी विकल्प हैं. सिर्फ 30 प्रतिशत भारतीय सरकारी अस्पतालों में अपना इलाज कराते हैं, जबकि 66 प्रतिशत लोग प्राइवेट अस्पतालों में अपना इलाज कराते हैं.


ये आंकड़े हमने आपको इसलिए बताए ताकि आप ये समझ सकें कि भारत में प्राइवेट हेल्थ केयर सिस्टम की भूमिका कितनी बड़ी है और ऐसे में अगर कोई प्राइवेट अस्पताल अपने मरीज़ों की जान लेता है तो ये अपराध तो होगा ही, साथ ही इससे अस्पतालों के प्रति लोगों का विश्वास और घटेगा. इस मामले में भी ऐसा ही होने का आरोप है.


आज हमने ऐसे लोगों की जानकारी इकट्ठा की है, जिन्होंने 26 और 27 अप्रैल को आगरा के इस अस्पताल में ऑक्सीजन नहीं मिलने की वजह से दम तोड़ दिया था.


26 अप्रैल को रामवती नाम की महिला की इस अस्पताल में कोरोना से मौत हो गई थी. इसी दिन मीना ग्रोवर की भी कोरोना से मौत हुई.


आशा शर्मा और मुन्नी देवी ने भी इस दिन कोरोना की वजह से अपनी जान गंवाई और 27 अप्रैल को भी अस्पताल में कई लोगों ने दम तोड़ा. 


इस मामले से जुड़ी एक कड़वी सच्चाई ये भी है कि अगर आगरा के इस अस्पताल के संचालक खुद वीडियो में ये बात कहते हुए नहीं दिखते, तो शायद ये मामला कभी सामने आता ही नहीं. इस वीडियो में वो खुद ये बात कहते हैं कि इस मॉकड्रिल के बारे में किसी को कुछ पता नहीं चला. इस घटना ने आज लोगों के मन में ये सवाल भी पैदा किया है कि क्या दूसरे अस्पतालों में भी ऐसा हुआ होगा?


ऑक्सीजन के अभाव में हजारों लोगों की मौत


कोरोना वायरस की दूसरी लहर के दौरान ऑक्सीजन का संकट अप्रैल और मई के महीने में चरम पर था. इस दौरान विभिन्न राज्यों के अस्पतालों से ऐसी ख़बरें आईं कि मरीज़ों ने ऑक्सीजन के अभाव में इलाज के दौरान दम तोड़ दिया.


इस संदर्भ में कोई आधिकारिक जानकारी तो उपलब्ध नहीं है, लेकिन Open Date Tracker 'Data Meet' ने मीडिया रिपोर्ट्स के आधार पर एक स्टडी की है, जिसके मुताबिक, 20 मई तक कोरोना की दूसरी लहर में 512 लोगों की मौत ऑक्सीजन की कमी की वजह से हुई.


दावा है कि सबसे अधिक मौतें गोवा के अस्पतालों में हुईं, वहां 83 लोगों की मौत की वजह ऑक्सीजन नहीं होना माना गया है.


इसके अलावा कर्नाटक में 54, महाराष्ट्र में 59, मध्य प्रदेश में 23, दिल्ली में 59, उत्तर प्रदेश में 46, आंध्र प्रदेश में 52, हरियाणा में 22, तमिलनाडु में 37, जम्मू कश्मीर में 4, पंजाब में 6, गुजरात में 16, उत्तराखंड में 5, राजस्थान में 9, बिहार में 8, तेलंगाना में 15 और झारखंड में 5 लोगों की मौत कारण यही था कि वहां इन मरीज़ों को ऑक्सीजन नहीं मिली. हालांकि ये आधिकारिक आंकड़ा नहीं है. ये मीडिया रिपोर्ट्स के आधार पर जुटाई गई जानकारी है.


तब ये ख़बरें अख़बारों और न्यूज़ चैनलों में छाई हुई थीं और उस दौरान इलाहाबाद हाई कोर्ट ने 5 मई को इस मामले में सुनवाई करते हुए ये टिप्पणी की थी कि ऑक्सीजन की कमी से होने वाली लोगों की मौतें गम्भीर अपराध है. कोर्ट ने तब ये भी कहा था कि अगर ऑक्सीजन की पर्याप्त सप्लाई नहीं होती तो ये किसी Genocide यानी नरसंहार से कम नहीं है. ये टिप्पणी कोर्ट ने की थी.


हालांकि ऐसा नहीं है कि सरकार की तरफ़ से कोई कमी रही. उस समय अस्पतालों में ऑक्सीजन की आपूर्ति के लिए युद्ध स्तर पर काम हुआ, लेकिन ऑक्सीजन की सप्लाई के लिए कोई ठोस व्यवस्था नहीं होने की वजह से इसमें परेशानियां आईं. आगरा प्रशासन का तो यहां तक कहना है कि जिस अस्पताल में ये घटना हुई, वहां ऑक्सीजन की कभी कमी थी ही नहीं.


जानबूझकर ऑक्सीजन सप्लाई रोकी गई?


ऐसे में ये आरोप भी लग रहा है कि इस अस्पताल में जानबूझकर मरीज़ों को होने वाली ऑक्सीजन सप्लाई रोकी गई ताकि बेड खाली हों और नए मरीजों को भर्ती किया जा सके. अस्पताल की आमदनी नहीं रुके. ये आरोप भी अब लग रहे हैं और आगरा प्रशासन ने इस अस्पताल को सील कर दिया है. सोचिए जिस अस्पताल में कल तक मरीज़ों का इलाज होता था, अब उस अस्पताल का इलाज क़ानून द्वारा अदालत में किया जाएगा.


आगरा प्रशासन ने इस मामले में Epidemic Disease Act के तहत कार्रवाई की बात कही है.


अस्पताल के संचालक डॉक्टर अरिंजय जैन ने भी इस पर ख़ुद को निर्दोष बताया है, लेकिन उनकी दलील कितनी सही है?


अस्पताल की लापरवाही के ख़िलाफ़ उठा सकते हैं ये कदम


आज हम आपको ये भी बताना चाहते हैं कि अस्पतालों की लापरवाही के ख़िलाफ़ आप क्या क़दम उठा सकते हैं और आपके अधिकार क्या हैं?


इसके लिए आपके पास तीन विकल्प हैं


अगर आपको लगता है कि अस्पताल की लापरवाही की वजह से किसी मरीज की जान गई है या आपसे धोखाधड़ी करके अधिक बिल वसूला गया या फिर मरीज को गलत उपचार मिला है तो आप ऐसी स्थिति में Medical Council of India के पास जा सकते हैं. 


Medical Council of India आपकी शिकायत पर जांच करा कर उस अस्पताल और डॉक्टर का लाइसेंस और रजिस्ट्रेशन रद्द कर सकता है और भविष्य में पुलिस भी इस आधार पर अपनी कार्रवाई को आगे बढ़ा सकती है.


दूसरा विकल्प है, कंज्यूमर कोर्ट. आप कंज्यूमर कोर्ट में अस्पताल के ख़िलाफ़ मुकदमा दर्ज करा सकते हैं. सुप्रीम कोर्ट ने एक मामले में सुनवाई करते हुए ये फ़ैसला दिया था कि Medical Services भी एक तरह की Consumer Service हैं. यही नहीं भारत का Consumer Protection Act 2019 भी Medical Services को कंज्यूमर मानता है. यानी आप अस्पतालों से संबंधित अपनी शिकायत को लेकर कंज्यूमर कोर्ट में जा सकते हैं.


और तीसरा विकल्प है Criminal Liability - Indian Penal Code 1860 के तहत अगर लापरवाही या जानबूझकर किए गए किसी कार्य की वजह से किसी व्यक्ति की जान चली जाती है तो ऐसे मामलों में कैद या जुर्माना या दोनों का प्रावधान है. इस संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट का एक फ़ैसला भी काफ़ी अहम है. इसमें कोर्ट ने कहा था कि अगर किसी अस्पताल या डॉक्टर की लापरवाही की वजह से किसी व्यक्ति की जान जाती है तो ऐसे मामलों में आईपीसी की धारा 304-A के तहत कार्रवाई की जा सकती है. आईपीसी की धारा 304-A उन लोगों पर लगाई जाती है, जिनकी लापरवाही की वजह से किसी की जान जाती है. इसके तहत दो साल तक की सजा या जुर्माना या दोनों का प्रावधान है.


कहने का मतलब ये है कि क़ानून आपको कई अधिकार देता है और आप चाहें तो लापरवाही के मामलों में क़दम उठा सकते हैं. आगरा के इस मामले में पुलिस ने Epidemic Disease Act के तहत कार्रवाई की बात कही है, ये क़ानून महामारी के दौरान नियमों का उल्लंघन करने वालों पर कार्रवाई का अधिकार सरकार को देता है. आज हमने सबसे पहले आपको ये ख़बर इसलिए दिखाई क्योंकि, हमें लगता है कि ये घटना लोगों के विश्वास को गहरी चोट पहुंचाती है.


सोचिए हमारे देश में अधिकतर लोग कभी डॉक्टर के पर्चे पर लिखी दवाइयों के नाम नहीं पढ़ पाते. इसके बाद भी लोग वो दवाइयां ख़रीदते हैं और इन दवाइयों का सेवन करके स्वस्थ होने की उम्मीद करते हैं. ये सम्भव होता है क्योंकि, लोगों का अस्पतालों और डॉक्टरों पर विश्वास है, लेकिन इस तरह की घटनाएं इस विश्वास को तोड़ने का काम करती हैं.


हालांकि हमारे देश के लोगों में एक धारणा ये भी है कि अस्पतालों से संबंधित मामलों में कभी कठोर कार्रवाई नहीं होती, जबकि ये बात सही नहीं है. इसे आप चाहें तो कुछ उदाहरणों से समझ सकते हैं.


वर्ष 1998 में डॉक्टर कुनाल साहा ने कोलकाता के AMRI अस्पताल पर केस किया था. डॉक्टर कुनाल साहा की पत्नी को एक ड्रग से एलर्जी थी, जिसके इलाज के लिए वो AMRI अस्पताल में भर्ती हुई. अस्पताल में इलाज के दौरान उन्हें दवाइयों की हेवी डोज देने से उनकी मौत हो गई. इसके बाद ये मामला कोर्ट पहुंचा और 2013 में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि डॉक्टर कुनाल साहा की पत्नी की मौत लापरवाही की वजह से हुई थी. तब कोर्ट ने AMRI अस्पताल पर 6 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया था, जो डॉक्टर कुनाल साहा को मिला.


वर्ष 2002 में वी. कृष्ण राव ने Nikhil Super Speciality Hospital के ख़िलाफ़ केस दर्ज कराया था. इस मामले में वी. कृष्ण राव की पत्नी को मलेरिया हो गया था, जिसके बाद उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था, लेकिन अस्पताल में मलेरिया की जगह उनका ये मान कर इलाज किया गया कि उन्हें टाइफॉयड है. गलत उपचार की वजह से तब उनकी मौत हो गई और इसके बाद इस मामले में अस्पताल के ख़िलाफ़ केस हुआ और अस्पताल को 2 लाख का मुआवज़ा वी.कृष्ण राव को देना पड़ा.


अस्पतालों की लापरवाही के मामले 


यही नहीं केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय के मुताबिक़ वर्ष 2018 में देश में अस्पतालों की लापरवाही के 2 हज़ार 400 मामले दर्ज हुए, जिनमें से 1400 मामलों का निपटारा हो गया था. इसके अलावा ये सूची काफ़ी लम्बी है. आपको बस यही समझना है कि कुछ प्राइवेट अस्पतालों में इलाज को सिर्फ़ प्रोडक्ट समझा जाता है.


अब इस मामले में लोगों को उम्मीद है कि सरकार जांच करा कर अस्पताल पर कार्रवाई करेगी और फिलहाल इस अस्पताल पर सरकारी ताला लगा दिया गया है. एक लाइन में कहें तो इस घटना ने आज इस सम्भावना को भी बढ़ावा दिया है कि क्या कोरोना की दूसरी लहर के दौरान कुछ प्राइवेट अस्पतालों का ध्यान मुनाफा कमाने की तरफ़ था क्योंकि, सरकार का कहना है कि इन अस्पतालों के पास ऑक्सीजन की कमी नहीं थी.